पाकिस्तान की नई सरकार के सामने देश की आर्थिक स्थिति को लेकर बनी गंभीर चुनौती
पाक की नयी गवर्नमेंट के सामने राष्ट्र की आर्थिक स्थिति को लेकर गंभीर चुनौती बनी हुई है. वित्त मंत्री इशाक डार इसको पार पाने की असफल कोशिशें कर रहे हैं. वह हिंदुस्तान की तरफ काफी आशा नजरें टिकाएं बैठे हैं. उन्होंने हाल ही में बोला था कि उनकी गवर्नमेंट हिंदुस्तान के साथ व्यापार के मामलों को गंभीरता से देखेगी. उनके इस बयान को विस्तार से समझने पहले यह जान लेना अधिक महत्वपूर्ण है कि पाक के लिए आज के समय में व्यापार को फिर से प्रारम्भ करना एक बड़ी चुनौती बन चुकी है. वहीं, हिंदुस्तान दुनिया के ताकतवर राष्ट्रों के साथ बराबर का व्यापार करने की दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है.
पाकिस्तान की आज स्थिति इसलिए भी अधिक दैनीय हो गई क्योंकि 2019 में पीएम मोदी की गवर्नमेंट के द्वारा कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समापन के बाद हिंदुस्तान के साथ आर्थिक संबंधों को तोड़ लिया था. वर्तमान स्थिति भी अच्छी नहीं है क्योंकि पाकिस्स्तान के अधिकतर नेताओं का आज भी यही मानना है कि कश्मीर की पुरानी स्थिति बहाल होने तक हिंदुस्तान के साथ आर्थिक संबंध बहाल नहीं करेंगे. हालांकि, इससे एकतरफा घाटा पाक को ही है.
अब डार के ताजा बयान पर बात करते हैं. उनकी पार्टी पाक मुसलमान लीग-एन के पास अर्ध-शहरी क्षेत्रों में रहने वाले निम्न पूंजीपति वर्गों का समर्थन प्राप्त है. पाक के पूर्व पीएम नवाज शरीफ का राष्ट्र के बड़े उद्योगपतियों के साथ अच्छे संबंध हैं. इसलिए मौजूदा गवर्नमेंट अपनी पार्टी और पूर्व मुखिया के हितों को ध्यान में रखते हुए पाक में व्यापार को फिर से प्रारम्भ करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहती है.
विश्व बैंक ने 2018 में संभावना व्यक्त किया था कि यदि हिंदुस्तान के साथ व्यापार अपनी क्षमता तक पहुंचता है तो पाक का निर्यात 80% तक बढ़ सकता है. उस समय वह राशि करीब 25 अरब $ के बराबर थी.
पाकिस्तान के लिए आज की स्थिति में अरबों $ को छोड़ना सरल नहीं होगा. उसकी अर्थव्यवस्था बेपटरी हो चुकी है. हाल ही में तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 3 अरब $ की आखिरी किश्त सहायता के तौर पर मिली है. हालांकि, आवश्यकता इससे कहीं अधिक है. पीएम शहबाज शरीफ ने संकेत दिया है कि जल्द ही और धन की जरूरत होगी. उन्होंने बोला कि अतिरिक्त नकदी के बिना व्यापक आर्थिक स्थिरता बहाल करना असंभव होगा.
भारत को पाक की कितनी जरूरत?
पाकिस्तान को हिंदुस्तान की आवश्यकता है यह तो हर कोई जानता है, लेकिन उससे यह बहस समाप्त होती नहीं दिख रही है. यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि आखिर हिंदुस्तान को पाक की कितनी आवश्यकता है. आज के समय में हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था स्थिर है. हिंदुस्तान अपने बाजारों को अन्य विकासशील राष्ट्रों के लिए खोलने में उतना इच्छुक नजर नहीं आ रही है.
भारत के लिए पाक की उपेक्षा करने से कोई हानि नहीं है. आज के समय में हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था पाक से 10 गुना अधिक बड़ी है. 1970 के दशक में पाक की प्रति आदमी आय हिंदुस्तान से लगभग दोगुनी थी. हालांकि आज हिंदुस्तान का 50% अधिक है. वहीं, पाक के साथ दोस्ती मौजूदा नरेंद्र मोदी गवर्नमेंट के लिए राजनीतिक तौर पर घाटे का सौदा साबित हो सकता है. क्योंकि 2019 में कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार लड़ाकू विमान को भेजने के बाद प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी दोबारा अधिक बहुमत से गवर्नमेंट बनाने में सफल रहे थे.
ऐसे में अब सारी जिम्मेदारी पाक पर आती है कि वह हिंदुस्तान को व्यापार के लिए मनाए. पाकिस्तानी राजनयिकों को इसके लिए निश्चित रूप से लोकसभा चुनाव संपन्न होने तक प्रतीक्षा करना चाहिए. यदि मोदी फिर से चुने जाते हैं तो वार्ता प्रारम्भ करने का एक अनुकूल क्षण हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि तीसरी बार विरासत संभालने के बाद वह पड़ोसियों को लेकर थोड़े उदार हो सकते हैं.
पाकिस्तान को अधिक निष्क्रिय नहीं होना चाहिए. प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की नवाज शरीफ के साथ काफी अच्छी बनती है. 2015 में वह नवाज शरीफ की पोती की विवाह का न्योता मिलने पर पाक में उनके घर गए थे. ऐसे में दोनों के संबंध दो राष्ट्रों के संबंधों को पटरी पर ला सकती है.