राजनीति: बहुगुणा अपनी ही सरकार के खिलाफ हो गए थे खड़े
यह बोलना है जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे श्रीनगर नगर पालिका परिषद के पूर्व अध्यक्ष कृष्णानंद मैठाणी का. मैठाणी बहुगुणा और अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी रहे हैं. वह बताते हैं कि भारतीय राजनीति में एक दौर ऐसा था, जब हेमवती नंदन बहुगुणा को भारतीय राजनीति का चाणक्य बोला जाता था. हर विषय पर उनकी मजबूत पकड़ थी.
यही वजह थी कि विरोधी भी उनके प्रशंसक हुआ करते थे. बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष वाजपेयी को जब हिमालय सरोकारों और ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बात रखनी होती थी, तो वह बहुगुणा से राय जरूर लेते थे. मैठाणी बताते हैं, बहुगुणा का सियासी कॅरिअर विद्यार्थी राजनीति से प्रारम्भ होकर जन सरोकारों तक रहा.
सिद्धांतों से समझौता न करने और तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी से मतभेदों के चलते संसद की सदस्यता से त्यागपत्र देने में भी उन्होंने देर नहीं की, लेकिन अपने सियासी विरोधियों को भी समय आने पर सहायता करने में पीछे नहीं रहे.
मैठाणी के मुताबिक, 70 और 80 के दशक की राजनीति में वैचारिक मतभेद होने के बावजूद देश, समाज और किसी क्षेत्र विशेष को लेकर कोई परेशानी होती थी, तब राजनेता अपने मतभेद और मनभेद भुलाकर उस परेशानी के निवारण के लिए एक साथ खड़े नजर आते थे. गढ़वाल विवि की स्थापना को लेकर चल रहे आंदोलन में बहुगुणा अपनी ही गवर्नमेंट के विरुद्ध खड़े हो गए और उन्होंने आंदोलनकारियों का साथ दिया.