मात्र 20 रुपए में तैयार ये मिश्रण बदल देगा किसानों की किस्मत
अप्रैल का महीना प्रारम्भ हो चुका है और इस महीने रवि फसलों जैसे गेहूं, सरसों की कटाई प्रारम्भ हो जाती है | रवि फसलों की कटाई के बाद राष्ट्र में पराली जलाने की परेशानी एक गंभीर मामला बन जाती है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब से लेकर यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश के कई गांव में किसान गेहूं काटने के बाद फसल अवशेष को आग की भेंट चढ़ा देते हैं, जिससे बड़े लेवल पर प्रदूषण फैलता है। ये धुआं उड़कर शहरों में पहुंचता और लोगों की स्वास्थ्य पर अपना असर दिखाता है। वहीं खेत में अवशेष जलने से खेत की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
“आम तो आम गुठलियों के भी दाम” यह कहावत उत्तर प्रदेश के किसानों पर चरितार्थ होगी क्योंकि अब गेहूं की फसल या धान की फसल की पराली हो या अन्य फसलों से निकलने वाले अवशेष या वेस्ट को जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। किसान अब इसे जलाने की बजाय इसे हरित खाद में परिवर्तित कर सकते हैं। जिससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा और उनके खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी।
पराली जलाने के नुकसान
रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के सहायक विकास अधिकारी कृषि दिलीप कुमार सोनी बताते हैं कि रबी की फसल की कटाई का समय चल रहा है। ऐसे में किसान कटाई के बाद निकलने वाली पराली को खेतों से साफ करने के लिए उसे जला देते हैं। जिससे भारी मात्रा में धुंआ और गैसें निकलती हैं जो हवा में मिलाकर हमारे पर्यावरण को हानि पहुंचती हैं। साथ ही हमारी कृषि भूमि भी प्रभावित होती है। यही वजह है कि फसलों की पैदावार घटती जा रही है क्योंकि पराली जलाने से खेत की उर्वरक क्षमता घटती है और खेत में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु भी जल जाते हैं। वैज्ञानिक आंकड़ों के मुताबिक एक टन कृषि अवशेष के जलाए जाने से यहां दो किलोग्राम सल्फर डाइ ऑक्साइड, 60 किलोग्राम कार्बन मोनो ऑक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड, 3 किलोग्राम पार्टिकुलेट मैटर, 199 किलोग्राम तक राख निकलती है। जिससे बड़े स्तर पर प्रदूषण फैलना लाजिमी है।
ऐसे करें तैयार
दिलीप कुमार सोनी बताते हैं कि जैव अपघटक के अंदर जिंदा कीटाणु होते हैं जो हमारी फसल से निकले कृषि अवशेष मे पहुंचते ही उसे 30 से 35 दिनों में डीकंपोज कर हरित खाद बना देते हैं। ऐसा करने के लिए आपको जैव अपघटक लेना होगा। जो आप राजकीय कृषि केंद्र से इसे मुफ़्त प्राप्त कर सकते हैं। उसके बाद किसी बड़े बर्तन में पहले 200 लीटर पानी से भरे हुए एक ड्रम में डाला लें। इसमें दो किलो गुड़ दें। इसे सुबह एवं शाम में दो बार लकड़़ी से मिलाने की प्रक्रिया को पांच से 6 दिन करें। 5-6 दिनों तक इस विधि को अमल में लगाने से घोल में उपस्थित ऊपरी सतह पर जब झाग बन जाएगा | खास बात यह भी है कि वेस्ट डीकम्पोजर ऐसे तत्व फसल अवशेषों से स्वयं लेकर बढ़ाता है, जिनकी आवश्यकता होती है। दूसरा जो जमीन में उर्वरक के पोषक तत्व (लोहा, बोरान, कार्बन आदि) पड़े हैं उन्हें घोलकर पौधे के लायक बनाता हैं। एक लीटर का घोल बनाने में मात्र 20 रुपए का खर्च आएगा।
इस तरह करें छिड़काव
दिलीप सोनी बताते हैं कि 6 दिन बाद उस घोल में आपको जीवाणु दिखने लगे तो आप इस का छिड़काव अपने खेतों में कर दें। छिड़काव करने के 30 से 35 दिन बाद पराली पूरी तरह से गलकर हरित खाद बन जाएगी जो आपके खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाएगी