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दिल्ली सरकार को न्यायिक सेवा अधिकारियों के लिए घरों की पर्याप्त व्यवस्था करवाने के लिए किया गया नोटिस जारी

दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार (2 मई) को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और दिल्ली गवर्नमेंट को न्यायिक सेवा के ऑफिसरों के लिए घरों की पर्याप्त प्रबंध करवाने के लिए नोटिस जारी किया है.

जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोरा की बेंच ने मुद्दे को लेकर हिंदुस्तान सरकार, कानून और इन्साफ मंत्रालय, दिल्ली गवर्नमेंट के मुख्य सचिव और रजिस्ट्रार जनरल से उत्तर मांगा है.

मामले की अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी.

याचिका में दलील- आधे ऑफिसरों के पास सरकारी घर नहीं
ज्यूडिशियल सर्विस एसोसिएशन दिल्ली ने याचिका दाखिल करते हुए न्यायालय को कहा कि अभी दिल्ली में न्यायिक ऑफिसरों की कुल संख्या 823 है. लेकिन न्यायिक ऑफिसरों के लिए सिर्फ़ 347 घर ही हैं.

यह आंकड़े दिखाते हैं कि दिल्ली में न्यायिक ऑफिसरों के लिए सरकारी घर मिलने वाली स्थिति बहुत खराब है. यह परेशानी पुरानी है और अब समय आ गया है कि इस मांग को पूरा किया जाए.

याचिकाकर्ता ने बोला 1958 की 14वें विधि आयोग की रिपोर्ट में न्यायिक ऑफिसरों के लिए सरकारी आवास की कमी और ऑफिसरों को किराए के आवास में रहने की विवशता के बारे में कहा गया था.

याचिका में आगे बोला गया कि आज भी हालात बदले नहीं हैं. ऑफिसरों को अच्छे घर के लिए तनाव और दबाव की स्थिति से गुजरना पड़ता है.

किराए के घर के लिए मिलने वाला भत्ता बाजार दर से काफी कम
किराए के आवास के लिए ऑफिसरों को बेसिक सैलरी का 27% भुगतान किया जाता है जो मौजूदा बाजार दर से काफी कम है. याचिकाकर्ता ने बोला कि जो अधिकारी अपने परिवार के साथ रहते हैं उन्हें घर के लिए और अधिक परेशान होना पड़ता है. कई अधिकारी फरीदाबाद, नोएडा और गाजियाबाद जैसे दूर के इलाकों में रहने के लिए विवश हैं.

याचिका में यह भी बोला गया कि सेंट्रल और स्टेट सर्विस के ऑफिसरों के लिए जारी किए आवास की संख्या न्यायिक ऑफिसरों के आवास से कई अधिक है. ऐसे में जब तक महत्वपूर्ण आवास की प्रबंध नहीं की जाती, न्यायिक ऑफिसरों को सेंट्रल और स्टेट सर्विस के आवासों में रहने की परमिशन दी जाए.

सुप्रीम न्यायालय का हमनाम उम्मीदवारों पर रोक लगाने से इनकार

सुप्रीम न्यायालय ने चुनाव में एक जैसे नाम वाले उम्मीदवारों पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है. शुक्रवार को जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सतीश चंद्रा और जस्टिस संदीप शर्मा की बेंच ने बोला कि यदि किसी का नाम राहुल गांधी या लालू यादव है तो उन्हें चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता.

‘गो हैंग योरसेल्फ’ बोलना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बोला है कि ‘गो हैंग योरसेल्फ’ कहने को आत्महत्या के लिए उकसाने वाला बयान नहीं बोला जा सकता.

जस्टिस एम नाग प्रसन्ना ने उडुपी के एक पादरी की आत्महत्या के मुद्दे में सुनवाई करते हुए ये बात कही.

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