स्वास्थ्य

Atrial fibrillation: नए शोध में सामने आया ये डरावना सच

हृदय की अनियमित धड़कनों वाली रोग एट्रियल फिब्रिलेशन (ए-फिब) अब युवा दिलों की धड़कनों की लय-ताल बिगाड़ रही है. यह डरावना सच सामने आया है पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के अध्ययन में. आमतौर पर इस रोग को 65 पार बजुर्गों के लिए ही अधिक घातक माना जाता था, मगर पिट्सबर्ग यूनि के मेडिकल सेंटर के डॉक्टर आदित्य भोंसले ने अपने अध्ययन के आधार पर दावा किया है कि यह रोग 65 से कम उम्र वाले, खासतौर पर युवाओं के लिए भी कहीं अधिक घातक है.

इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट डाक्टर भोंसले और उनकी टीम ने ए-फिब से पीड़ित 67,000 से अधिक मरीजों के डाटा के आधार पर किए अध्ययन में यह दावा किया है. इस अध्ययन में 25 प्रतिशत रोगी 65 साल से कम उम्र के थे.

मेडिकल लाइफ साइंसेज जर्नल में इसी हफ्ते प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, इन मरीजों में मृत्यु का जोखिम सामान्य लोगों की तुलना में काफी अधिक पाया गया. उच्च रक्तचाप, मोटापा और स्लीप एपनिया जैसी समस्याएं ए-फिब का जोखिम बढ़ाती हैं और दिल संबंधी समस्याओं को बदतर बनाती हैं.

ए-फिब यानी धड़कन कभी बहुत तेज या बहुत धीमी

ए-फिब ऐसी स्थिति को बोला जाता है, जिसमें दिल के ऊपरी और निचले कक्षों के बीच आदर्श समन्वय नहीं होता है. इसके चलते दिल की धड़कन कभी बहुत धीमी, कभी बहुत तेज हो जाती है. धड़कनों की इस अनियमितता से घबराहट और बेहोशी का अनुभव होता है. मिशिगन हेल्थ यूनिवर्सिटी के दिल बीमारी जानकार डाक्टर जेफ्री बार्न्स ने कहा कि उन्होंने अक्सर ऐसे रोगियों को देखा है, जो कहते हैं कि उनका दिल तेजी से धड़क रहा है, या कभी-कभी धड़कनों का लोप हो जाता है.

अनियमित धड़कनें घातक क्यों

डॉ भोंसले कहते हैं कि ए-फिब के कारण दिल में रक्त के थक्के बन सकते हैं, जो मस्तिष्क तक जा सकते हैं और स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं. इससे सोचने-समझने की क्षमता में कमी आती है और अल्जाइमर की परेशानी आ सकती है. हृदयाघात का जोखिम भी बढ़ जाता है. शोध में सामने आया कि 65 साल से कम उम्र के ए-फिब पीड़ितों में बिना ए-फिब वालों की तुलना में हृदयाघात, स्ट्रोक और दिल के दौरे का खतरा अधिक होता है.

शराब और सिगरेट भी जिम्मेदार

डॉ भोंसले के मुताबिक पहले से दिल बीमारी से पीड़ित या डायबिटीज के चलते युवा इसकी चपेट में आ रहे हैं. शोध में शामिल पांच में से एक ए-फिब पीड़ित ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया से भी पीड़ित पाया गया. यह सबसे अधिक जोखिम वाला कारक है क्योंकि स्लीप एपनिया से पीड़ित लोग रात में सांस लेना बंद कर देते हैं.

नॉर्थवेस्टर्न मेडिसिन ब्लूहम कार्डियोवास्कुलर इंस्टीट्यूट में चिकित्सा निदेशक डाक्टर ब्रैडली नाइट कहते हैं कि शराब और सिगरेट के सेवन के अतिरिक्त अत्यधिक व्यायाम से भी ए-फिब का खतरा रहता है.

उपचार

स्लीप एपनिया वाले आदमी को सीपीएपी मशीन दी जाती है. शराब और धूम्रपान से दूर किया जाता है. कुछ लोगों में यह परेशानी जन्मजात भी हो सकती है. उनके लिए कैथेटर एब्लेशन की प्रक्रिया इस्तेमाल की जाती है. इसमें चिकित्सक दिल से उस ऊतक को निकाल देते हैं, जिसकी वजह से धड़कनें अनियमित होती हैं.

कारगर साबित हो रही स्मार्ट वॉच

जॉन्स हॉपकिन्स मेडिसिन में कार्डियोलॉजी के प्रो डाक्टर ह्यू कैल्किंस कहते हैं कि ए-फिब का पता लगाने के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम से दिल की धड़कनों का लेखा-जोखा लिया जाता है. लेकिन, अब यह काम स्मार्ट वॉच भली–भाँति कर रही हैं. बहुत से लोगों को तो शायद पता भी नहीं चलता कि उन्हें ए-फिब के लक्षण हैं. लेकिन, उनकी स्मार्ट वॉच ने उन्हें इसके संकेत दिए.

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