आ रहा है जल-प्रलय, सैटेलाइट तस्वीरों से ISRO ने खोला राज
सदियों से हिमालय हिंदुस्तान का सिरमौर रहा है. यह हिंदुस्तान का प्राकृतिक प्रहरी रहा है, जलवायु विभाजक भी है. साइबेरिया से आने वाली ढंडी बयारों को रोककर हिंदुस्तान में एक अलग जलवायु तंत्र बनाने वाला भी रहा है लेकिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की नयी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि जल्द ही उत्तर का यह मस्तक और प्रहरी राष्ट्र में प्रलय मचा सकता है.
हिमालय को बड़े-बड़े ग्लेशियर और बर्फ के विशाल टीलों की वजह से तीसरा ध्रुव भी बोला जाता है. इसरो ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. इसरो ने सोमवार को बोला कि दशकों की उपग्रह इमेजरी का विश्लेषण करने वाले नए अध्ययन से पता चला है कि भारतीय हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर घातक रेट से पिघल रहे हैं, जिससे हिमालयी क्षेत्र में बने हिमनदीय झीलों (Glacial Lakes) का विस्तार हो रहा है.
बता दें कि ये ग्लेशियर और ग्लेशियल झीलें उत्तर हिंदुस्तान की सभी प्रमुख नदियों के जलस्रोत रहे हैं. पूरे विश्व में हुए शोधों से पता चला है कि पूरे विश्व के ऊंचे पहाड़ों-पर्वतों पर के ग्लेशियर 18वीं सदी के औद्योगीकरण के बाद से ही तेजी से पिघल रहे हैं और वे अपने स्थानों से पीछे हट रहे हैं. यानी जहां आज ग्लेशियर हैं, वहां उसका वजूद समाप्त हो रहा है. ग्लेशियर के पीछे हटने से वहां झील का निर्माण होता है. इसरो की रिपोर्ट में बोला गया है कि ये झीलें कई बार बड़ा जोखिम भी पैदा करते हैं. यानी कई बार ग्लेशियल लेक फट जाते हैं, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ आ जाती है जो समुदायों के लिए विध्वंसक रिज़ल्ट लाते हैं.
इसरो की रिपोर्ट में बोला गया है कि 1984 से 2023 तक ग्लेशियर्स के सैटेलाइट डेटा हैं, जिनमें यह बात सामने आई है कि 2016-17 में नदी घाटियों में 10 हेक्टेयर से बड़ी कुल 2,431 हिमनद झीले थीं. 1984 के बाद से इस क्षेत्र में आश्चर्यजनक रूप से 676 झीलें विकसित हो गई हैं. इनमें 130 झीलें हिंदुस्तान के अंदर हैं. उनमें 65 सिंधु बेसिन में, सात गंगा घाटी में और 58 ब्रह्मपुत्र बेसिन में हैं
ISRO की स्टडी रिपोर्ट में बोला गया है कि इन झीलों में आश्चर्यजनक रूप से फैलाव हो रहा है. 601 झीलों का आकार दोगुना से भी अधिक हो गया है, जबकि दस झीलें 1.5 से 2 गुना बड़ी हो गई हैं. इसके अतिरिक्त 65 झीलें डेढ़ गुना बड़ी हो गई हैं. विश्लेषण में ये बात भी निकल कर आई है कि कई झीलें हिमालय की अत्यधिक ऊंचाई पर स्थि हैं. इनमें 4,000-5,000 मीटर की ऊंचाई पर करीब 314 झील हैं जबकि 5,000 मीटर से ऊपर की ऊंचाई पर 296 हिमनदीय झीलें हैं.
रिपोर्ट में बोला गया है कि जैसे-जैसे ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं, उससे बनने वाली झीलेों का आकार तेजी से बढ़ने लगता है, जो बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय परिवर्तनों का संकेत देती हैं. हिमनदीय झीलों का फैलाव होने और उसमें अत्यधिक मात्रा में पानी आने से उसके फटने का खतरा बना रहता है. जब ऐसी झीलें फटती हैं तो पर्वतीय क्षेत्रों में विध्वंसक बाढ़ लाती हैं. हाल के सालों में उत्तराखंड में इस तरह की बाढ़ आ चुकी है, जिसमें बड़े पैमाने पर हानि हुआ था.