मोबाइल के रील्स या बार-बार स्विच करते हैं टीवी के चैनल, कहीं इस बीमारी के शिकार तो नहीं
मोबाइल चलाते समय क्या आप भी शीघ्र शीघ्र रील बदलते हैं। यूट्यूब शॉर्ट्स लगातार स्विच करते रहते हैं। टीवी देखते हैं तो लगातार चैनल बदलते रहते हैं। आपका दिमाग बच्चों की तरह बार-बार दूसरी तरफ भाग रहा है। यदि आप फोकस नहीं कर पा रहे हैं तो संभव है कि आप पॉपकॉर्न सिंड्रोम से पीड़ित हैं। इस बिमारी से पीड़ित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
सैकड़ों लोग हर पल बदलते ख्यालों से परेशान हैं। एक फैसला पर न टिक पाने से वे तनाव में हैं। सामाजिक और पारिवारिक संबंध खराब हो रहे हैं। मानसिक डॉक्टरों के पास ऐसे 30 प्रतिशत लोग पहुंच रहे हैं। डॉक्टरों का बोलना है कि यह पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम है। यह रोग सोशल मीडिया और डिजिटाइजेशन से यह बढ़ रही है। एक्सपर्ट के अनुसार, 2011 में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर डेविड लेवी ने इस परेशानी को पॉपकॉर्न सिंड्रोम नाम दिया था।
लोगों में हो रही संयम की कमी
मेंटल हेल्थ एक्स्पर्ट डाक्टर सिकाफा जाफरीन ने कहा कि यह एक ऐसा सिंड्रोम है जिसमें दिमाग में उछल-उछल कर हर चीज को देखने के लिए भागता है। इस सिंड्रोम में दिमाग की उत्सुकता बहुत तेज हो जाती है। उत्सुकता को शांत करने के लिए दिमाग हर तरफ भागता रहता है। इस वजह से दिमाग में संयम की कमी हो जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि दिमाग का फोकस कम हो जाता है। पॉपकॉर्न ब्रेन दिमाग में अस्थिरता पैदा कर रहा है। इससे महत्वपूर्ण फोकस की कमी हो रही है और दिमाग अवसाद का शिकार हो रहा है।
दिमागी क्षमता पर पड़ रहा बुरा असर
डॉ। सिकाफा ने कहा कि पॉपकॉर्न ब्रेन की वजह लोगों के सीखने, याद करने और संवेदनाओं को महसूस करने की प्रवृत्ति पर गहरा असर पड़ रहा है। पॉपकॉर्न ब्रेन का असर दिमागी क्षमता पर भी पड़ रहा है। इससे मेमोरी पर बहुत बुरा असर पड़ता है। आदमी किसी विषय पर गहरी जानकारी लेने के लिए नाकामयाब रहता है। इसको ठीक करने के लिए कुछ मेंटल एक्टिविटी करने की जरूरत है। अखबार पढ़ने की आदत को डिवेलप कीजिए। हॉबीज पर फोकस कीजिए। एक चीज पर फोकस करने का कोशिश कीजिए।