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सात वर्षों में पूर्वांचल ने विकास के नए आयामों को दिया जन्म

लखनऊ . आजादी के बाद आई सियासी उदासीनता ने पूर्वांचल से विकास की चमक को लगातार कम किया. मानों सूरज अस्त हो रहा हो, लेकिन पिछले सात सालों में इस क्षेत्र में हुए विकास ने एक आस जगाई है. पूर्वांचल अब विकास के साथ चल पड़ा है. एक-एक कर बंद होने वाली चीनी मिलों के दिन तो अब बहुर ही रहे हैं, 1990 में बंद होने वाला गोरखपुर खाद कारखाना भी चल पड़ा है.

गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) और नोएडा की स्थापना एक ही मकसद से एक ही साथ हुई थी, लेकिन दोनों के विकास में जमीन-आसमान का अंतर था, जो अब भरना प्रारम्भ हुआ है.

वरिष्ठ सियासी विश्लेषक गिरीश पांडेय कहते हैं कि सात वर्ष के दौरान सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिनिधित्व में बहुत कुछ बदल गया है. बतौर सांसद उन्होंने गोरखपुर को केंद्र मानकर पूर्वांचल के विकास के मामले में जो सोचा था, संकल्पना की थी. उसे साकार कर साबित किया कि उनमें कल्पना के साथ उन्हें साकार करने का माद्दा भी है. लगातार जारी बदलावों की वजह से अब पूर्वांचल के माथे से पिछड़ेपन का दाग मिटने लगा है.

उन्होंने बोला कि बुनियादी ढांचे के सुदृढ़ीकरण, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा क्षेत्र के कायाकल्प, शिक्षा क्षेत्र के हब और औद्योगिक वातावरण के सृजन के साथ ही हर एक क्षेत्र में पूर्वी यूपी अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ कदमताल कर रहा है. पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे, बलिया लिंक एक्सप्रेसवे समेत सिक्स और फोरलेन सड़कों के संजाल ने इस पिछड़े क्षेत्र की सीधी और सुगम पहुंच प्रदेश और राष्ट्र की राजधानी तक कर दी है.

सरकार ने इस क्षेत्र के एयर कनेक्टिविटी को भी फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया है. कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट और आजमगढ़ में हवाई अड्डेे का सपना साकार किया.

वरिष्ठ सियासी विश्लेषक अमोदकांत मिश्रा बताते हैं कि पूर्वी यूपी में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल था. उस पर 1978 में दस्तक देने वाली इंसेफेलाइटिस ने हर वर्ष हजारों नौनिहालों को लीलना प्रारम्भ कर दिया. रोगियों के बोझ और संसाधनों के अभाव में उपचार का एकमात्र केंद्र गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज स्वयं ही बीमार हो गया था.

इंसेफेलाइटिस के अतिरिक्त डेंगू, कालाजार, हैजा जैसी रोंगों का तांडव अलग था. यह सिलसिला 2016 तक बदस्तूर जारी रहा, लेकिन बीते सात साल में स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्र में न सिर्फ़ आमूलचूल बदलाव आया, बल्कि यह क्षेत्र स्वयं में मेडिकल हब के रूप में विकसित होने लगा.

अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ होने का सिलसिला चल रहा है. गवर्नमेंट ने पीएचसी स्तर पर इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर बनाकर इस रोग पर 95 फीसदी तक काबू पा लिया है. बीआरडी मेडिकल कॉलेज पर भी बोझ कम हुआ है. अब यहां सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक जैसी सुविधा मौजूद है. हर जिले को मेडिकल कॉलेज की सौगात मिल चुकी है. इनमें से अधिकतर ने रोगियों की सेवा भी प्रारम्भ कर दी है. इन मेडिकल कॉलेजों से रोगियों का पूर्णत: उपचार हो रहा है.

बड़ी संख्या में एमबीबीएस की सीटें मिलने से युवाओं को करियर का बहुत बढ़िया विकल्प भी मिला है. गोरखपुर में स्थापित एम्स समूचे पूर्वी यूपी के साथ बिहार और नेपाल तक के करोड़ों लोगों के लिए संजीवनी साबित हो रहा है. उन्होंने ने कहा कि पूर्वांचल की अर्थव्यवस्था पूरी तरह कृषि आधारित है. यहां गन्ने की प्रचुर खेती के कारण ही इसे चीनी का कटोरा बोला जाता था. लेकिन, हुक्मरानों की उपेक्षा के कारण चीनी मिलें एक-एक कर बंद होने लगीं.

योगी गवर्नमेंट ने न सिर्फ़ बस्ती जिले के मुंडेरवा और गोरखपुर के पिपराइच में हाईटेक चीनी मिलें खोलीं, बल्कि आजमगढ़ की चीनी मिल की क्षमता का विस्तार भी किया. पिपराइच और मुंडेरवा की मिलें सल्फरलेस चीनी बनाती हैं, साथ ही कोजेन प्लांट से बिजली उत्पादन में भी आत्मनिर्भर हैं. किसानों के भलाई में ही गोरखपुर में दशकों से बंद खाद कारखाने की स्थान दोगुनी क्षमता का नया कारखाना प्रारम्भ हुआ है. किसानों की बड़ी परेशानी सिंचाई की रही है. इसके लिए सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना पूर्वी यूपी के किसानों को समर्पित कर दी गई है. पर्याप्त बिजली मिलने से उन इलाकों में भी सिंचाई का संकट खत्म हुआ है, जहां निजी ट्यूबवेलों पर ही निर्भर रहना पड़ता है.

आजमगढ़ में तो महाराजा सुहेलदेव के नाम पर यूनिवर्सिटी बन गया है. गोरखपुर में सैनिक विद्यालय और स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट का अकल्पनीय उपहार मिला है. प्रदेश का पहला आयुष यूनिवर्सिटी भी पूर्वांचल के गोरखपुर में ही स्थापित हुआ है. अब पढ़ाई के लिए पूर्वी यूपी के युवाओं को बाहर जाने की आवश्यकता नहीं रह गई है.

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