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प्रोटीन पाउडर में मिले हो सकते हैं कीटनाशक, संभल कर पिएं शेक

बोर्नविटा, हॉरलिक्स, कॉम्प्लान हेल्थ ड्रिंक नहीं हैं. कंपनियां इन्हें हेल्थ ड्रिंक कहकर बेचती रही हैं. अब वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने ई-कॉमर्स कंपनियों को सभी तरह के ड्रिंक्स और बेवरेजेस को ‘हेल्थ ड्रिंक’ या ‘एनर्जी ड्रिंक’ की कैटेगरी से बाहर करने का आदेश दिया है.

दूसरी तरफ, ‘मेडिसिन’ जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हिंदुस्तान में बिकने वाले 70% प्रोटीन पाउडर में इंग्रेडिएंट्स को लेकर आधी-अधूरी जानकारियां दी जाती हैं.

प्रोटीन सप्लीमेंट्स बेचने वाले बड़े ब्रांड में भी आर्सेनिक, कैडमियम, लेड की घातक मात्रा पाई गई है जिससे न सिर्फ़ लिवर खराब हो सकता है बल्कि इसका हमारे ब्रेन पर भी बुरा असर पड़ता है.

प्रोटीन पाउडर में कीटनाशक

प्रोटीन पाउडर में पेस्टिसाइड्स यानी कीटनाशक की भी मात्रा पाई गई है. मेडिसिन जर्नल के अनुसार, कुल 36 प्रोटीन सैंपलों की जांच की गई. इनमें से 3 सैंपलों में कीटनाशक मिले हैं. एक में ‘फेनोबुकार्ब’, दूसरे में ‘थियामेथोजम’ और तीसरे सैंपल में ‘एजोक्सीस्ट्रोबिन’ और ‘डायमेथोमोर्फ’ जैसे कीटनाशक की मात्रा मिली है.

खास बात यह है कि डेयरी सप्लीमेंट्स में कीटनाशक नहीं मिले हैं बल्कि प्लांट बेस्ड प्रोटीन सप्लीमेंट्स जैसे राइस, सोया, व्हे, मटर, आलू में ये कीटनाशक पाए गए हैं. इनमें एफ्लाटॉक्सिंस भी मिले हैं. हैदराबाद में न्यूरोलॉजिस्ट डाक्टर सुधीर कुमार बताते हैं कि कीटनाशकों की थोड़ी मात्रा भी हमारे शरीर के लिए घातक है.

इससे सिर दर्द, धुंधला दिखना, स्किन और एलर्जी की परेशानी हो सकती है. यदि स्थिति गंभीर हुई तो पीड़ित आदमी कोमा में जा सकता है, मौत तक हो सकती है.

इन टॉक्सिन की वजह से सेल्स ठीक से डेवलप नहीं होता. सेल्स एब्नॉर्मल हो जाते हैं जिससे लिवर और किडनी कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है.

सीसा, कैडमियम, आर्सेनिक मिलने से किडनी फेल होने का रिस्क

प्रोटीन पाउडर में हैवी मेटल्स भी मिले हो सकते हैं. ‘मेडिसिन’ जर्नल के अनुसार, 13% सैंपलों में आर्सेनिक मिला है. जबकि 27% में कैडमियम, 75% में सीसा और 95% सैंपलों में कॉपर मिला है. पीजीआई चंडीगढ़ के कम्युनिटी हेल्थ के प्रोफेसर डाक्टर सोनू गोयल कहते हैं कि हैवी मेटल्स शरीर में लगातार पहुंचने पर किडनी खराब हो सकती है.

टॉक्सिन को फिल्टर करने में किडनी पर प्रेशर बढ़ता है. इससे क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD)हो सकती है. वैसे लिवर भी डिटॉक्सिफिकेशन में शामिल होता है इसलिए क्रॉनिक लिवर डिजीज होने की भी संभावना होती है.

36 प्रोटीन सप्लीमेंट्स के सैंपलों में से 34 में कॉपर की मात्रा स्टैंडर्ड मात्रा से अधिक मिली है. कॉपर की अधिक मात्रा से लिवर डैमेज हो सकता है. आरंभ में उल्टी, डायरिया, पेट दर्द जैसी शिकायतें होती हैं.

कोई वयस्क आदमी एक दिन में 900 मिलिग्राम (μg)तक ही कॉपर ले सकता है. यदि एक दिन में 30 ग्राम से अधिक कॉपर की मात्रा हमारे शरीर में जाए तो एक्यूट लिवर इंजूरी और लिवर फेल्योर हो सकता है. जांच किए गए एक प्रोटीन सप्लीमेंट में लिमिट से 33 गुना अधिक मात्रा में कॉपर मिला है.

डॉ गोयल कहते हैं कि आर्सेनिक और लेड बहुत कम मात्रा भी हमारे शरीर में पहुंचता है तो कैंसर, ब्लड डिसऑर्डर, गैस्ट्रोइंटेस्टिनल डिजीज, ब्रेन, किडनी, लिवर को डैमेज कर सकता है.

‘मेडिसिन’ जर्नल की जांच में अधिकांश सैंपल में लेड की मात्रा पाई गई है. डब्ल्यूएचओ (WHO)के अनुसार, कई हैवी मेटल्स और दूसरे टॉक्सिन की एक लिमिट होती है लेकिन लेड की कोई सेफ लिमिट नहीं होती. प्रोटीन पाउडर में लेड मिलना बहुत घातक है.

अधिक शुगर से डायिबिटीज होने का खतरा

प्रोटीन पाउडर में न सिर्फ़ हैवी मेटल्स और दूसरे टॉक्सिन मिले हो सकते हैं बल्कि शुगर की मात्रा भी अधिक होती है. यदि डायबिटीज के रोगी को प्रोटीन पाउडर दिया जाता है तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए इसमें जीरो शुगर हो. हालांकि प्रोटीन पाउडर या सप्लीमेंट्स में बेरोकटोक बड़ी मात्रा में शुगर मिलायी जाती है.

दिल्ली स्थित सीताराम भरतिया हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक कंसल्टेंट डाक्टर एचपीएस सचदेव कहते हैं कि अधिकांश प्रोटीन पाउडर में एडेड शुगर होते हैं. इससे मेटाबोलिक डिसऑर्डर हो सकता है. इंसुलिन रेसिस्टेंस हो सकता है, भविष्य में डायबिटीज की रोग भी हो सकती है.

इनमें आर्टिफिशियल स्वीटनर जैसे एस्पार्टम, सक्रालोज, सैकरीन भी मिलाए जाते हैं. साथ ही आर्टिफिशियल कलर, फ्लेवर और प्रिजर्वेटिव्स भी मिले होते हैं. इन सबका हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है.

प्रोटीन सप्लीमेंट सरलता से नहीं पचता

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (NIN) की डायरेक्टर डाक्टर हेमलता आर बताती हैं कि शरीर के ग्रोथ और एनर्जी के लिए प्रोटीन महत्वपूर्ण है. हालांकि आमतौर पर हमारे शरीर में प्रोटीन की उस तरह से कमी नहीं होती जैसे दूसरे न्यूट्रिएंट्स की होती है.

यह ध्यान देने वाली बात है कि प्रोटीन सप्लीमेंट सरलता से शरीर में डाइजेस्ट नहीं होता. यदि आप अपनी प्रोटीन से ही ठीक मात्रा में प्रोटीन ले रहे हैं तो प्रोटीन सप्लीमेंट्स या पाउडर की आवश्यकता नहीं है.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की गाइडलाइंस के अनुसार शरीर के वजन के हर किलो पर 0.8 से 1 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए. यानी यदि कोई 50 किलो वजन का है तो वह 50 ग्राम तक प्रोटीन प्रत्येक दिन ले सकता है.

अगर कोई लंबे समय तक अधिक प्रोटीन लेता है तो सबसे अधिक हानि किडनी को होता है. अधिक प्रोटीन से किडनी में स्टोन हो सकता है.

हाई प्रोटीन डाइट से लिवर और हार्ट की बीमारियां भी हो भी सकती हैं. अधिक प्रोटीन लेने वालों में स्किन की बीमारियां खासकर एक्ने होने की संभावना बढ़ जाती है.

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