रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा, हर 14 सेकंड में नवजात शिशु की हो रही मौत
जन्म लेने के बाद ही एक नवजात शिशु के लिए दुनिया खिलती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर 14 सेकंड में एक नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है? यह चौंकाने वाला खुलासा एक नयी रिपोर्ट में हुआ है। संयुक्त देश इंटर-एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मोर्टेलिटी एस्टीमेशन की लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में 2022 में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत रेट में ऐतिहासिक गिरावट आई है।
13 मार्च 2024 को जारी इस रिपोर्ट में पाया गया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की वार्षिक मौत रेट 2000 के अनुमान से आधे से अधिक घटकर 99 लाख से 49 लाख हो गई है। हालांकि, आंकड़े अभी भी चिंताजनक हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि पूरे विश्व में 2022 में हर 14 सेकंड में नवजात शिशु की मौत (जन्म के 28 दिनों के भीतर), हर 6 सेकंड में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे की मौत और हर 35 सेकंड में एक किशोर की मौत हुई।
बाल मौत रेट में आई गिरावट
1990 के अनुमानों की तुलना में बाल मौत रेट में 62 फीसदी की गिरावट आई है, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि ये औसत कमजोर जनसंख्या के बच्चों के बीच लगातार बनी हुई पक्षपात को छिपाते हैं। वहीं, 2000 और 2022 के बीच, दुनिया ने 22.1 करोड़ बच्चों, किशोरों और युवाओं को खो दिया। इनमें से 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे 16.2 करोड़ थे और नवजात शिशु मौत 7.2 करोड़ थी। दुखद पहलू यह है कि 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत रेट नवजात शिशु अवधि में बढ़ रही है, जो 2000 में 41 फीसदी से बढ़कर 2022 में 47 फीसदी हो गई है। रिपोर्ट में मृत्यु के कारणों में परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि को इस वृद्धि का कारण कहा गया है।
कारण और समाधान
नवजात शिशुओं और बच्चों की मृत्यु के प्रमुख कारणों में प्री-मैच्योरिटी, निमोनिया, ट्रॉमा, मलेरिया और डायरिया शामिल हैं, जिन्हें रोका जा सकता है। टीकाकरण, जन्म के समय स्किल्ड स्वास्थ्य कर्मियों की उपलब्धता, स्तनपान को बढ़ावा देना और बचपन की रोंगों का पता लगाना और इलाज इन मौतों को रोकने में जरूरी किरदार निभा सकते हैं।
भविष्य की दिशा
रिपोर्ट का अनुमान है कि 2030 से पहले 5 वर्ष से कम उम्र के 3.5 करोड़ बच्चे अपनी जान गंवा देंगे और उप-सहारा अफ्रीका को मौत रेट का सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ेगा। रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि संयुक्त देश द्वारा सस्टेनेबल डेव्हलपमेंट गोल (एसडीजी) के लक्ष्यों को समय पर पूरा नहीं किया जाएगा।