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दिल्ली हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली केजरीवाल की अर्जी को किया खारिज

दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को शराब घोटाले में दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी को कानूनी तौर पर ठीक करार दिया. गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली केजरीवाल की अर्जी को खारिज कर दिया. उच्च न्यायालय ने बोला कि केजरीवाल को अरैस्ट करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय के पास पर्याप्त आधार हैं. न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से पेश किए गए जो सबूत, गवाहों के बयान और जांच रिपोर्ट देखी है, उसके हिसाब से केजरीवाल को अरैस्ट करना ठीक था. न्यायालय ने यहां तक कह दिया कि चुनाव का समय है, आरोपी सीएम हैं, किसी पार्टी का मुखिया है, इन सब बातों से न्यायालय को कोई फर्क नहीं पड़ता. न्यायालय कानून के हिसाब से काम करता है, राजनीति से न्यायालय प्रभावित नहीं होता. बड़ी बात ये है कि तीन सप्ताह से आम आदमी पार्टी के नेता जो तर्क देकर केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनाव से जोड़ रहे थे, उन सबको एक-एक करके न्यायालय ने धराशायी कर दिया. न्यायालय के निर्णय से आम आदमी पार्टी के नेताओं को ज़बरदस्त धक्का लगा है. जो ये नैरेटिव खड़ा करने की प्रयास कर रहे थे कि शराब भ्रष्टाचार हुआ ही नहीं, सबूत फर्जी है, गवाहों के बयान फर्जी है, ये केवल आम आदमी पार्टी को समाप्त करने कि लिए, केजरीवाल को चुनाव से दूर रखने के लिए, केन्द्र गवर्नमेंट के इशारे पर बनाई गई प्रवर्तन निदेशालय की कहानी है, उनके तर्क ध्वस्त हो गए. गिरफ़्तारी को गैरक़ानूनी बताकर चुनौती देने वाली केजरीवाल की अर्जी पर जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की सिंगल बेंच में सुनवाई पिछले सप्ताह ही पूरी हो चुकी थी. मंगलवार को निर्णय आया, काफी विस्तार से निर्णय है. केजरीवाल की तरफ से जो तर्क दिए गए थे, सबका उत्तर उच्च न्यायालय के निर्णय में है.

केजरीवाल का बोलना था कि चुनाव से पहले गिरफ्तारी की गई है, इसलिए सियासी है. न्यायालय ने बोला कि जांच एजेंसियों को इससे मतलब नहीं होता कि चुनाव है या नहीं, न्यायालय क़ानून के हिसाब से काम करता है. केजरीवाल ने प्रवर्तन निदेशालय के समन की अनदेखी की, जांच में योगदान नहीं किया, केजरीवाल की वजह से दूसरे आरोपियों की न्यायिक हिरासत पर असर पड़ा. केजरीवाल का तर्क था कि वो दिल्ली के चुने हुए सीएम हैं, उन्हें इस तरह से बिना सबूत के अरैस्ट करना गलत है. इस पर उच्च न्यायालय ने बोला कि क़ानून सबके लिए बराबर है – आम नागरिक हो या कोई मंत्री, मुख्यमंत्री. केजरीवाल का बोलना था कि उनके विरुद्ध केवल गवाहों के कुछ बयानों के आधार पर केस बनाया गया, इन गवाहों के बयान भी उत्तर डाल कर लिए गए, जिन लोगों ने केजरीवाल के विरुद्ध बयान दिए, उन्हें ज़मानत दे दी गई, आरोपियों को सरकारी गवाह बनाकर बयान लिए गए. इस पर न्यायालय ने साफ बोला कि किसे सरकारी गवाह बनाना है या नहीं, उसे माफी देनी है या नहीं, ये निर्णय न्यायालय का होता है, प्रवर्तन निदेशालय का नहीं. गवाहों के बयान मजिस्ट्रेट के सामने होते हैं, इसलिए गवाहों के बयानों पर प्रश्न उठाना न्यायालय के काम पर प्रश्न उठाने जैसा है. जहां तक गवाहों के बयानों की विश्वसनीयता पर प्रश्न है, तो ये ट्रायल के दौरान परखा जाएगा, ये काम ट्रायल न्यायालय का है, इसमें अभी उच्च न्यायालय कोई दखल नहीं देगा.

केजरीवाल का तर्क था कि सैकड़ों करोड़ के घोटाले की बात की जा रही है, लेकिन ढाई वर्ष में प्रवर्तन निदेशालय एक चवन्नी भी बरामद नहीं कर पाई है. इस पर न्यायालय ने बोला कि प्रवर्तन निदेशालय ने जो सबूत पेश किए हैं, वो मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त हैं. जहां तक पैसे की बरामदगी या मनी ट्रेल का प्रश्न है तो गोवा में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों के बयान प्रवर्तन निदेशालय ने न्यायालय के सामने रखे हैं, जिनसे साफ हो जाता है कि चुनाव के समय उम्मीदवारों को नकद में पैसा दिया गया. केजरीवाल की तरफ से बोला गया कि इस मुद्दे में प्रवर्तन निदेशालय उन्हें मुख्य आरोपी बता रही है, लेकिन कोई सबूत नहीं है. इस पर न्यायालय ने बोला कि घोटाले का पैसा आम आदमी पार्टी को मिला, केजरीवाल आम आदमी पार्टी के संयोजक हैं, दिल्ली के सीएम हैं, आबकारी शराब नीति उन्होंने बनाई और हितग्राही उनकी पार्टी है. न्यायालय ने बोला कि प्रवर्तन निदेशालय ने जो तथ्य और डॉक्यूमेंट्स पेश किए हैं, उससे लगता है कि केजरीवाल इस मुद्दे में पूरी तरह एक्टिव थे, इसलिए मुद्दा तो बनता है. केजरीवाल के मुकदमा में उच्च न्यायालय का निर्णय देखने के बाद लगता है कि उनका कारावास से निकलना अब कठिन होगा. केजरीवाल को लंबे समय तक कारावास में रहना पड़ सकता है क्योंकि उच्च न्यायालय ने बोला कि केजरीवाल शराब घोटाले में लिप्त हैं, उन्होंने घूस ली और घूस के पैसे का इस्तेमाल गोवा में चुनाव के लिए किया. अब केजरीवाल की पार्टी के नेता इस मुद्दे को राजनीति से प्रेरित नहीं बता पाएंगे. ये नहीं कह पाएंगे कि प्रवर्तन निदेशालय ने फर्जी मुकदमा तैयार किया है, गवाहों पर प्रेशर डालकर बयान दिलवाए हैं, कोई पैसा बरामद नहीं हुआ, कोई सबूत नहीं हैं, केजरीवाल का इसमें कोई रोल नहीं हैं, केजरीवाल की गिरफ्तारी उन्हें चुनाव से दूर रखने के लिए की गई है. इन सारी बातों को उच्च न्यायालय ने गलत बता दिया. उच्च न्यायालय ने कह दिया कि इस मुद्दे में केजरीवाल एक्टिव रूप से संलिप्त थे, और हितग्राही  आम आदमी पार्टी थी.

इसका मतलब ये है कि आम आदमी पार्टी की मान्यता पर भी मुसीबत आ सकती है. ये ठीक है कि क्रिमिनल कौन, इसका  निर्णय तो ट्रायल न्यायालय से आएगा. तब पता चलेगा कि कौन करप्ट है? कौन नहीं? पर ये मुद्दा केवल एक क्राइम का नहीं है. ये एक सियासी पार्टी से, एक गवर्नमेंट से जुड़ा है, एक ऐसे नेता से जुड़ा है जो अपने आप को एक वैकल्पिक नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करता रहा है. इसीलिए मुझे लगता है कि केजरीवाल ने इस मुकदमा को पहले दिन से ही ठीक से हैंडल नहीं किया. जब केजरीवाल को पहला समन मिला, तो उन्हें सीना तान कर प्रवर्तन निदेशालय के सामने जाना चाहिए था. वह भी यदि शरद पवार की तरह कहते कि मैं प्रवर्तन निदेशालय का सामना करूंगा, मैं किसी जांच से नहीं डरता तो शायद एजेंसी भी एक बार सोचती. लेकिन केजरवाल हर बार प्रवर्तन निदेशालय के समन के उत्तर में लव लेटर लिखते रहे. नौ-नौ बार प्रवर्तन निदेशालय के बुलाने पर नहीं गए, उनके न जाने से ये इंप्रेशन बना कि दाल में कुछ काला है, लगा केजरीवाल प्रवर्तन निदेशालय का सामना करने से डरते हैं. केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद भी आम आदमी पार्टी आक्रामक रही, पूरे मुकदमा को फर्जी बताया, कहा, एक भी पैसा कहीं नहीं मिला, गवाहों ने भाजपा से डरकर बयान दिए लेकिन उच्च न्यायालय के निर्णय ने इन सारी बातों पर पानी फेर दिया. आम आदमी पार्टी का तर्क था कि ये सारे इल्जाम इकबालिया गवाहों के बयानों के आधार पर लगाए गए थे और ये इकबालिया गवाह भाजपा से मिले हुए हैं. लेकिन उच्च न्यायालय ने उन गवाहों के इकबालिया बनने की प्रक्रिया को ठीक वैध प्रक्रिया माना, उनकी गवाही को ठीक माना. अब एक ही तर्क बचा है कि सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय के इस निर्णय को पलट देगा, जैसा संजय सिंह के मुकदमा में हुआ. लेकिन संजय सिंह के मुकदमा में उच्च न्यायालय ने टिप्पणियां की थी, केजरीवाल के मुकदमा में जो बोला गया वो निर्णय का हिस्सा है. इसीलिए मैंने प्रारम्भ में बोला कि केजरीवाल का कारावास से निकलना अब सरल नहीं होगा

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