क्या ये संभव है कि कोई पार्टी मनपसंद सिंबल की मांग कर सके…
महाराष्ट्र के सियासी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पार्टी (एनसीपी) और उसके मुखिया शरद पवार को राष्ट्र की शीर्ष न्यायालय ने बड़ी राहत देते हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पार्टी का नाम एनसीपी-शरदचंद्र पवार प्रयोग करने की अनुमति दे दी है। साफ है कि अब लेाकसभा चुनाव 2024 में शरद पवार की पार्टी नए नाम के साथ ताल ठोकेगी। उच्चतम न्यायालय का ये आदेश उनके भतीजे अजित पवार के गुट के लिए बड़ा झटका बताया जा रहा है। इसके अतिरिक्त शीर्ष न्यायालय ने चुनाव चिह्न को लेकर भी शरद पवार गुट के पक्ष में ही निर्णय दिया है।
सुप्रीम न्यायालय ने चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पार्टी-शरदचंद्र पवार के चुनाव चिह्न ‘तुरही बजाते आदमी’ को मान्यता दी जाए। इसका साफ मतलब है कि अब भारतीय निर्वाचन आयोग ये चुनाव चिह्न किसी भी दूसरी पार्टी को आवंटित नहीं कर सकता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि किसी भी सियासी दल का नाम कैसे रखा जाता है? पार्टियों के नाम को मान्यता कौन देता है? वहीं, चुनाव आयोग किन शर्तों के आधार पर राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न आवंटित करता है? क्या ये संभव है कि कोई पार्टी मनपसंद सिंबल की मांग कर सके?
किस कानून के अनुसार होता है राजनीतिक दलों का गठन
सबसे पहले समझते हैं कि किसी पार्टी का पंजीकरण कैसे होता है और उसे नाम कैसे मिलता है? जन अगुवाई कानून, 1951 में राजनीतिक दलों के गठन को लेकर नियम हैं। यदि आप अपनी पार्टी बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले चुनाव आयोग के पास पंजीकरण कराना होगा। नियमों के मुताबिक, राजनीतिक दल बनाने के लिए चुनाव आयोग औनलाइन फॉर्म जारी करता है। पार्टी बनाने के इच्छुक व्यक्ति को ये फॉर्म भरने के बाद प्रिंटआउट लेकर महत्वपूर्ण दस्तावेजों के साथ 30 दिन में चुनाव आयोग को भेजना होगा। साथ ही 10 हजार रुपये शुल्क जमा करना होगा।
पहले ही तैयार करना होता है पार्टी का संविधान
सियासी दल की पंजीकरण प्रक्रिया प्रारम्भ करने से पहले पार्टी का संविधान तैयार करना महत्वपूर्ण होता है। इसमें दर्ज होना चाहिए कि सियासी दल का नाम और काम करने का तरीका क्या होगा? साथ संविधान में ये भी तय करना होगा कि पार्टी अध्यक्ष का चुनाव कैसे होगा? इसके अतिरिक्त पार्टी के उन लोगों की पूरी जानकारी भी देनी होगी, जो अहम पदों पर होंगे। पार्टी संविधान की प्रति पर उन सभी के हस्ताक्षर भी करवाने होंगे। दस्तावेजों में पार्टी के बैंक एकाउंट का ब्योरा भी देनी होगा।
कौन तय करता है सियासी दल का क्या होगा नाम
राजनीतिक दल का नाम आपको स्वयं ही तय करना होगा। हालांकि, आपके बताए हुए नाम को स्वीकृति देना या नहीं देना पूरी तरह से चुनाव आयोग पर निर्भर करेगा। आपके सुझाव नाम पर मुहर लगाने से पहले चुनाव आयोग देखता है कि कहा हुआ नाम पहले से ही किसी दूसरी पार्टी को तो नहीं दिया जा चुका है। यदि वही नाम किसी दूसरे दल को मिला होता है तो चुनाव स्वयं अपनी तरफ से आपको दूसरे नाम का सुझाव दे सकता है। यदि चुनाव आयोग चाहे तो आपसे भी पार्टी के लिए कोई दूसरा नाम मांग सकता है।
सियासी दल बनाने को कितने सदस्य होना जरूरी
सियासी दल बनाने के लिए कम से कम 500 सदस्य होना महत्वपूर्ण है। इसमें भी एक शर्त जुड़ी रहती है कि कोई भी सदस्य किसी दूसरे सियासी दल से जुड़ा हुआ नहीं होना चाहिए। इसके लिए पार्टी बनाने के इच्छुक व्यक्ति को एक हलफनामा भी देना होता है। इस हलफनामे में आवेदक को पुष्टि करनी होगी कि उसकी पार्टी का कोई भी सदस्य किसी दूसरे राजनीतिक दल के साथ जुड़ा हुआ नहीं हैं। अब प्रश्न ये उठता है कि चुनाव आयोग किसी भी राजनीतिक दल को चुनाव चिह्न का आवंटन कैसे करता है?
कैसे सियासी दलों को मिलता है चुनाव चिह्न
चुनाव आयोग ‘द इलेक्शन सिंबल (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर, 1986’ के अनुसार राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न आवंटित करता है। हालांकि, चुनाव चिह्न पाने के लिए भी राजनीतिक दलों को कुछ नियमों और शर्तों को पूरा करना होता है। बता दें कि निर्वाचन आयोग के पास 100 से ज्यादा चुनाव चिह्न रिजर्व में रहते हैं। ये चिह्न अब तक किसी भी पार्टी को नहीं दिए गए हैं। जब भी चुनाव चिह्न जारी करने का समय आता है तो चुनाव आयोग उनमें से एक पार्टी के लिए जारी करता है। यदि पार्टी किसी खास चिह्न की मांग करती है तो आयोग उस पर भी विचार करता है।
किस तरह के चुनाव चिह्न नहीं देता निर्वाचन आयोग
सियासी दल की ओर से मांगा खास चुनाव चिह्न यदि किसी दूसरी पार्टी को आवंटित नहीं किया हो तो निर्वाचन आयोग उसी को जारी कर सकता है। बता दें कि चुनाव चिह्नों को लेकर टकराव भी हो चुके हैं। इसी वजह से अब पशु-पक्षियों की फोटो वाले चुनाव चिह्न नहीं दिए जाते हैं। पशु अधिकारों की पैरवी करने वाले कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया था। दरअसल, पार्टियां प्रचार के दौरान अपने सिंबल वाले पशु-पक्षियों की परेड कराने लगती थीं। पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे क्रूरता कहा था। इसके बाद चुनाव आयोग ने ऐसे चिह्नों पर रोक लगा दी।