झारखण्ड

जिस गीता कोड़ा को BJP ले आई, वो ग्रामीणों के बीच घिरीं

तारीख 14 अप्रैल- झारखंड के सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र का बीहड़ क्षेत्र गम्हरिया प्रखंड के मोहनपुर गांव में बीजेपी प्रत्याशी गीता कोड़ा ग्रामीणों के बीच घिर गईं. ग्रामीणों के हाथ में पारंपरिक हथियार जिसमें तीन- धनुष, हसुआ, गड़ासा था. सांसद की सुरक्षा में तैनात अधिकारी ग्रामीणों को समझाने का कोशिश कर रहे थे. ग्रामीणों का इल्जाम है कि सांसद बनने के बाद गीता कोड़ा एक बार भी क्षेत्र में नहीं आई. अब जब लौटी तो पार्टी बदलकर लौटी हैं.

तारीख 15 अप्रैल- चाईबासा में एक छोटी सभा को संबोधित करते हुए जेएमएम उम्मीदवार जोबा मांझी कहती हैं- ग्रामीणों को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए वो स्त्री हैं, लेकिन गीता कोड़ा ने भाजपा में शामिल होकर सबका भरोसा तोड़ा है. हम सभी के योगदान से उन्हें दिल्ली भेजा गया था. वह जीत उनकी अपनी जीत या ताकत नहीं थी.

सिंहभूम में ग्रामीणों के इस विरोध ने हवा कुछ बदल दी है. अब केवल विकास, पलायन, राममंदिर, मोदी और सरकारी योजना पर ही बात नहीं हो रही है. इस पर भी चर्चा हो रही है. पहले भाजपा इस सीट को अधिक टफ मानकर नहीं चल रही थी, लेकिन अब उसे और बल लगाना पड़ रहा है. वहीं, जेएमएम और कांग्रेस पार्टी को मामला मिल गया है.

सिंहभूम से कांग्रेस पार्टी सांसद रहीं गीता कोड़ा चुनाव के ऐन समय पर भाजपा में शामिल हुई थीं. छह दिन बाद भाजपा ने उन्हें सिंहभूम से ही टिकट दे दिया. गीता कोड़ा पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी हैं. दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से मनोहरपुर की विधायक और मंत्री जोबा मांझी मैदान में हैं. कांग्रेस पार्टी से यह सीट जेएमएम ने ली है. यह पहली बार हो रहा है, जब दो महिलाएं एक ही क्षेत्र की हैं, और इस सीट पर चुनाव लड़ रही हैं. सिंहभूम सीट पर एक मिथक यह भी है कि यहां पर जनता हर बार चेहरा बदल देती है.

ये तस्वीर 14 अप्रैल की है, जब गीता कोड़ा गम्हरिया प्रखंड के मोहनपुर चुनाव प्रचार में पहुंची थीं, लोगों ने पारंपरिक हथियार के साथ उनका रास्ता रोका था.

इस क्षेत्र में 70 प्रतिशत से अधिक की जनसंख्या ग्रामीण है. यह सुरक्षित सीट है. सिंहभूम का क्षेत्र नक्सल प्रभावित है. पहले मामला नक्सल, रोजगार और पलायन होता था. अब उसकी चर्चा तो हो रही है, लेकिन गीता कोड़ा की अधिक है. पिछले कार्यकाल में क्षेत्र की अनदेखी और गीता कोड़ा के पार्टी बदलने से वोटर्स नाराज हैं. गीता की इमेज उनके पति और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की वजह से पहले जैसी नहीं रही.

दैनिक मीडिया की टीम महुलडीहा के रास्ते बिल्ला गांव पहुंची. बरगद की पेड़ के नीचे बैठे मंगल लांगुरी बताते हैं कि हमारे लिए चुनावी मामला तो बस सर्वांगीण विकास है. बिजली, पानी, सड़क जैसी सामान्य जरूरतें पूरी हों. वह यह भी कहते हैं कि उम्मीदवार जो भी जीते वो हमारा हाल जानने जरूर पहुंचे. यहां से जो भी जीत कर जाता है, वह वापस नहीं आता. वर्तमान सांसद जीत कर जाने के बाद एक बार भी वापस नहीं आईं.

इसी स्थान पर हमारी मुलाकात होती है बामिया लांगुरी से. वो कहते हैं कि हम लोकसभा के जिस क्षेत्र से आते हैं, वहां रोजगार बड़ी परेशानी है. मौसमी खेती और वन उपज से हमारा जीवन चलता है. ऐसे में आवश्यकता रोजगार की है. वो कहते हैं- हमारे क्षेत्र में पहुंचने वाली मुख्य सड़क तो अच्छी है, लेकिन गांव तक जाने वाली सड़क जर्जर स्थिति में है. पेयजल की भी कठिनाई है. पेयजल की परेशानी काफी पुरानी है. सोलर पैनल बेस्ड एक पेयजल पॉइंट है. इससे 20 परिवार की प्यास ही बुझती है.

गीता कोड़ा को किससे मिल रही मजबूती

गीता कोड़ा के साथ दो बड़े प्लस पॉइंट हैं, जो उन्हें मजबूती दिए हुए हैं. पहला उनका आदिवासियों के हो समुदाय से आना. यह जनसंख्या इस लोकसभा में काफी अधिक है. दूसरा- मोदी का चेहरा. ज्यादातर जनरल और ओबीसी वोटर्स मोदी के कार्यों पर बात करते हैं. राममंदिर के मुद्दों पर वे साथ दिखते हैं. गीता कोड़ा भी इसी सहारे अपनी जीत देख रही हैं.

मोदी की गारंटी पर लोगों को भरोसा-गीता कोड़ा

चुनाव को लेकर गीता कोड़ा कहती हैं कि सिंहभूम की जनता काफी उत्साहित है. कई जगहों का मैंने दौरा किया. लोग स्वयं मोदी जी की गारंटी ले रहे हैं. लोग स्वयं कह रहे हैं कि उन्होंने केंद्र की योजनाओं का फायदा लिया है. राम मंदिर कितना बड़ा मामला है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहती हैं कि यह बड़ा मामला है. जो मंदिर नहीं बन रहा था वह बना. यह मोदी की गारंटी है. लोगों का इस पर विश्वास है.

जोबा के लिए मुख्यमंत्री चंपाई पूरा बल लगा रहे

जेएमएम प्रत्याशी जोबा मांझी को सबसे अधिक मजबूती मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन से मिल रही है. चंपाई इसी सिंहभूम लोकसभा से आते हैं. इस लोकसभा में आने वाली सरायकेला से विधायक हैं. दूसरी बात यह है कि जोबा मांझी जिस आदिवासियों के संथाली समुदाय से आती हैं, उसी से मुख्यमंत्री भी आते हैं. गृह क्षेत्र होने की वजह से चंपाई हर हाल में यह सीट जेएमएम के खाते में लाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं. इस क्षेत्र में उनकी आवाजाही और बैठकें अधिक बढ़ गई हैं.

इसके अतिरिक्त एक जरूरी बात यह भी है कि सिंहभूम लोकसभा में छह विधानसभा की सीट है. जिनमें पांच सीट ऐसी है, जहां जेएमएम के विधायक हैं. वहीं एक सीट कांग्रेस पार्टी के खाते है. जिन सीटों में जेएमएम के विधायक हैं उनमें चक्रधरपुर, चाईबासा, सरायकेला, मझगांव और मनोहरपुर विधानसभा सीटें शामिल हैं. वहीं जगन्नाथपुर सीट से कांग्रेस पार्टी के सोना राम सिंकू ने जीत हासिल की है.

इधर, कांग्रेस पार्टी गीता कोड़ा से हिसाब चुकता करने में जुटी है. इसलिए कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ता पूरी तरह से गठबंधन के प्रत्याशी जोबा मांझी के पक्ष में लामबंद हैं. जोबा मांझी और जेएमएम का उत्साह इसलिए अधिक है कि इस सीट पर कोई भी सांसद रिपीट नहीं हुआ है.

पूरे क्षेत्र में स्वीकार्यता बनाना जोबा के लिए सबसे बड़ी चुनौती

जोबा मांझी के सामने दो दिक्कतें हैं. पहला- इनका कनेक्ट केवल मनोहपुर के संथाली वाले क्षेत्र में रही है. पूरी स्वीकार्यता लोकसभा क्षेत्र में नहीं है. यह अलग बात है कि जेएमएम-कांग्रेस के लिए ‘नाक’ वाली सीट होने की वजह से उनकी स्थिति थोड़ी मजबूत है.

दूसरा- बतौर उम्मीदवार उनके नाम की घोषणा में काफी देर हुई. जब तक इनके नाम पर मुहर लगी, तब तक बीजेपी उम्मीदवार गीता कोड़ा लोगों तक पहुंच चुकी थीं. अभी भी जोबा मांझी का कैंपेन उस तरह से नहीं चल रहा है, जैसा विपक्षी कर रहे हैं.

5 बार से जनता के बीच हूं-जोबा मांझी

लोकसभा चुनाव को लेकर जोबा मांझी ने कहा- पलायन, रोजगार, नक्सलवाद जैसे विषय जरूर हैं लेकिन यह किसी एक लोकसभा या क्षेत्र की बात नहीं है. यह हर स्थान है. जहां तक रही बात विपक्ष के मजबूत होने के दावे की तो पांच बार से जनता के बीच हूं. मैं जनता को सर्वोपरि मानती हूं. जोबा मांझी या जेएमएम के प्रत्याशी को लोग नहीं जानते, ऐसा नहीं है.

सिंहभूम में कांटे की भिड़न्त होगी

सिंहभूम लोकसभा सीट को लेकर वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ चौधरी ने बोला कि निश्चित रूप से इस बार के चुनाव में कांटे की भिड़न्त वाली होगी. इसके पीछे कई वजह है. यदि बात करें गीता कोड़ा की तो वह ‘हो’ समुदाय से आती हैं. ‘हो’ समुदाय वहां निर्णायक किरदार में रहती है. दूसरी बात यह है कि ग्राउंड पर गीता कोड़ा, महागठबंधन के उम्मीदवार के मुकाबले लंबे समय से हैं. उनके पास बतौर सांसद काम करने का अनुभव भी है. बाकी राम मंदिर, मोदी लहर और चार सौ पार तो मामला है ही.

वोटर्स भी कम ही बात करते हैं

दैनिक मीडिया की टीम चक्रधरपुर पहुंची. यहां नगर परिषद के पास लोगों की भीड़ जमा थी, लेकिन चुनावी चर्चा कम थी. हमने लोगों से क्षेत्र का मामला जानना चाहा तो भीड़ से एक आदमी ने यह कहकर इंकार कर दिया की हम मीडिया वाले से नहीं बात करेंगें, उसका इतना बोलना था कि भीड़ में सभी लोगों ने एक-एक कर इनकार कर दिया. नाराजगी की वजह पूछा तो बोलने लगे कोई लाभ नहीं है. साथ ही यह भी हिदायत दे दी कि ग्रामीण इलाकों में आपके माइक पर तो कोई बात नहीं करेगा. साथ ही एक राय भी दे दी कि बीहड़ इलाकों में माइक निकालने से बचेंगे तो आपके लिए बेहतर होगा.

चक्रधरपुर से हटकर हम मुद्दों को समझने के लिए गांव का रुख करते हैं. 15 किमी दूर कुईड़ा गांव पहुंचे. यहां गांव में लोग मुंडारी, उड़िया में बात करते हैं. इन 5 घंटे में हमने जिन क्षेत्र में यात्रा की वह घनघोर नक्सल क्षेत्र है. शहर के आए आदमी और उसके हावभाव को देखते ही लोग हटने लगते हैं. बात करने से कतराते दिखें. आप इस बात का एकदम भी अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि आप जिससे बात कर रहे हैं वो आम जनता है या पार्टी (नक्सली संगठन) का आदमी.

वोटिंग पैटर्न समझने के लिए क्षेत्र को समझिए

सिंहभूम लोकसभा में वोटिंग का पैटर्न क्या है, इसे समझने के लिए पहले क्षेत्र को जानना महत्वपूर्ण है. इस लोकसभा को हम दो हिस्से में बांटते हैं. एक क्षेत्र शहरी है, जिसकी संख्या कम है. यहां लोग राम मंदिर को जान रहे हैं. बात भी करते नजर आते हैं. मोदी की गारंटी पर भी चर्चा करते हैं. 400 पार के आंकड़े के दावे भी करते हैं. जबकि, इसके ठीक इतर ग्रामीण क्षेत्र स्वयं की समस्याओं में उलझा हुआ है.

रोजमर्रा की जद्दोजहद में लोग लगे हैं. उसे न राम मंदिर से मतलब है, न सीएए-एनआरसी समझ आता है और न ही चार सौ पार की कहानी समझ आती है. अभी महुआ और इमली का मौसम है तो लोग उसे जमा करने और बेचने का काम कर रहे हैं. इनकी भाषा को लेकर परेशानी है तो अपनी बात भी नहीं रख पाते. पर अनेक बातों के बीच जो मामले साफ नजर आए वो पलायन, रोजगार और सर्वांगीण विकास है.

पहाड़ों और जंगलों के बीच बसे भरगांव पहुंचे. यहां छोटा सा बाजार लगता है. यहां हमें मिलते हैं बाबूलाल कोड़ा. ये बेड़ादवी गांव के रहने वाले हैं. चुनाव में मामला क्या है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि शिक्षा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. रोजगार-पलायन क्षेत्र में काफी है. वो बताते हैं कि उपचार के लिए कम से कम आपको 10 किमी की दूरी तय करनी होती है. नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से गांव तक जाने वाली अधिकतर सड़कें कच्ची हैं. यही वजह है कि वहां तक एंबुलेंस नहीं पहुंचती है. वो कहते हैं कि गांव में राम मंदिर मामला नहीं है.

इसी बाजार में मिलते हैं घनश्याम साहू. बाजार में जूस, आइसक्रीम आदि की दुकान लगाते हैं. मामले से जुड़े प्रश्न पूछने से पहले ही कहते हैं, हम तो भाजपा के सपोर्टर हैं. इसके पीछे की वजह पूछे जाने पर बताते हैं कि हमलोग खानदानी भाजपा को सपोर्ट करने वाले हैं. घनश्याम का मानना है कि उनके क्षेत्र में कोई परेशानी नहीं है.

शहर की जनता के बीच राम मंदिर प्रभावी

सिंहभूम लोकसभा के गांव को समझने के बाद हम पहुंचते हैं चक्रधपुर चौक. व्यस्त जगह. यहीं चौक के पास एक कपड़े की दुकान में मिलते हैं धमेंद्र केजरीवाल. मामले की बात पूछ जाने पर स्पष्ट रूप से कहते हैं कि मोदी जी से लोगों को काफी उम्मीदें हैं. वो राम मंदिर के असर की बात भी करते हैं. कहते हैं कि इसका फायदा भी क्षेत्र में देखने को मिलेगा. हालांकि, इन सब बातों के साथ वे विकास और रोजगार को भी मामला मानते हैं.

इस क्षेत्र में बेरोजगारी परेशानी है. चक्रधरपुर का विकास होना चाहिए. फैक्ट्रियां होनी चाहिए. यह बोलना है हेमंत जैन का. व्यापार से जुड़े हैं. कहते हैं कि क्षेत्र का विकास होगा तभी व्यापार का विकास होगा. GST इनके लिए मामला नहीं है. लेकिन, राम मंदिर को लेकर वे सकारात्मक सोच रखते हैं. यही पर सतीश कहते हैं कि रोजगार बड़ा मामला है. राम मंदिर के प्रश्न पर कहते हैं कि यह अच्छी चीज है. हिंदुओं के लिए तीर्थ स्थल है.

तीन सालों में बंद हुईं 30 फैक्ट्रियां और माइंस

पूरे लोकसभा क्षेत्र में आदित्यपुर का क्षेत्र इंडस्ट्री के लिए जाना जाता है. जानकार बताते हैं कि कभी यहां सैकड़ों छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां हुआ करती थी. अब तो ऊंगलियों पर काउंट की जा सकती हैं. पूरे लोकसभा का व्यापार और रोजगार इसी आदित्यपुर पर निर्भर था, लेकिन बीते तीन से पांच वर्षों के भीतर एक दर्जन से अधिक फैक्ट्रियां बंद हो गईं.

पूरा क्षेत्र लौह अयस्क माइनिंग का है. लेकिन, इनका भी हाल बेहाल है. 30 से अधिक लौह अयस्क खदान बंद हो चुकी हैं. लगभग एक लाख लोग प्रत्यक्ष रूप से रोजगार से जुड़े हुए थे, लेकिन आज स्थिति यह है कि सभी बेरोजगार हो चुके हैं. कई लोग तो अब पलायन करके दूसरे राज्यों में चले गए हैं.

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