बुंदेलखंड के कठिया गेंहू को मिला जीआई टैग, मिलेगी इंटरनेशनल पहचान
बुंदेलखंड के कठिया गेंहू को जीआई टैग मिल गया है। बुंदेलखंड क्षेत्र का यह पहला ऐसा उत्पाद है जिसे जीआई टैग मिला है। जीआई टैग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिलने से कठिया गेंहू की खेती करने वाले किसानों की किस्मत बदलने की बात कही जा रही है। लेकिन, जीआई टैग का इस्तेमाल किसान कैसे कर पाएंगे? किसानों को इस टैग का लाभ कैसे मिलेगा? इसकी प्रक्रिया क्या होगी?इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए मीडिया ने नाबार्ड के भूपेश पाल से बात की।
भूपेश पाल ने कहा कि जीआई टैग मिलने से किसानों को बहुत लाभ होगा। लेकिन, कोई इस टैग का दुरुपयोग ना कर सके इसलिए एक प्रक्रिया निर्धारित है। एग्रीकल्चर मार्केटिंग विभाग के द्वारा एक समिति बनाई जाएगी। इस समिति की अध्यक्षता जिलाधिकारी करेंगे। इस समिति में मुख्य विकास अधिकारी, कृषि विभाग के अधिकारी, हॉर्टिकल्चर विभाग के अधिकारी, नाबार्ड और एफपीओ के सदस्य भी होंगे। यह समिति किसानों को जीआई टैग का इस्तेमाल करने की अनुमति देगी।
किसान होंगे मालामाल
भूपेश पाल ने कहा कि जो किसान इस जीआई टैग का इस्तेमाल करना चाहते हैं वह औनलाइन आवेदन कर सकते हैं। समिति किसान को एक सर्टिफिकेट और नंबर जारी करेगी। किसान जब अपने कठिया गेंहू को बाजार में बेचने के लिए पैक करेंगे तो पैकेट के ऊपर जीआई टैग का यह नंबर और क्यूआर कोड प्रिंट करवा सकते हैं। इससे ग्राहकों को इस बात की पुष्टि हो जाएगी की कठिया गेंहू जीआई टैग वाला है।
दार्जिलिंग की चाय को सबसे पहले मिला था जीआई टैग
गौरतलब है कि जीआई टैग एक भौगोलिक संकेत है, जिसका प्रयोग उन उत्पादों के लिए किया जाता है, जिनकी एक विशेष भौगोलिक उत्पत्ति होती है। साथ ही इन उत्पादों में विशेष गुण पाए जाते हैं, जनवरी 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तान में 400 से अधिक जीआई टैग वाली वस्तुएं उपस्थित हैं। हिंदुस्तान में दार्जिलिंग की चाय को वर्ष 2004 में जीआई टैग मिला था। वर्ष 2023 में यूपी के 7 उत्पादों को जीआई टैग मिला था। इसमें ढोलक से लेकर गौरा पत्थर तक शामिल है, बनारस की साड़ी, लखनऊ का आम और प्रयागराज के अमरूद को भी जीआई टैग मिल चुका है