Charles Robert Darwin Death Anniversary : पुण्यतिथि पर जानें इनका जीवन परिचय
संक्षिप्त परिचय
चार्ल्स डार्विन का जन्म 12 फ़रवरी, 1809 को इंग्लैंड में हुआ था. इनका पूरा नाम चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन था. ये अपने माता-पिता की पांचवी संतान थे. डार्विन एक बहुत ही पढ़े लिखे और अमीर परिवार में पैदा हुए थे. उनके पिता राबर्ट डार्विन एक जाने माने चिकित्सक थे. डार्विन जब महज 8 वर्ष के थे तो उनकी माता की मौत हो गई थी.
पुरस्कार
- डार्विन को रॉयल मेडल से 1853 में सम्मनित किया गया था.
- वोलस्टन मेडल से 1859 में डार्विन को सम्मनित किया गया.
- चार्ल्स डार्विन को कोप्ले मेडल 1864 में दिया गया था.
चार्ल्स डार्विन क्राइस्ट कॉलेज में थे तभी प्रोफेसर जॉन स्टीवन से उनकी अच्छी दोस्ती हो गई थी. जॉन स्टीवन भी डार्विन की ही तरह प्रकृति विज्ञान में रूचि रखते थे. 1831 में जॉन स्टीवन ने डार्विन को कहा कि एच. एम. एस. बीगल नाम का जहाज प्रकृति विज्ञान पर अध्ययन के लिए लंबी समुंद्री यात्रा पर जा रहा है और डार्विन भी में इसमें जा सकते है क्योंकि उनके पास प्रकृति विज्ञान की डिग्री है. डार्विन जाने के लिए तुरंत तैयार हो गए. एच. एम. एस. बीगल की यात्रा दिसंबर, 1831 में प्रारम्भ हुई होकर 1836 में समाप्त हुई.
क्रमविकास का सिद्धांत
एच. एम. एस. बीगल की यात्रा के बाद डार्विन ने पाया कि बहुत से पौधों और जीवों की प्रजातियों में आपस का संबंध है. डार्विन ने महसूस किया कि बहुत सारे पौधों की प्रजातियां एक जैसी हैं और उनमें सिर्फ़ थोड़ा बहुत फर्क है. इसी तरह से जीवों और कीड़ों की कई प्रजातियां भी बहुत थोड़े फर्क के साथ एक जैसी ही हैं.
निधन
चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन की मौत 19 अप्रैल, 1882 को डाउन हाउस, डाउन, केंट, इंग्लैंड में हुई थी. एनजाइना पेक्टोरिस की रोग की वजह से दिल में संक्रमण फैलने के बाद उनकी मौत हो गयी थी. सूत्रों के मुताबिक एनजाइना अटैक और दिल का बंद पड़ना ही उनकी मौत का कारण बना.
- अपने परिवार के लिये उनके आखिरी शब्द थे
- “मुझे मौत से जरा भी डर नही है– तुम्हारे रूप में मेरे पास एक सुंदर पत्नी है– और मेरे बच्चो को भी बताओ की वे मेरे लिये कितने अच्छे है.”
- उन्होंने अपनी ख़्वाहिश व्यतीत की थी उनकी मौत के बाद उन्हें मैरी चर्चयार्ड में दफनाया जाये लेकिन डार्विन बंधुओ की प्रार्थना के बाद प्रेसिडेंट ऑफ़ रॉयल सोसाइटी ने उन्हें वेस्टमिनिस्टर ऐबी से सम्मानित भी किया. इसके बाद उन्होंने अपनी सेवा कर रही नर्सो का भी शुक्रियादा किया. और अपने आखिरी समय में साथ रहने के लिये परिवारजनों का भी शुक्रियादा किया. उनकी आखिरी यात्रा 26 अप्रैल को हुई थी जिसमे लाखो लोग, उनके सहकर्मी और उनके सह वैज्ञानिक, दर्शनशास्त्री और शिक्षक भी उपस्थित थे.