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Jivitputrika Vrat 2023: जीवित्पुत्रिका व्रत में रखें इन बातों का विशेष ध्यान

आज जीवित्पुत्रिका व्रत है, यह व्रत स्त्रियां अपनी संतानों के सुखी जीवन के लिए करती हैं तो आइए हम आपको जीवित्पुत्रिका व्रत की विधि तथा महत्व के बारे में बताते हैं.

जानें जीवित्पुत्रिका व्रत के बारे में 

जीवित्पुत्रिका व्रत या जिउतिया आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जीमूत गाड़ी का व्रत के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन माताएं विशेषकर पुत्रों के दीर्घ, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं. इस व्रत की खासियत यह है कि इसे निर्जला रखा जाता है. इसे के उत्तरी हिंदुस्तान के बिहार, यूपी तथा मध्य प्रदेश में विशेष रूप से मनाया जाता है.

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व

जीवित्पुत्रिका व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. यह कथा महाभारत से जुड़ी हुई है. अश्वत्थामा ने बदले की भावना से प्रेरित होकर उत्तरा के गर्भ में पल रहे पुत्र को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया. लेकिन उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना भी जरुरी था. तब ईश्वर श्रीकृष्ण ने उस शिशु की रक्षा हेतु अपने सभी पुण्यों के फल से उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया. गर्भ में मौत को प्राप्त कर पुन: जीवन मिलने के कारण उस शिशु का नाम जीवित पुत्रिका रखा गया. जीवित पुत्रिका व्रत को ही बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से जाना गया.

जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा भी है खास

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक एक बार जंगल में एक चील तथा लोमड़ी रहती थी. चील तथा लोमड़ी ने एक दिन कुछ महिलाओं को व्रत रखकर पूजा करते हुए देखा. तब लोमड़ी और चील ने भी व्रत देखा. लेकिन लोमड़ी भूख के कारण बेहोश होने लगी और उसने चुपके से खाना खा लिया. लेकिन चील भूखे-प्यासे व्रत रही. इसलिए चील के सब बच्चे भली प्रकार जीवित रहे लेकिन लोमड़ी के बच्चे एक-एक कर चले बसे.

जीवित्पुत्रिका व्रत में रखें इन बातों का विशेष ख्याल 

हिन्दू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का खास महत्व होता है. इस व्रत को अक्सर निर्जला रहा जाता है इसलिए इस व्रत में अपनी स्वास्थ्य का खास ख्याल रखें. यदि आप किसी रोग से ग्रसित हैं तो चिकित्सक की राय जरूर लें.

ऐसे करें जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन पूजा

जीवित्पुत्रिका व्रत में मन से संकल्प लें. इस दिन स्नान से पवित्र होकर संकल्प के साथ व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर साफ कर दें. साथ ही एक छोटा-सा तालाब भी वहां बना लें. तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर रख दें. शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल (या मिट्टी) के पात्र में स्थापित कर दें. फिर उन्हें सजाने के लिए पीली और लाल रुई लें तथा धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजा करें. मिट्टी तथा गाय के गोबर से मादा चील और मादा सियार की मूर्ति बनाएं. उन दोनों के मस्तकों पर लाल सिन्दूर लगा दें. अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्रों से पूजन करना चाहिए. उसके बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा पढ़े तथा दूसरों को भी सुनाएं.

जीवित्पुत्रिका व्रत की तारीख और शुभ मूहूर्त 

जीवित्पुत्रिका पर्व तीन दिनों तक चलता है. इस पर्व की आरंभ सप्तमी तिथि पर नहाय खाय परंपरा से होती है, इसमें स्त्रियां पवित्र नदी में स्नान के बाद पूजा का सात्विक भोग बनाती हैं. दूसरे दिन अष्टमी को निर्जला व्रत रखा जाता है. नवमी तिथि पर इसका पारण किया जाता है.

नहाय खाय- 5 अक्टूबर 2023

जितिया व्रत- 6 अक्टूबर 2023

व्रत पारण- 7 अक्टूबर 2023

अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर 2023 को सुबह 06 बजकर 34 मिनट पर प्रारम्भ होगी. अष्टमी तिथि का समाप्ति 7 अक्टूबर 2023 को सुबह 08 बजकर 08 मिनट पर होगा. इस वर्ष 5 अक्टूबर के दिन नहाय खाय है जिसके कारण अगले दिन यानी 6 अक्टूबर, शुक्रवार के दिन जितिया व्रत रखा जाएगा. इस व्रत का पारण अगले दिन 7 अक्टूबर, सुबह 10 बजकर 23 मिनट पर किया जाना है. वहीं, कुछ पंडितों का मानना है कि इस वर्ष 6 अक्टूबर के दिन जितिया व्रत रखना शुभ नहीं होगा, इसीलिए इस व्रत को 7 अक्टूबर के दिन रखा जाना ठीक रहेगा.

नहाय खाय पर कुछ खास खाने की है परंपरा

जीवित्पुत्रिका व्रत से पहले नहाय खाय की भी परम्परा होती है. इस व्रत में नोनी का साग खाया जाता है. नोनी में केल्शियम और आयरन प्रचुर मात्रा में होता है. इसके पीछे वजह है कि व्रती को लंबे उपवास से पहले खाने से कब्ज आदि की कम्पलेन नहीं होती है और पाचन भी ठीक रहता है. कुछ स्थानों में इस व्रत और पूजा के दौरान झिंगनी/ सतपुतिया की सब्जी भी खाई जाती है. सतपुतिया आमतौर पर शाकाहारी महिलाएं खाती हैं. सतपुतिया यूपी और बिहार के क्षेत्रों में अधिक होती है.

 

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