कम-ज्यादा हो रहा ब्लड शुगर लेवल, अरविंद केजरीवाल ने मांगी एक बात की अनुमति
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए न्यायालय से अपने नियमित चिकित्सक के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए परामर्श लेने की अनुमति मांगी है. उन्होंने न्यायालय में आवेदन देते हुए कहा कि उनके ब्लड शुगर में लगातार उतार-चढ़ाव जारी है, और वह अपने नियमित चिकित्सक से परामर्श लेना चाहते हैं. जिसके बाद स्पेशल न्यायधीश राकेश स्याल ने प्रवर्तन निदेशालय (प्रवर्तन निदेशालय) से इस बारे में उत्तर दाखिल करने को बोला है. इस मुद्दे की अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी.
इस बारे में केजरीवाल के वकील विवेक जैन ने न्यायालय को कहा कि उनका ब्लड शुगर लेवल कम-ज्यादा हो रहा है और वो 46 तक चला गया है. ऐसी स्थिति में उन्हें सप्ताह में तीन बार अपने चिकित्सक से परामर्श लेने की अनुमति मिलनी चाहिए. वहीं प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से दलील रखते हुए स्पेशल पब्लिक प्रोसेक्यूटर सिमोन बेंजामिन ने बोला कि कारावास में भी सुविधाएं हैं, जहां पर केजरीवाल अपनी जांच करवा सकते हैं. इसके बाद उन्होंने इस आवेदन पर उत्तर दाखिल करने के लिए समय मांगा.
सुनवाई के दौरान केजरीवाल के वकील ने पूछा कि यदि केजरीवाल अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहते हैं तो प्रवर्तन निदेशालय क्यों विरोध कर रहा है. बता दें कि दिल्ली एक्साइज पॉलिसी मुकदमा में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तारी के बाद से ही अरविंद केजरीवाल न्यायिक हिरासत में तिहाड़ कारावास में बंद हैं.
सोमवार को दिल्ली की राउज एवेन्यू न्यायालय ने पूर्व की शराब नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मुकदमा में केजरीवाल की न्यायिक हिरासत 23 अप्रैल तक के लिए बढ़ा दी है. इससे पहले आम आदमी पार्टी के नेता और सीएम केजरीवाल ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस निर्णय को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तारी और एक्साइज ड्यूटी पॉलिसी मुकदमा में उनकी रिमांड को चुनौती दी थी. जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को नोटिस जारी किया है.
बता दें कि, इससे पहले 9 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय ने लोकसभा चुनाव से पहले केजरीवाल को झटका देते हुए प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी. न्यायालय ने बोला था कि बार-बार समन भेजने के बावजूद केजरीवाल के प्रवर्तन निदेशालय के सामने पेश नहीं होने और जांच में शामिल होने से इनकार करने के बाद जांच एजेंसी पास कोई खास विकल्प नहीं बचा था.