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अहिरावण को मारने के लिए हनुमान जी ने धारण किया था पंचमुखी स्वरूप

 मंगलवार, 23 अप्रैल को हनुमान जी का प्रकट उत्सव है. त्रैतायुग में चैत्र पूर्णिमा पर माता अंजनी और वानर केसरी के यहां हनुमान जी का अवतार हुआ था. हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा पर हनुमान जी के भिन्न-भिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है. हनुमान जी का एक स्वरूप है पंचमुखी. ये स्वरूप बहादुरी और साहस का प्रतीक है. जो लोग इस स्वरूप की पूजा करते हैं, उनका अनजाना भय दूर होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है और कामयाबी मिलती है. ऐसी मान्यता है.

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं मनीष शर्मा के मुताबिक, हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप में उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख और पूर्व दिशा में हनुमान मुख है.

पंचमुखी स्वरूप की कथा हनुमान जी और अहिरावण से जुड़ी है. पौराणिक कथा के मुताबिक श्रीराम और रावण का युद्ध के समय रावण के यौद्धा श्रीराम को रोक नहीं पा रहे थे. तब रावण ने अपने मायावी भाई अहिरावण को बुलाया.

अहिरावण मां भगवती का भक्त था. उसने अपनी माया रची और श्रीराम-लक्ष्मण सहित पूरी वानर सेना को बेहोश कर दिया. इसके बाद वह श्रीराम-लक्ष्मण को पाताल ले गया और बंदी बना लिया.

जब अहिरावण युद्ध भूमि से चला गया तो उसकी माया समाप्त हुई. हनुमान जी, विभीषण और पूरी वानर सेना को होश आया तो विभीषण समझ गए कि ये सब अहिरावण ने किया है.

विभीषण ने हनुमान जी को श्रीराम-लक्ष्मण की सहायता के लिए पाताल भेज दिया. विभीषण ने हनुमान जी को कहा था कि अहिरावण ने मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए पांच दिशाओं में दीपक जला रखे हैं. जब तक ये पांचों दीपक जलते रहेंगे, तब तक अहिरावण को पराजित करना संभव नहीं है. ये पांचों दीपक एक साथ बुझाने पर ही अहिरावण की शक्तियां समाप्त हो सकती हैं.

विभीषण की बातें सुनकर हनुमान जी पाताल लोक पहुंच गए. पाताल में उन्होंने देखा कि अहिरावण ने एक स्थान पांच दीपक जला रखे हैं. हनुमान जी ने पांचों दीपक एक साथ बुझाने के लिए पंचमुखी रूप धारण किया और पांचों दीपक एक साथ बुझा दिए.

दीपक बुझने के बाद अहिरावण की शक्तियां समाप्त हो गईं और हनुमान जी ने उसका वध कर दिया.

हनुमान जी ने श्रीराम-लक्ष्मण को कैद से मुक्त कराया और उन्हें लेकर लंका पहुंच गए.

 

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