पाकिस्तान तालिबान संघर्ष: तालिबान और पाकिस्तान की लड़ाई हुई तो किसका पलड़ा होगा भारी…
अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता संभाली तो इस्लामाबाद ने इसका गर्मजोशी से स्वागत किया. शुरुआती दौर में पाक की ओर से कई प्रतिनिधिमंडल अफगानिस्तान भेजे गए थे, कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि तालिबान की खुफिया बैठकों में पाकिस्तानी सेना के अधिकारी भी शामिल हुए थे। जहां बाहर से देखने पर दो पड़ोसी मुसलमान राष्ट्रों का ये प्यार दिखता था, वहीं पाक के इस प्यार के पीछे एक बड़ा मतलब था। पाक को आशा थी कि तालिबान उसकी धरती पर आतंकवाद फैला रहे संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाक (टीटीपी) पर लगाम लगाने में उसकी सहायता करेगा। पाक का मानना था कि तालिबान से दोस्ती अफगानी धरती को पाक के विरुद्ध इस्तेमाल होने से बचाएगी. लेकिन पाक के सपनों पर तब पानी फिर गया जब तालिबान के सत्ता में आने के बाद टीटीपी मजबूत हो गई। हाल ही में दोनों राष्ट्रों के बीच बढ़े तनाव की वजह भी यही तहरीक-ए-तालिबान संगठन है.
दोनों राष्ट्र आज युद्ध के कगार पर खड़े हैं। 2001 में जब 9/11 के बाद अमेरिकी आक्रमण ने अफगानिस्तान में तालिबान गवर्नमेंट को गिरा दिया, तो तालिबान के शीर्ष नेतृत्व ने पाक में शरण ली और आज उसी तालिबान पर पाक के दुश्मनों को शरण देने का इल्जाम है. सीमा पर तनाव है और यह तनाव कब युद्ध में बदल जाएगा पता नहीं, लेकिन अब प्रश्न ये हैं कि यदि युद्ध हुआ तो पलड़ा किसका भारी होगा, तालिबान के पास कौन सी ताकत है जिसके सहारे यह पाक जैसी ताकतवर सेना को धमकी दे रहा है, हालिया तनाव का कारण क्या है? आइए इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने की प्रयास करते हैं.
16 मार्च को, एक आत्मघाती हमलावर ने उत्तरी वज़ीरिस्तान में एक पाकिस्तानी सेना चौकी पर विस्फोटकों से भरे एक ट्रक को उड़ा दिया, जिसमें सात सैनिक मारे गए. पाक ने इस हमले के लिए टीटीपी को उत्तरदायी ठहराया था। जवाबी कार्रवाई में पाक ने अफगानिस्तान में घुसकर हवाई हमले किए, जिसके बाद तालिबान ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इन हमलों को राष्ट्र की संप्रभुता के लिए खतरा बताया। उत्तर में तालिबान ने पाक सीमा पर कई गोले दागे, जिसमें एक सैनिक की मृत्यु की भी समाचार है। स्थिति अभी भी तनावपूर्ण है और तनाव का कारण टीटीपी है, आगे बढ़ने से पहले आइए जानते हैं कि यह टीटीपी कौन है.
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जिसे पाक के तालिबान के नाम से भी जाना जाता है, 2007 में बैतुल्ला महसूद के नेतृत्व में कई छोटे कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों को मिलाकर पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध बनाया गया एक गठबंधन है. जिसका उद्देश्य पाक में खिलाफत शासन स्थापित करना और पाक कानून को शरिया कानून से बदलना है. इस संगठन ने 2007 से 2014 तक पाक में कई बड़े हमले किए हैं. टीटीपी ने 2012 में मलाला यूसुफजई पर हुए खतरनाक हमले की जिम्मेदारी भी ली थी. 2014 के अंत में टीटीपी ने पेशावर के एक सेना विद्यालय पर धावा किया, जिसमें 130 से अधिक स्कूली बच्चों की मृत्यु हो गई. जिसके बाद पाकिस्तानी सेना ने बड़े पैमाने पर ऑपरेशन चलाए, जिसके परिणामस्वरूप इस संगठन की ताकत 50 फीसदी से अधिक कम हो गई.
लेकिन 2021 में तालिबान के सत्ता में आते ही यह संगठन फिर से पनपने लगा। हालाँकि, तालिबान हमेशा इस बात से इनकार करता है कि तहरीक-ए-तालिबान को उससे कोई समर्थन नहीं मिला है. लेकिन जानकारों का बोलना है कि तालिबान और टीटीपी के बीच वैचारिक समानता है, भले ही तालिबान का शीर्ष नेतृत्व इससे इनकार करता हो, लेकिन तालिबान के भीतर ऐसे लोग हैं जो टीटीपी के प्रति नरम रुख रखते हैं.
अगर अफगानिस्तान और पाक के बीच युद्ध हुआ तो क्या होगा?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पाक एक परमाणु शक्ति है, पाक की सेना दुनिया की 9वीं सबसे ताकतवर सेना है. वायु सेना, थल सेना और नौसेना तीनों क्षेत्रों में इसकी ताकत प्रभावशाली है. संख्या के मुद्दे में तालिबान का पाक से कोई मुकाबला नहीं दिखता, लेकिन पाक के हमले के बाद तालिबान ने बोला था, ”हमारे पास दुनिया की महाशक्तियों से अपनी आजादी के लिए लड़ने का लंबा अनुभव है। हम अपने राष्ट्र पर कोई भी धावा बर्दाश्त नहीं करेंगे.”
लेकिन जानकारों का मानना है कि भले ही तालिबान ने रूस, ब्रिटेन और अमेरिका जैसी बड़ी शक्तियों को अपने राष्ट्र से खदेड़ दिया है। लेकिन उन्हें सीमा पर लड़ने का कोई अनुभव नहीं है, तालिबान अपने राष्ट्र के अंदर के हालात में किसी भी महाशक्ति को जरूर हरा सकते हैं। लेकिन पाकिस्तानी सेना के पास सीमा के बाहर हमले करने का लंबा अनुभव है। पाक हिंदुस्तान के साथ 4 युद्ध लड़ चुका है, इसके अतिरिक्त पाकिस्तानी सेना ने राष्ट्र के बाहर खाड़ी राष्ट्रों में भी कई ऑपरेशन को अंजाम दिया है.
तालिबान को कैसे हराया जा सकता है?
तालिबान के पास भले ही वायु सेना और बड़ी संख्या में टैंक हथियार न हों, लेकिन पाक के अंदर उनके पास आत्मघाती हमलावर और प्रॉक्सी हैं. जिससे पाक के पहले से ही खराब हालात और भी खराब हो सकते हैं। हालाँकि तालिबान के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन पाक के आर्थिक और सियासी संकट के बीच एक और युद्ध लड़ना संभव नहीं लगता है.
पहले भी कई बार ऐसे हालात पैदा हुए हैं लेकिन दोनों राष्ट्रों ने वार्ता के जरिए मसले को सुलझा लिया है. हाल ही में एक मीडिया आउटलेट को दिए साक्षात्कार में पाक के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा, ”उनका राष्ट्र पड़ोसी राष्ट्र अफगानिस्तान के साथ सशस्त्र संघर्ष में शामिल नहीं होना चाहता।” लेकिन इस बार पाक सेना की इस कार्रवाई से तालिबान अधिक नाराज नजर आ रहा है। दुनिया के दो हिस्सों में पहले से ही युद्ध चल रहा है, अब देखना होगा कि ये तनाव किस मोड़ पर जाता है।