23 साल के झारखंड की राजनीति में केवल एक बार बसपा का बना विधायक
रांची: रिपब्लिकन पार्टी के साथ-साथ बसपा की राजनीति भी दलित केंद्रित है। यूपी में जनाधार रखनेवाली बीएसपी या महाराष्ट्र में संघर्ष कर रही रिपब्लिकन पार्टी का झारखंड की राजनीति में जनाधार नहीं है। 23 वर्ष के झारखंड की राजनीति में सिर्फ़ एक बार ही बीएसपी का विधायक बन पाया है। हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र से कुशवाहा शिवपूजन मेहता एक बार विधायक चुने गये थे। इसके बाद बीएसपी या आरपीआइ का कोई भी विधायक या सांसद नहीं बना है। पूरे राष्ट्र के साथ-साथ झारखंड के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल भी अनुसूचित जाति की राजनीति करते हैं। उनके अधिकार की आवाज उठाते रहते हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने सभी सीटों से चुनाव लड़ा था। इस पार्टी को 2.34 प्रतिशत मत ही मिल पाया था। पिछले लोकसभा चुनाव में भी बीएसपी ने सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी। हालांकि एक भी प्रत्याशी नहीं जीत पाये थे।
आजादी के बाद आंबेडकर सांस्कृतिक और सियासी गतिविधियों के केंद्र बिंदु थे
बाबा साहेब डॉ भीम राव आंबेडकर आजादी के बाद हिंदुस्तान की सांस्कृतिक और सियासी गतिविधियों के केंद्र बिंदु थे। उन्होंने समाज के विशेष वर्ग के उत्थान को लेकर जीवनभर काम किया। समाज को आगे ले जाने के लिए कई कोशिश किये। एक सामाजिक संगठन को सियासी रूप देने की प्रयास की। बाबा साहेब ने सबसे पहले 15 अगस्त 1936 को इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (आइएलपी) की स्थापना की थी। इसने हिंदुस्तान में जाति और पूंजीवादी का विरोध किया। भारतीय मजदूर वर्ग का समर्थन किया और हिंदुस्तान में जाति को समाप्त करने की मांग की। अंबेडकर का विचार था कि जाति सिर्फ़ ‘श्रम का विभाजन’ नहीं है, बल्कि श्रेणीबद्ध असमानता पर आधारित ‘श्रमिकों का विभाजन’ है। 1937 के प्रांतीय चुनावों में आइएलपी ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसमें पार्टी 14 सीटों पर जीती थी। इसमें 11 सीटें शामिल थीं, जो पारंपरिक रूप से उत्पीड़ित समुदायों के लिए आरक्षित थी।
1942 में एससीएफ की स्थापना की थी
बाबा साहेब ने 1942 में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन (एससीएफ) की स्थापना की। सम्मेलन में अखिल भारतीय एससीएफ की कार्यकारिणी का चुनाव किया गया। मद्रास के एन शिवराज को अध्यक्ष और मुंबई के पीएन राजभोज को महासचिव चुना गया। यह गैर सियासी संगठन था। 30 सितंबर 1956 को बीआर आंबेडकर ने अनुसूचित जाति महासंघ को बर्खास्त करके रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया की स्थापना की घोषणा की थी। लेकिन पार्टी गठन से पहले ही छह दिसंबर 1956 को उनकी मौत हो गयी थी।
बाबा साहेब ने अधिकार के लिए लड़ना सिखाया
बाबा साहेब ने हम लोगों को अपने अधिकार लिए लड़ना सिखाया। उनके दर्शन नहीं होते, तो एक वर्ग आज भी दलित और वंचित ही रहता। बाबा साहेब के बताये रास्ते पर चलकर ही हम लोग कर्मियों के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आज हम लोगों को कई तरह के कानूनी अधिकार मिले हैं। जॉब में आरक्षण हो या अन्य सुविधाएं, सब उनके कारण ही हुए हैं। आज हम लोग उनके बताये रास्ते पर चल रहे हैं। लोगों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। यह स्थिति उनके आवाज उठाने से पहले नहीं थी। उनके कारण हम लोगों को जो अधिकार मिला, इससे राष्ट्र भी आगे बढ़ रहा है। समाज बदल रहा है।
बाबा साहेब कल भी प्रासंगिक थे, आगे भी रहेंगे : अमर बाउरी
नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी ने बोला कि डॉ बाबा साहेब आंबेडकर को पूरी दुनिया जानती है। उनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा। इसके बावजूद जब राष्ट्र का संविधान लिखने का मौका मिला, तो उन्होंने किसी भी कटु अनुभव को संविधान निर्माण में शामिल नहीं होने दिया। संविधान में इनके कटु अनुभव की कही भी छाया नहीं दिखती है। बाबा साहेब ने एक ऐसे संविधान की रचना की, जिससे हिंदुस्तान आज विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र रूप में स्थापित हुआ है। उन्होंने सभी को समान अवसर दिलाने की बुनियाद रखी। यदि संविधान निर्माता संसद में जाते, तो उनके अनुभव और ज्ञान से संसद की कार्यवाही और मजबूत होती। बाबा साहेब कल भी प्रासंगिक थे। आज भी हैं और आगे भी रहेंगे।
आंबेडकर दर्शन ने दलितों को राजनीति की मुख्यधारा से जोड़ा
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर अंतिम सांस तक जातीय भेदभाव पर चोट करते रहे और दलितों के अधिकार की लड़ाई लड़ते रहे। यही कारण है कि वे धीरे-धीरे एक सियासी प्रतीक बन गये। दलित समाज संख्या में अधिक है। इसलिए सभी सियासी पार्टियां दलितों को अपनी तरफ आकर्षित करने में लगी हैं। इसे समझने के लिए बाबा साहेब के नाम पर प्रारम्भ हुई उस राजनीति को समझना महत्वपूर्ण है। आंबेडकर के बाद दलितों के अधिकार की लड़ाई अधिक सतर्क होकर लड़ी जा रही है। पिछले तीन दशकों से बाबा साहेब के जरिये राष्ट्र की ज्यादातर सियासी पार्टियों ने अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की प्रयास की है।
बाबा साहेब हमेशा से पिछड़े तबकों को इन्साफ दिलाने के पक्षधर रहे थे। हम सबको उनके सपनों को हर हाल में पूरा करने का कोशिश करना चाहिए।
दिव्यांशु
आज के प्रतिनिधियों को बाबा साहेब से सीख लेने की आवश्यकता है। आंबेडकर ने समाज के निचले तबके के आदमी को ध्यान में रखकर नीतियां बनायी।
हिमांशु
संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। नीति निर्माताओं को उनका अनुसरण करना चाहिए। इससे समाज को फायदा मिलेगा।
शिवम शाहदेव