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Amethi LokSabha Seat: क्या तीसरी बार अमेठी में आमने-सामने होंगे स्मृति और राहुल…

लखनऊ. दूसरे चरण का मतदान होते ही (जिसमें राहुल गांधी की केरल की वॉयनाड सीट भी शामिल है.) अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली से प्रियंका वाड्रा के चुनाव लड़ने की चर्चा प्रारम्भ हो गई है. राहुल की तो अमेठी के चुनाव को लेकर वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के साथ वार्ता भी हो गई है. अमेठी-रायबरेली में पांचवें चरण में 20 मई को मतदान होना है. 2019 में राहुल गांधी भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी से अमेठी से चुनाव हार गये थे, जबकि सोनिया गांधी अबकी से राज्यसभा के रास्ते संसद में पहुंच गई हैं.

इसलिये रायबरेली से प्रियंका के चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है. वैसे कांग्रेस पार्टी से इत्तर कई दलों के नेता इसे गांधी परिवार के भीतर के बिगड़ते रिश्तों को सुधारने के लिए डैमेज कंट्रोल से जोड़कर देख रहा है. वहीं ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं है जो यह मानकर चलते हैं कि वॉयनाड में अबकी से राहुल गांधी की जीत सुनिश्चित नहीं है, इसीलिए उन्हें अमेठी वापस आना पड़ रहा है. मगर राजनीति का एक धड़ा ऐसा भी है जो मानता है कि राहुल को अमेठी से और प्रियंका को रायबरेली से चुनाव लड़ाये जाने का निर्णय गांधी परिवार के दामाद की राजनीति में इंट्री रोकने के लिये लिया गया है. प्रियंका को रायबरेली से चुनाव लड़ाये जाने की चर्चा इसलिये हो रही है कि अमेठी से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर राबर्ट वाड्रा रायबरेली से अपनी दावेदारी ठोक सकते थे, इसलिए वहां पर भी प्रियंका को आगे करके उनकी दावेदारी पर विराम लगा दिया गया.

राजनीति के गलियारों से आ रही खबरें यदि ठीक हैं तो राहुल गांधी पांचवीं बार अमेठी सीट से एक मई को नामांकन कर सकते हैं. कांग्रेस पार्टी के लिहाज से देखें तो यह पहला मौका है, जब अमेठी के उम्मीदवार के नाम की घोषणा होने में इतनी देरी हो रही है. 1967 में बनी अमेठी लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी से मैदान में उसका ही योद्धा सबसे पहले उतरता रहा है. अमेठी में इस चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी में कभी इतनी सन्नाटा नहीं रहती थी. स्मृति ईरानी यहां कांग्रेस पार्टी पर लगातार हमलावर हैं, लेकिन कांग्रेसी खेमे में खामोशी है. अमेठी में हुए 16 चुनाव में अब तक तीन बार को छोड़ दें तो 13 बार यहां कांग्रेस पार्टी का ही कब्जा रहा है. उसमें भी नौ बार गांधी-नेहरू परिवार और दो बार इनके सिपहसालार यहां से सांसद हुए, जबकि राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव लड़ने की समाचार सार्वजनिक होते ही केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के निशाने पर राहुल गांधी आ गये हैं. चुनावी सभाओं में वह साफ-साफ कहती हैं कि पहले अमेठी में लापता सांसद के पोस्टर लगते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. 26 तारीख को वॉयनाड में वोटिंग होने के बाद गांधी परिवार का काफिला अमेठी आएगा, जिस राहुल ने 15 वर्ष तक अमेठी से तथाकथित रिश्ता जोड़ा था उसे तोड़कर वॉयनाड चले गए. 15 वर्षों तक अमेठी के लोगों ने एक लापता सांसद को ढोया. अब 26 अप्रैल के बाद अमेठी आएंगे और नया रिश्ता बनाएंगे.

खैर, रॉबर्ट वाड्रा पर की बात कि जाये तो उल्लेखनीय हो, पिछले करीब दो सप्ताह से कांग्रेस पार्टी महासचिव प्रियंका वाड्रा के पति और राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने की ख़्वाहिश जाता रहे थे. इसने अमेठी की राजनीति में सनसनी फैला दी थी. रॉबर्ट वाड्रा का नाम कहीं और से चर्चा में नहीं आया था, बल्कि वाड्रा ने स्वयं अमेठी से चुनाव लड़ने की ख़्वाहिश जताई थी, लेकिन गांधी परिवार को कुछ और ही मंजूर था. गांधी परिवार नहीं चाहता है कि कांग्रेस पार्टी की चाबी किसी और ‘घर’ में जाये. इसीलिये गांधी परिवार के लिये यह निर्णय लेना कठिन था कि रॉबर्ट को अमेठी से चुनाव लड़ाया जाये. इसके पीछे ठोस आधार भी उपस्थित है. रॉबर्ट को लड़ाने में सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि उनकी छवि काफी खराब यानी एक भ्रष्टाचारी के रूप में बनी हुई है. रॉबर्ट को अमेठी से चुनाव लड़ाया गया तो भाजपा के लिये कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार पर करप्शन को लेकर धावा तेज करने का और भी मौका मिल जाता. फिर रॉबर्ट की कोई राजनीतिक पहचान भी नहीं है. रॉबर्ट को चुनाव लड़ने पर यदि गांधी परिवार के भीतर सहमति बनी हुई होती तो कांग्रेसियों की एक बड़ी फौज रॉबर्ट को चुनाव लड़ाने के लिये हो हल्ला मचाने लगती, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, जिसका मतलब साफ था कि रॉबर्ट वाड्रा अपनी ससुराल से अलग लाइन पर चल रहे हैं.

दरअसल, रॉबर्ट चुनाव लड़कर कांग्रेस पार्टी में अपना रूतबा बढ़ाना चाहते हैं और मौका मिलने पर अपनी सियासी महत्वाकांक्षाएं भी पूरी कर सकते हैं. ऐसे में वह राहुल गांधी के समानांतर खड़े नजर आते. कुल मिलाकर रॉबर्ट वाड्रा, अपने ससुराल (गांधी परिवार) के सामने एक बड़ी राजनीतिक लाइन खींचना चाहते थे. कालांतर में वह गांधी परिवार को चुनौती देते दिख सकते थे. इसलिये प्रारम्भ से ही रॉबर्ट का अमेठी से चुनाव लड़ने का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा था, जो अब हकीकत में बदलता नजर आ रहा है.

खैर, रॉबर्ट वाड्रा के अमेठी से चुनाव लड़ने की ख़्वाहिश जाहिर करने के बाद इतना जरूर हुआ है कि कांग्रेस पार्टी को अमेठी-रायबरेली को लेकर सोचने पर विवश हो जाना पड़ा. अमेठी की चुनावी रणभूमि में एक-दो दिन में अपना योद्धा उतारकर कमजोर हो रहे कार्यकर्ताओं के आत्मशक्ति को मजबूती प्रदान कर सकते हैं. वहीं, कांग्रेस पार्टी के अमेठी के जिलाध्यक्ष प्रदीप सिंघल ने एक बार फिर अपनी बात दोहराते हुए बोला कि हमारे हिसाब से तो राहुल भइया ही अमेठी से चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे. उल्लेखनीय हो, रॉबर्ट वाड्रा ने एक समाचार एजेंसी से वार्ता करते हुए बोला कि अमेठी के लोग चाहते हैं कि उनके निर्वाचन क्षेत्र का अगुवाई करूं. सालों तक गांधी परिवार ने रायबरेली और अमेठी में कड़ी मेहनत की. अमेठी के लोग वास्तव में वर्तमान सांसद (स्मृति ईरानी) से परेशान हैं, मतदाताओं को लगता है कि उन्होंने स्मृति ईरानी को चुनकर गलती की है.

बहरहाल, कांग्रेस पार्टी यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर अखिलेश यादव के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस पार्टी को अमेठी और रायबरेली समेत 17 सीटें लड़ने के लिए मिली हैं. अमेठी और रायबरेली सीट पर कांग्रेस पार्टी ने अभी तक अपने उम्मीदवारों का घोषणा नहीं किया है. इन दोनों ही सीटों पर संशय बना हुआ है. ये दोनों सीटें अहम हैं, क्योंकि ये सीटें हमेशा गांधी परिवार का गढ़ रही हैं. हालांकि, 2019 में राहुल गांधी अमेठी सीट हार गए थे. दशकों तक जिस अमेठी में गांधी-नेहरु परिवार का डंका बजता था. आज उसी अमेठी में बीजेपी की स्मृति का जादू चल रहा है. दस वर्ष पहले आम चुनाव 2014 में बीजेपी प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस पार्टी नेता राहुल गांधी से मुकाबला करने अमेठी आई स्मृति ईरानी ने मात्र 23 दिनों में ही यहां के लोगों से कुछ ऐसा नाता जोड़ा कि उन्हें तीन लाख से अधिक मत प्राप्त हुए.

मोदी गवर्नमेंट में स्मृति ईरानी को हार के बाद भी मंत्री बनाया गया. इसी के साथ स्मृति ने अमेठी में अपनी सक्रियता बढ़ा दी. स्मृति की सक्रियता का फायदा बीजेपी को मिलने लगा और एक के बाद एक चुनाव रिज़ल्ट बीजेपी के पक्ष में आने लगे. गांव-गांव, घर-घर स्मृति अपनी नयी पहचान बनाने में पूरी तरह सफल रही. आम चुनाव 2019 में स्मृति अमेठी में बीजेपी का कमल खिलाने में सफल हुई. इसी के साथ कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की जीत का सिलसिला भी चौथी बार थम गया. इससे पहले राहुल गांधी ने 2004, 2009 और 2014 में अमेठी हैट्रिक लगा चुके थे. अमेठी के चुनावी रणभूमि में भले ही अभी तक केंद्रीय मंत्री और सांसद स्मृति ईरानी अकेली घोषित योद्धा हों पर उनकी सक्रियता चुनाव को लेकर काफी बढ़ गई है. पिछले चार दिन वह अमेठी में रहकर बूथवार चुनावी जंग में बड़ी जीत के लिए रणनीति बनाने में जुटी रही.

वर्ष 1967 में अस्तित्व में आई अमेठी संसदीय सीट में कुल पांच विधानसभाएं हैं. इनमें अमेठी, जगदीशपुर, गौरीगंज और तिलोई अमेठी जिले की हैं, जबकि सलोन विधानसभा रायबरेली जिले की है. बीते तीन चुनावों की बात करें तो अमेठी की जनता का मूड बदला-बदला नजर आया. साल 2009 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनावी समर में उतरे राहुल गांधी ने 57.24 प्रतिशत मतों के अंतर से जीत दर्ज की, लेकिन, 2014 के चुनाव में रिज़ल्ट कुछ अलग दिखा. इस बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरीं स्मृति जूबिन ईरानी मजबूती से लड़ीं. यह बात अलग है कि राहुल गांधी ने जीत दर्ज की, लेकिन मतों का फीसदी 25.07 प्रतिशत घटने के साथ ही जीत के अंतर में 32.83 प्रतिशत कमी आई. फिर साल 2019 के चुनाव में स्मृति ने गांधी परिवार के गढ़ को ध्वस्त कर जीत दर्ज कर ली. संसदीय सीट की पांच विधानसभाओं में से चार पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. ऐसे में इस बार गैर कांग्रेसी सांसद के दोबारा जीतने, जीत का अंतर बढ़ाने, सभी पांचों विधानसभा सीटों से जीत हासिल करने की एक बड़ी चुनौती स्मृति ईरानी के सामने है.

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