जब बाजार का बेबी फूड या दूध बच्चों को न दें तो…
Option to Market Baby Foods: धरती पर आए नए-नए बच्चे के नूर की कशिश हर किसी को अपनी ओर खींचती है। उसकी कोमल हथेलियों और नर्म गालों पर बोसा करने के लिए हर कोई लपकता है। प्यार-दुलार हर बेबी को चाहिए लेकिन पेट की परवरिश भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। अमूमन 6 महीने तक बेबी को केवल मां का दूध ही दिया जाता है और यह सर्वोत्तम भी है। इसके बाद कुछ और चाहिए होता है। आमतौर पर लोग बाजार से बेबी मिल्क और बेबी फूड लाते हैं। पर हाल के दिनों में जिस तरह से नेस्ले जैसी कंपनियों के बेबी मिल्क में आवश्यकता से अधिक शुगर की बात सामने आई है माता-पिता की चिंता बढ़ गई है। ऐसे में जब बाजार का बेबी फूड या मिल्क अपने बच्चों को न दें तो फिर क्या दें। इन्हीं प्रश्नों का उत्तर तलाशने के लिए मीडिया प्रसिद्ध पीडियाट्रिक डाक्टर नीलम मोहन और डाक्टर अरुण गुप्ता से बात की।
बच्चों को मीठा देना क्यों है नुकसानदेह
मेदांता हॉस्पिटल की डाक्टर नीलम मोहन ने कहा कि सेरेलेक दूध में क्या है, इसे लेकर गवर्नमेंट ने जांच के आदेश दिए हैं। अभी हमें इसपर कुछ नहीं बोलना लेकिन यदि बच्चों के शरीर में चीनी की मात्रा अधिक जाती है तो इसके कई घातक रिज़ल्ट सामने आ सकते हैं। यदि बच्चों को अधिक चीनी दी जाए तो इससे मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज का जोखिम बढ़ सकता है। कुछ अध्ययनों में यह भी बोला गया है कि बच्चों को अधिक चीनी खिलाने से दिल और दिमाग से संबंधित रोंगों का जोखिम भी बढ़ सकता है। इसलिए दो वर्ष से छोटे बच्चों को चीनी खाने के लिए दे ही नहीं। मां का दूध या अन्य दूध से जो ट्राईसैकराइड्स मिलता है, वहीं कार्बोहाइड्रैट बना देता है। उन्होंने बोला कि चीनी नहीं देने का मतलब केवल चीनी ही नहीं बल्कि चीनी से बनी चीजें जैसे कि चॉकलेट, कैंडी, बिस्कुट भी नहीं दें।
इसलिए भी नहीं देना चाहिए मीठा
डॉ। नीलम मोहन ने कहा कि बच्चों को इसलिए भी मीठा नहीं देना चाहिए क्योंकि बच्चे मीठी चीजों के प्रति अधिक आकर्षित होते हैं। यदि उन्हें प्रारम्भ से ही मीठा दे दिया जाए तो उसी का टेस्ट लग जाएगा और इसकी आदत लग जाएगी और फिर वह दूसरी चीजों को खाने में कतराएगा। ये आदत बहुत समस्याएं पैदा कर सकती हैं क्योंकि मीठी चीजों में कैलोरी के अतिरिक्त कोई पौष्टिक चीज नहीं रहती। इससे शरीर को जरूरी चीजें नहीं मिलेंगी और खराब चीजें मिल जाएगी जिससे शरीर में मोटापा और चर्बी बढ़ जाएगी।
बाजार का न दें तो फिर क्या दें
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष और सीनियर पीडियाट्रिक डाक्टर अरुण गुप्ता कहते हैं कि कभी भी चिकित्सक नवजात बच्चों को बाहर के फूड को लेने की राय नहीं देते। बाजार के फूड को खाने में कई सारे रिस्क हैं। इन फूड में क्या होता है क्या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं रहती। इसमें केमिकल भी हो सकता है। वहीं यदि बाजार की चीजें बच्चों को देंगे तो उसमें वही टेस्ट डेवलप हो जाएगा जिससे घर का खाना उसे अच्छा नहीं लगेगा। नेस्ले के मुद्दे के साथ क्या है, उसके लिए जांच जारी है लेकिन मुझे लगता है इसमें कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। इन कई कारणों की वजह से बच्चों को बाहर का खाना नहीं देना चाहिए। उन्हें घर का खाना देना चाहिए। धीरे-धीरे इसकी आदत लगानी चाहिए।
ये है बच्चों की डाइट का फॉर्मूला
डॉ। नीलम मोहन कहती हैं कि 2 वर्ष से छोटे बच्चे के लिए आप सरलता से अपने घर की चीजों को दे सकते हैं। इसमें सबसे पहले 40 फीसदी अनाज जैसे कि ज्वार, बाजरा, मिलेट के आटे आदि से बनी चीजों को शामिल करें। इसके बाद 20-30 फीसदी हरी सब्जियों को बारीक बनाकर बच्चों को दें। वहीं दिन भर में 10-15 फीसदी दूध या दूध से बनी चीजों को बच्चों की डाइट में शामिल करें। इन सबके अतिरिक्त आप सीड्स और कुछ ड्राई फ्रूट्स को भी जरूर शामिल करें।