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US Elections 2024: रिपब्लिकन कैंडिडेट की रेस में ट्रंप की जीत के मायने 

Donald Trump US President election analysis: अमेरिका राष्ट्रपति चुनावों के लिए रिपब्लिकन पार्टी के कैंडिडेट की रेस में डोनाल्ड ट्रंप की राह का अंतिम कांटा निकल गया है निक्की हेली के कैंपेन रोकने के बाद ट्रंप विजेता बनकर उभरे ‘सुपर ट्यूजडे’ को अमेरिका के 15 राज्यों की पार्टी प्राइमरी में हार के बाद हेली आउट हो गईं इसे धनबल का बल कहें या फिर ट्रंप की लीगल टीम और कैंपेन टीम का करिश्मा जो 77 की उम्र और 91 गंभीर मुकदमों के बावजूद ट्रंप को उम्मीदवार बनाकर ही मानी इस तरह नवंबर में होने वाले चुनाव में ट्रंप के सामने मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन होंगे

ट्रंप ही क्यों? आपको ये बताएं इससे पहले आपको निक्की हेली के फाइनल स्टेटमेंट पढ़ने की आवश्यकता है जिसमें उन्होंने कहा, ‘कैंपेन रोकने का समय आ गया है मैं चाहती हूं कि अमेरिकियों की आवाज सुनी जाए, मैंने वही किया है मुझे कोई पछतावा नहीं उन चीजों के लिए आवाज उठाना बंद नहीं करूंगी जिनमें मैं विश्वास करती हूं’

हालांकि हेली ने अभी ये साफ नहीं किया है कि वो ट्रंप का समर्थन करेंगी या नहीं? हेली के करीबी लोगों की भिन्न-भिन्न राय है कुछ का मानना है कि ट्रंप का समर्थन करना उनके लिए ठीक रहेगा क्योंकि उन्हें एक टीम के रूप में देखा जाएगा क्योंकि उन्हें ना पसंद करने वालों की भी पार्टी में कमी नहीं है

ट्रंप कैसे एक के बाद एक प्राइमरी जीतते चले गए?

हेली अंतिम तारीख तक ये कहती रहीं कि वो ट्रंप को वॉक ओवर नहीं देंगी हार के बाद भी वो बाजीगर बन गईं क्योंकि उन्होंने रिपब्लिकन प्रेसिडेंशियल प्राइमरी जीतने वाली पहली स्त्री बनकर इतिहास रच दिया वो, डेमोक्रेटिक या रिपब्लिकन प्राइमरी में जीत हासिल करने वाली पहली भारतीय-अमेरिकी हैं जबकि पिछले तीन अन्य भारतवंशी राष्ट्रपति पद के कैंडिडेट- 2016 में बॉबी जिंदल,  2020 में कमला हैरिस और 2024 में विवेक रामास्वामी एक भी प्राइमरी जीतने में सफल नहीं हुए

2024 की रेस में ट्रंप के सामने कौन कौन थे?

77 वर्ष के ट्रंप के सामने रिपब्लिकन पार्टी के कई चेहरे थे प्रमुख नामों की बात करें तो रॉन डेसेंसिट और विवेक रामास्वामी भी रेस में थे सब एक एक करके हटते गए और ट्रंप को अपना समर्थन देते गए ट्रंप ने आयोवा, न्यू हैंपशर, नेवादा, इडाहो, दक्षिण कैरोलिना, मिशिगन और मिसौरी तक में बड़ी जीत दर्ज की वो रिपब्लिकन पार्टी में नामांकन की दौड़ में सबसे आगे रहे 15 जनवरी को आयोवा में रिपब्लिकन पार्टी की पहली कॉकस की वोटिंग में ट्रंप ने बाजी मारी ट्रंप को कॉकस में 51% वोट मिले, जबकि रॉन डेसेंसिट 21% वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे

अमेरिकी मीडिया में जमकर बहस

कुछ जानकारों का बोलना है कि ट्रंप ने पानी की तरह पैसा बहाया उनकी पार्टी का कोई भी अन्य कैंडिडेट धनबल और पब्लिक रिलेशंस को लेकर इतना मजबूत नहीं था जो ट्रंप को भिड़न्त देता कुछ व्यवसायी थे तो कुछ की और विवशता रही होगी इसलिए एक-एक करके सब हटते चले गए और ट्रंप का रास्ता साफ हो गया

अमेरिकी मीडिया भी ट्रंप की दावेदारी पर बंटी नजर आई यूएस मीडिया का ये भी बोलना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन (Joe Biden) की पॉपुलैरिटी कम हुई है मीडिया और सिएना के एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार बाइडेन के लिए शुभ संकेत नहीं हैं

यहां 48% लोगों ने ट्रंप को समर्थन दिया 23% लोगों ने माना कि बाइडेन की दावेदारी से उन्हें कोई परेशानी नहीं है जबकि 26 प्रतिशत लोगों का बोलना था कि वे बाइडेन के काम से असंतुष्ट हैं, लेकिन नाराज नहीं

कॉकस को समझिए

अमेरिका में दो मेन पार्टियां हैं डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन दोनों राष्ट्रपति चुनाव से पहले राष्ट्र के हर राज्य में पार्टी के उम्मीदवार के चयन के लिए पार्टी के अंदर वोटिंग कराती हैं इसी पूरे घटनाक्रम को कॉकस बोला जाता है सभी राज्यों की वोटिंग के बाद ही दोनों पार्टियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में वोटिंग में विजयी उम्मीदवार को पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया जाता है

सेकंड टर्म को लेकर कैसा है माहौल?

सीएनएन की एक हिलाया रिपोर्ट में लिखा है कि ट्रंप ने अमेरिका को सावधान कर दिया है कि यदि वो जीते तो उनका दूसरा कार्यकाल उनके पहले कार्यकाल से भी अधिक विघटनकारी और अशांत होगा इसी रिपोर्ट में आगे लिखा है – ‘2020 के चुनाव में लोकतंत्र का किडनैपिंग कराने और जीत को चुराने की कोशिशों और राष्ट्र की स्वतंत्रता और भाग्य को खतरे में डालने वाले की वापसी दंग कर रही है देशद्रोह जैसे आपराधिक मामलों का सामना कर रहे ट्रंप पर करीब 91 मुकदमा हैं उनकी चुनावी रेस में अविश्वसनीय वापसी अमेरिकी इतिहास में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण चुनावों की ओर इशारा कर रही है

वहींं ट्रंप के विरोधियों का मानना है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति ट्रंप की अवमानना ​​के उनके अबतक के रिकॉर्ड का मतलब है कि राष्ट्र को भविष्य में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है

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