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किसी ने भी अभी तक नहीं की चुनाव प्रचार के लिए मणिपुर की यात्रा

 लोकसभा चुनाव के लिए केवल दो सप्ताह बचे हैं, सांप्रदायिक दंगों से प्रभावित मणिपुर को प्रमुख नेताओं की चुनावी रैलियों और रोमांचक अभियानों के सामान्य चुनावी उत्साह के बिना लोकसभा चुनावों का सामना करना पड़ रहा है. जबकि हिंदुस्तान चुनावी उत्सव की तैयारी में व्यस्त है, राज्य चुनाव ऑफिसरों द्वारा लगाए गए पोस्टर ही घोषणा करते हैं कि मणिपुर राज्य में चुनाव होने जा रहे हैं. भाजपा पूरे राष्ट्र में अपने प्रचार के लिए पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राहुल गांधी, घरके, सोनिया गांधी और अन्य नेताओं को प्रचारित कर रही है. इस स्तर पर, उनमें से किसी ने भी अभी तक चुनाव प्रचार के लिए मणिपुर की यात्रा नहीं की है.

पिछले वर्ष मई में मणिपुर राज्य में सांप्रदायिक दंगों की गूंज को देखते हुए नेताओं ने यात्रा और चुनाव प्रचार से परहेज किया है. इस बीच, मणिपुर राज्य चुनाव आयोग ने बोला है कि राज्य में सियासी दलों के प्रचार करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है मणिपुर राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी प्रदीप झा ने कहा, “राज्य चुनाव आयोग द्वारा सियासी दलों के प्रचार पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. आचार संहिता के अनुसार सभी अभियानों की अनुमति है.

राज्य में इस नये हालात से निपटने के लिए सियासी दलों के उम्मीदवार नये-नये हथकंडे अपना रहे हैं बीजेपी के थौनोजम बसंत कुमार सिंह, कांग्रेस पार्टी के अंकोमसा पिमोल अखोजम, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया के महेश्वर थौनोजम और मणिपुर पीपुल्स पार्टी (एमपीपी) के राजमुखर सोमेनरो सिंह अपने घरों या पार्टी कार्यालयों में बैठकें करके, समर्थकों के साथ घर-घर जाकर और मतदाताओं से मिलकर प्रचार कर रहे हैं.

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया के महेश्वर दौनोजम ने कहा, “बेहतर होता यदि हम सार्वजनिक बैठकें और रैलियां आयोजित करके प्रचार करते. हालांकि, मैं अपने अभियान की योजना सीमित पैमाने पर बना रहा हूं. मौजूदा स्थिति में, मतदाता इसके महत्व से अच्छी तरह वाकिफ हैं.” वोटों की संख्या और उनकी पसंद.” वह अपने समर्थकों को समूहों में बांटते हैं और घर-घर जाकर प्रचार करते हैं.

राज्य के शिक्षा और कानून मंत्री और वर्तमान में लोकसभा चुनाव लड़ रहे बसंत कुमार सिंह अपने घर और पार्टी कार्यालय में छोटी बैठकें कर रहे हैं. इस बीच, दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार अकोइजाम अक्सर घर-घर जाकर लोगों से मिलते हैं.

इस नयी खामोशी पर टिप्पणी करते हुए, राज्य बीजेपी अध्यक्ष ए सार्था देवी ने कहा, “हालांकि चुनाव हमारे लिए जरूरी हैं, हम लोगों के घावों पर गर्म पानी नहीं डाल सकते. चुनाव एक त्योहार की तरह हैं. लेकिन हम मौजूदा माहौल में उन्हें नहीं इंकार सकते. लोग हैं.” अपने घरों से दूर रह रहे हैं. वे हम पर भरोसा करना चाहते हैं. इसलिए, हम प्रचार नहीं कर रहे हैं.

नाम न छापने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “भले ही स्थिति नियंत्रण में दिख रही हो, लेकिन बड़े पैमाने पर अभियानों के कारण राज्य में कानून-व्यवस्था बाधित होने की आसार है. कोई भी पार्टी लेने को तैयार नहीं है.” वह घातक जोखिम.

मणिपुर राज्य में 19 और 26 अप्रैल को दो चरणों में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होगा. ऐसे में जो लोग अपना घर खो चुके हैं और कैंपों में रुके हुए हैं, उनके लिए चुनाव आयोग ने वोट देने के लिए विशेष मतदान केंद्रों की प्रबंध की है हालांकि मतदान केंद्रों की प्रबंध कर ली गयी है, लेकिन लोगों को इस बात की चिंता है कि अभी तक किसी भी प्रत्याशी ने आकर इन्हें देखा नहीं है

दीमा ने कहा, “कुछ पार्टियों के स्वयंसेवकों ने एक-दो बार दौरा किया है. अभी तक किसी भी उम्मीदवार ने दौरा नहीं किया है. यदि वे आएंगे और देखेंगे तो ही आप समझ पाएंगे कि हम शिविरों में रह रहे हैं.” दो बच्चों की मां, वह अपने बच्चों के साथ मैथेई क्षेत्र में एक राहत शिविर में रहती है. ऐसी ही स्थिति मोरेह और सुरसनपुर इलाकों में भी है जहां कई कुकी हैं. इस बीच, कुछ कुकी संप्रदायों और सामुदायिक समूहों ने चुनाव के बहिष्कार का आह्वान किया है.

दुकानें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान खुले हैं जबकि मैथेई जनसंख्या वाली इंफाल घाटी शांत है. सुरक्षा बलों की आवाजाही लोगों के तनाव का संकेत है इस अशांत स्थिति के बीच, यह फीकी चुनावी स्थिति राज्य की शांति की आशा को दर्शाती है. इससे पहले, 3 मई, 2023 को प्रारम्भ हुए मैथेई और कुकी जातीय समूहों के बीच जातीय संघर्ष में 219 लोगों की जान चली गई थी. उल्लेखनीय है कि दंगों से प्रभावित 50,000 से अधिक लोगों ने अपने घर खो दिए हैं और उन्हें राहत शिविरों में रखा गया है.

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