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चरम मौसमी घटनाओं के मिश्रित प्रभावों से साल-दर-साल करोड़ों लोगों पर पड़ा रहा गहरा प्रभाव

आने वाले दशकों में गंगा और सिंधु के आसपास का उपजाऊ क्षेत्र जलवायु बदलाव के कारण चरम घटनाओं का केंद्र बिंदु (हॉटस्पॉट) बन सकता है. इनकी वजह से बहुत उपजाऊ क्षेत्र प्रभावित होगा. चरम मौसमी घटनाओं के मिश्रित प्रभावों से साल-दर-साल करोड़ों लोगों पर गहरा असर पड़ेगा. इन चरम मौसमी घटनाओं में लू, भारी बारिश, बाढ़, सूखा, तूफान जैसी घटनाएं शामिल हैं.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और ऑग्सबर्ग विवि के शोधकर्ताओं ने अपने ताजा शोध में जलवायु बदलाव के दुष्परिणामों पर चिंता जाहिर की है. इसके नतीजे जर्नल ऑफ हाइड्रोमेट्रोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं. शोधकर्ताओं ने जल और जलवायु से जुड़ी मिश्रित चरम घटनाओं पर ध्यान केंद्रित किया है. इसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि भविष्य में यह मिश्रित घटनाएं हिंदुस्तान में कितनी बार तबाही मचा सकती हैं और इनसे कौन से क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होंगे. शोधकर्ताओं ने बढ़ते तापमान से बचने के लिए गर्मी और सूखे का सामना करने के योग्य बीजों में निवेश और बांधों का निर्माण जैसे तरीकों पर बल दिया है.

चार संभावित परिदृश्यों पर जोर

अध्ययन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से जुड़े भविष्य के चार संभावित परिदृश्यों पर आधारित है. हर परिदृश्य में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के भविष्य में जनसंख्या में होने वाली वृद्धि, संसाधनों के वितरण, तकनीकी प्रगति और जीवनशैली में आने वाले बदलावों को भी ध्यान में रखा गया है. ये परिदृश्य आने वाले भविष्य की वास्तविकताओं के लिए आंतरिक रूप से सुसंगत ब्लूप्रिंट के रूप में काम करते हैं

प्रभावित होगी पैदावार

शोधकर्ताओं के मुताबिक तराई वाले इस उपजाऊ क्षेत्र में धान और गेहूं जैसी प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं. अंतरराष्ट्रीय तापमान में लगातार वृद्धि के कारण ये क्षेत्र बहुत बड़े खतरे की जद में है. भविष्य में भयंकर गर्मी, सूखा और भारी बारिश के कारण न केवल पैदावार प्रभावित होगी बल्कि कुछ फसलों की उपज भी नष्ट हो जाएगी.

छह गुना बढ़ जाएगा खतरा

अध्ययन के मुताबिक राष्ट्र में घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में अतीत में शुष्क गर्मी की तुलना में भारी बारिश और गर्मी में अधिक बड़े परिवर्तन देखे गए हैं. राष्ट्र के कुछ हिस्सों में जिनमें सिंधु-गंगा के मैदान और सुदूर दक्षिण के तट शामिल हैं, वहां यह परिवर्तन छह गुना तक बढ़ जाएगा.


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