‘नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ यानी नासा के वैज्ञानिक और अन्य जानकार पिछले कई वर्षों से चेतावनी दे रहे हैं कि इस दुनिया के 800 करोड़ से अधिक लोगों की गणना के अनुसार, ठोस कचरा नदियों और नालों में बहाया जा रहा है अंततः समुद्र में गिरेगा तो उसका स्तर बढ़ना स्वाभाविक है. यह भौगोलिक और वैज्ञानिक तथ्य है कि विश्व के सभी महासागर आपस में जुड़े हुए हैं जिसके कारण सभी स्थान जल स्तर एक समान रहता है. यदि यह स्तर ऊंचा हुआ तो कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत का खूबसूरत तटीय शहर वैंकूवर और हिंदुस्तान के तटों पर बसे कुछ शहरों समेत दुनिया के कई अन्य शहर और जनसंख्या पानी में डूबने लगेगी. अब दुबई के जो डरावने दृश्य सभी ने देखे हैं, वे तटीय शहरों के लिए खतरे की घंटी हैं. यह ग्लोबल वार्मिंग का रिज़ल्ट है. नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार, 2006 से 2015 तक पृथ्वी पर समुद्री जल का स्तर 3.6 मिमी की रेट से बढ़ा है. उच्च ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर बर्फ के ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण भी यह स्तर बढ़ जाता है. यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि यदि पहाड़ों और ध्रुवों पर उपस्थित सारी बर्फ पिघल जाए तो समुद्र में पानी का स्तर लगभग 230 फीट तक बढ़ जाएगा, जिससे न सिर्फ़ तटीय शहर बल्कि दुनिया के कई अन्य शहर, कस्बे और गांव भी नष्ट हो जाएंगे. डूब जाना | इसे बाढ़ की स्थिति ही बोला जा सकता है। वर्ष 2023 के एक वैज्ञानिक पेपर के मुताबिक, 1.5 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर पहाड़ के एक-चौथाई ग्लेशियर पिघल जाएंगे।
ऐसी स्थिति निश्चित रूप से पृथ्वी और उसके निवासियों के लिए विध्वंसक होगी. समुद्र का स्तर बढ़ने से तटरेखाओं का तेजी से क्षरण होगा, जो तटीय जनसंख्या के लिए खतरनाक साबित होगा. ऐसी स्थिति से निचले इलाकों में स्थायी रूप से बाढ़ आ सकती है और आम लोगों के लिए कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। इससे मछलियों, पक्षियों और पौधों के जलस्रोतों पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा. नेशनल ओशन सर्विस की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 से 2100 के बीच यानी 80 वर्ष में समुद्र का स्तर दो फीट बढ़ जाएगा. आदमी को अभी से ऐसी स्थितियों से बचने के तरीका करने होंगे.