स्वास्थ्य

Cancer: कोलन कैंसर का इस टेस्ट से पता लगाना हुआ आसान

कैंसर पूरे विश्व में मौत के प्रमुख कारणों में से एक रहा है. समय के साथ कैंसर की जांच के लिए आधुनिक उपकरण और कारगर इलाज विधियां तो आई हैं, लेकिन इसपर होने वाले खर्च के कारण आम लोगों के लिए अब भी इन तक पहुंच कठिन बनी हुई है. रिपोर्ट्स से पता चलता है कि पूरे विश्व में पिछले कुछ सालों में कोलन (कोलेरेक्टल) कैंसर और इसके कारण होने वाले मृत्यु के मुद्दे काफी बढ़ गए हैं.

कोलन कैंसर, कोलन या बड़ी आंत के किसी भी हिस्से में हो सकता है. हर वर्ष इस कैंसर के कारण पूरे विश्व में लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती है. स्वास्थ्य जानकार कहते हैं, समय पर कैंसर का पता न चलने के कारण मृत्युदर अधिक देखी जाती रही है.

हालांकि अब इस कैंसर के पता लगाना सरल हो सकता है. हालिया शोध में शोधकर्ताओं ने कहा है कि अब कोलोरेक्टल कैंसर का पता लगाना साधारण रक्त परीक्षण जितना सरल होने वाला है. यानी खून की जांच के माध्यम से भी किसी आदमी में इस जानलेवा स्थिति की निदान हो सकेगा.

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित इस शोध के रिज़ल्ट में बताया गया है कि कोलन कैंसर के अब तक के स्क्रीनिंग के लिए स्टूल सैंपल लिए जाते रहे हैं, जिसमें घर पर शौच का सैंपल एकत्र करना, उसे जांच के लिए भेजना और कोलोनोस्कोपी के लिए बेहोशी जैसी प्रक्रिया इसके निदान को मुश्किल बना देती है. जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों में इस कैंसर का पता ही नहीं चल पाता था, हालांकि अब केवल ब्लड सैंपल से ही काम चल जाएगा.

शोधकर्ताओं ने शोध में लिखा है कि यदि अमेरिका में हर किसी की नियमित रूप से जांच की जाए, तो कोलोरेक्टल कैंसर से जुड़ी 90% मौतों को टाला जा सकता है. यह टेस्ट इस दिशा में काफी मददगार साबित हो सकती है.

कैसे काम करती है ब्लड टेस्टिंग?

कोलोरेक्टल कैंसर अमेरिका में कैंसर से होने वाली मौतों का दूसरा प्रमुख कारण है और कुल मिलाकर ये कैंसर के सबसे आम प्रकारों में से भी एक है. अकेले अमेरिका में ही हर वर्ष डेढ़ लाख से अधिक लोगों में इस कैंसर का निदान किया जाता है और हर वर्ष 50,000 से अधिक लोग बृहदान्त्र या मलाशय के कैंसर से मारे जाते हैं. अब इस ब्लड टेस्ट से समय रहते कैंसर का पता लगाने में सहायता मिलने की आशा है.

वैज्ञानिकों ने बताया, इस खास प्रकार के रक्त परीक्षण से ट्यूमर से रक्त प्रवाह में रिलीज किए गए डीएनए का पता लगा सकता है. अब तक 7,800 से अधिक लोगों के परीक्षण में इस नए टेस्ट को 87% परफेक्ट पया गया है, गलत रिपोर्टिंग रेट 10% से भी कम है. हालांकि यह परीक्षण उन्नत प्रीकैंसरस घावों का पता लगाने में कम सफल रहा.

दूसरे टेस्टों की तुलना में सरल और कारगर

शोधकर्ताओं ने बताया, अब तक स्टूल टेस्ट से कोलन कैंसर का शीघ्र पता लगाने की रेट लगभग 42% जबकि और कोलोनोस्कोपी की रेट 93% तक परफेक्ट रही है. ब्लड टेस्ट इन सभी प्रक्रियाओं से सरल और कारगर साबित हो सकता है.

हालांकि अमेरिकन गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिकल एसोसिएशन का बोलना है कि ब्लड टेस्टिंग से कैंसर का पता लगाना एक अतिरिक्त तरीका हो सकता है, लेकिन इसे कोलोनोस्कोपी का विकल्प नहीं बताया जा सकता है.

कैंसर स्क्रीनिंग की गाइडलाइन

गौरतलब है कि वर्तमान स्क्रीनिंग दिशानिर्देशों के अनुसार औसत जोखिम वाले लोगों के लिए हर 10 वर्ष में कोलोनोस्कोपी या वार्षिक स्टूल टेस्ट जरूर कराना चाहिए. रिपोर्ट के अनुसार, इस नए रक्त परीक्षण की हर 3 वर्ष में आवश्यकता हो सकती है. निर्माता गार्डेंट हेल्थ के अनुसार, इसी वर्ष एफडीए द्वारा इस टेस्ट को स्वीकृति प्रदान की जाने की आशा है. कैंसर के समय रहते निदान में इस टेस्ट के आने से विशेष फायदा मिलने की आशा है.

 

 

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