मानसिक रोगों का भी रामबाण इलाज है आयुर्वेद की ये थेरेपी
आयुर्वेद कोई आज की चिकित्सा पद्धति नहीं है, इसका इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। इसे आचार्यों ने सैंकड़ों वर्ष पहले शरीर में जमा होने वाली गंदगी को निकाले के लिए बनाया था। सरल भाषा में इसे बॉडी को आंतरिक रूप से डिटॉक्स करने की आयुर्वेद थेरेपी बोला जाता है। बेशक एलोपैथी ने इसे पीछे छोड़ दिया हो, लेकिन अब लोग फिर से आयुर्वेद से जुड़ने लगे हैं। अनेक ऐसी बीमारियां हैं, जिनका आयुर्वेद में अकाट उपचार है। जी हां, पंचकर्म भी एक ऐसी ही आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति है, जिसमें शारीरिक ही नहीं, मानसिक रोगों का भी उपचार संभव है।
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राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय एवं अस्पताल लखनऊ की आयुर्वेदाचार्य डाक्टर शची श्रीवास्तव बताती हैं कि आदमी का शरीर 5 तत्व मिट्टी, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी के मूल तत्वों के मिलकर बना है। ऐसे में इन तत्वों को अनुपात में बनाए रखने के लिए शरीर के भीतर एक समान होना महत्वपूर्ण होता है। यह संतुलन सिर्फ़ खान-पान से ही नहीं बल्कि आपके सोशल लाइफ, एनवायरनमेंट के वजह से भी बिगड़ता है। ऐसे में समय-समय पर शरीर को डिटॉक्स करना जरूरी हो गया है। आइए जानते हैं पंचकर्म क्या है? पंचकर्म की कौन सी थेरेपी किस रोग में दी जाती है।
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वमन (वजन संबंधी समस्याएं): डाक्टर शची श्रीवास्तव बताती हैं कि, इस इलाज में सबसे पहले कुछ दिनों के लिए, बीमार को अंदर और बाहर ऑयल और सेंक इलाज दिया जाता है। शरीर की ऊपरी गुहाओं में विषाक्त पदार्थों के घुलने और जमा होने के बाद बीमार को इमेटिक दवाएं और काढ़ा दिया जाता है। यह उल्टी को प्रेरित करता है और शरीर को ऊतकों से विषाक्त पदार्थों को निकालने में सहायता करता है। वजन बढ़ना, अस्थमा और अति अम्लता कफ प्रधान रोगों के उदाहरण हैं जिनके लिए वामन चिकित्सा की राय दी जाती है।
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विरेचन (पेट संबंधी समस्याएं): विरेचन में टॉक्सिक तत्वो को सही करने या नष्ट करने के लिए आंतों की सफाई की जाती है। इसमें बीमार को अंदर और बाहर से ओलीशन और सेंक किया जाता है। इसके बाद बीमार को प्राकृतिक रेचक दिया जाता है, जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में सहायता करता है। विरेचन का इस्तेमाल मुख्य रूप से पित्त संबंधित रोंगों जैसे हर्पीज जोस्टर, पीलिया, कोलाइटिस और सीलिएक बीमारी के उपचार के लिए किया जाता है।
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नस्य (मानसिक रोगों के लिए): इस थेरेपी में सत्र की आरंभ में सिर और कंधे के क्षेत्रों में मामूली मालिश और सेंक दी जाती है। इसके बाद नाक के छेदों में ऑयल या घी डाला जाता है। यह क्रिया मस्तिष्क के क्षेत्र को साफ करने का काम करती है। इससे सिरदर्द, बालों की समस्याओं, नींद की गड़बड़ी, तंत्रिका संबंधी विकार, साइनसिसिटिस, क्रोनिक राइनाइटिस और श्वसन समस्याओं जैसे विभिन्न लक्षणों को कम किया जा सकता है।
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बस्ती (गठिया बीमारी में फायदेमंद): आयुर्वेदाचार्य की मानें तो इस थेरेपी में कुछ आयुर्वेदिक काढ़े को शरीर के अंदर रखा जाता है। जिसमें तेल, घी या दूध शामिल होते हैं। यह दवा गठिया, बवासीर और कब्ज जैसी वात प्रधान स्थितियों के लिए अच्छा काम करती है।
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रक्तमोक्षण (त्वचा संबंधी परेशानियों के लिए): यह थेरेपी मुख्य रूप से रक्त को सही करने के लिए होता है। यह एक विशिष्ट भाग या पूरे शरीर पर किया जा सकता है। यह इलाज सोरायसिस और डर्मेटाइटिस जैसे त्वचा रोगों और फोड़े और रंजकता जैसे क्षेत्रीय घावों के लिए विशेष रूप से लाभ वाला है।