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राजस्थान की इस शानदार डॉक्यूमेंटरी को देखनें के लिए आज ही पैक करें बैग

अपने इतिहास, कला और संस्कृति, संगीत, खानपान से पूरे विश्व में काफी नाम कमाया है. राजस्थान को अलबेला राजस्थान इसलिए भी बोला जाता है क्योंकि यहां पर बसा हर शहर अपने अनोखे रंगों, हस्तशिल्प, भौगोलिक स्थिति, वास्तुकला और दुनिया में सबसे खूबसूरत किलों और महलों के लिए जाना जाता है. आज हम इतिहास के पन्नों को पीछे पलट कर राजस्थान के इतिहास में झांकते है कि राजस्थान के विश्व मशहूर शहरों की स्थापना कब, कैसे हुई और किसने की

जब कभी भी राजस्थान की बात की जाती है तो जहन में पहला नाम जयपुर का ही आता है, ये शहर सारी दुनिया में पिंक सिटी के नाम से भी प्रसिद्ध है. इतिहास की कई यादों जैसे आमेर फर्ट, जल महल, नाहरगढ़ फोर्ट और जंतर मंतर को अपने अंदर समेटे हुए रखने वाले जयपुर की स्थापना 18 नवंबर 1727 में आमेर के कछवाहा राजपूत शासक जय सिंह द्वितीय ने की थी, तब आमेर कछवाहा वंशजों की राजधानी हुआ करती थी. यह दुनिया का पहला डिजाइन किया हुआ शहर था जिसका नियोजन विद्याधर भट्टाचार्य ने किया था. विद्वान पंडित जगन्नाथ सम्राट और राजगुरु रत्नाकर ने आमेर रोड पर स्थित गंगापोल गेट पर शहर की नींव रखी. और वहीं, विद्याधर ने नौ ग्रहों के आधार पर शहर में नौ चौकड़ियां और सूर्य के सात घोड़ों पर आधारित सात दरवाजों से युक्त शहर का परकोटा बनाया . हालाँकि तब शहर का रंग गुलाबी नहीं हुआ करता था, अंग्रेजों के समय साल अठारह सौ छिहत्तर ​​में प्रिंस ऑफ वेल्स के आने की समाचार मिलने पर राजा सवाई मानसिंह ने पूरे शहर को गुलाबी रंग में रंगवा दिया था और तबसे ही जयपुर को पिंक सिटी के नाम से जाना जाने लगा.

उदयपुर

राजस्थान का ये शहर विश्वभर में अपनी खूबसूरती, जग मगाती झीलों, भव्य महलों और समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है. उदयपुर की स्थापना पंद्रहसौउनसठ ईस्वी में महाराणा उदय सिंह द्वितीय द्वारा की गई थी. महाराणा उदय सिंह के मेवाड़ साम्राज्य की राजधानी चित्तोड़गढ़ को मुगलों के लगातार आक्रमणों का सामना करना पड़ा था. और एक युद्ध के चलते उन्हें चित्तोड़ को छोड़ना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने अपने परिवार और प्रजा को शत्रुओं से बचाने के लिए पिछोला झील के किनारे एक नए शहर की स्थापना का निर्णय किया. इस तरह सुरम्य पहाड़ियों और शांत झीलों के बीच, महाराणा उदय सिंह ने उदयपुर की नींव रखी . उदयपुर की स्थापना ना केवल एक शहर की आरंभ थी, बल्कि मेवाड़ राजवंश के एक नए बहुत बढ़िया अध्याय की आरंभ भी थी. और समय के साथ ये आने वाले समय में कला, संस्कृति और बहादुरी का केंद्र बन गया. उदयपुर विश्वभर में सिटी ऑफ़ लेक के नाम से भी प्रसिद्ध है.

जोधपुर

थार के रेगिस्तान का द्वार कहे जाने वाला जोधपुर पुरे विश्व में अपने बहुत बढ़िया महलों, दुर्गों और अन्य पर्यटन स्थलों के लिए मशहूर है. इसके अतिरिक्त जोधपुर की पहचान महलों और पुराने घरों में लगे छितर के पत्थरों से भी होती है. जोधपुर राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. जोधपुर को सूर्य नगरी और अपने नीले कलर के चलते ब्लू सिटी के नाम से भी जाना जाता है. जोधपुर अपनी हस्तकलाएं, लोक नृत्य, संगीत और पहनावे के लिए भी काफी प्रसिद्ध है.  इस शहर की स्थापना चौदहसौ उनसठ 1459 ईस्वी में मंडोर के राठौड़ वंश के राव जोधा ने की थी. इनके मंत्रियों के मंडोर दुर्ग को दुश्मनों से असुरक्षित मानने के चलते इन्होंने एक नयी राजधानी के रूप में जोधपुर की स्थापना की थी. ये शहर भी शुरुवात से नीले कलर का नहीं हुआ करता था, नीला कलर यहां घरों को ठंडा रखने के लिए किया जाता था, जो बाद में यहां की विरासत बन गया.

जैसलमेर

राजस्थान के थार रेगिस्तान के बीच स्थित जैसलमेर का सुनहरा सोनार किला दूर से ही पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है.  जैसलमेर शहर की स्थापना मध्यकालीन हिंदुस्तान में हुई है और इस शहर को दुनिया गोल्डन सिटी के नाम से भी जानती है. भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित जैसलमेर की स्थापना ग्यारहसौ छप्पन में भाटी राजा जैसल ने की थी.  रावल जैसल को अपने गुरु की आज्ञा से मारवाड़ छोड़ना पड़ा था. भटकते हुए वो जैसलमेर की पहाड़ी पर पहुंचे और वहां उन्होंने मिट्टी का किला बनवाया जिसे सोनार का किला बोला गया. यही किला आगे चलकर जैसलमेर के नाम से जाना गया और रियासत की राजधानी बना. जैसलमेर की स्थापना केवल एक शहर की आरंभ नहीं थी, बल्कि आगे चल कर यह व्यापार का भी जरूरी केंद्र बना. इसकी सुनहरी रंगत रेगिस्तान की बालू से मेल खाती है और इसकी भव्य हवेलियां राजपूत वैभव की कहानी कहती हैं.

अलवर

अरावली की पहाड़ियों की गोद में बसा अलवर शहर, अपने मजबूत किलों और कलात्मक विरासत के लिए विश्वभर में जाना जाता है.  इसे “राजस्थान का सिंह द्वार” भी बोला जाता है.  अलवर की स्थापना सत्रहसौ पचहत्तर ईस्वी में महाराजा प्रताप सिंह ने की थी. महाराजा प्रताप सिंह जयपुर के कछवाहा राजवंश की एक शाखा के मुखिया थे. उन्होंने मुगलों के अधीन रहने के बजाय अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का निर्णय किया.  उन्होंने अलवर के किले को अपना गढ़ बनाया और इसी के साथ अलवर रियासत की नींव रखी. अलवर की स्थापना एक नए युग की आरंभ थी. यह शहर कला और संस्कृति का केंद्र बन गया. यहां के बहुत बढ़िया महल, जलाशय और मंदिर आज भी अलवर के गौरवशाली इतिहास की कहानी सुनाते हैं.

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