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कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया का ऐलान, छात्रों के लिए हिजाब पर हटायेंगे प्रतिबंध, छिड़ी बहस


बेंगलुरु. कर्नाटक में हिजाब की राजनीति, जिसने पिछले वर्ष बीजेपी शासन के दौरान विद्यार्थी समुदाय को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने और राज्य में कानून प्रबंध की स्थिति को खतरे में डाल दिया था, एक बार फिर सामने आ गई है.

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया की घोषणा कि वह विद्यार्थियों और कॉलेज के विद्यार्थियों (कक्षा 11 और 12) के लिए हिजाब पर प्रतिबंध हटा देंगे, ने इस मामले पर एक बड़ी बहस प्रारम्भ कर दी है.

विपक्षी भाजपा ने आने वाले दिनों में कलह का संकेत दिया है. शैक्षणिक जानकारों का बोलना है कि बड़ी संख्या में मुसलमान लड़कियां, जिन्हें विद्यालय और कॉलेज जाने से वंचित रखा गया था, अब अपने घरों से बाहर निकल सकेंगी और अपनी पढ़ाई जारी रख सकेंगी.

राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की घोषणा मुसलमानों के वोटों को मजबूत करने के लिए एक सोचा-समझा सियासी कदम है. यह अयोध्या में श्री राम मंदिर के उद्घाटन की पृष्ठभूमि में बढ़ती हिंदुत्व लहर का मुकाबला करने के लिए भी है. वे यह भी बताते हैं कि यह घोषणा 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की लहर का मुकाबला करने और ‘बाहुबल’ राष्ट्रवाद के उदय को रोकने के लिए भी है.

पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने बोला कि हालांकि बीजेपी हिजाब प्रतिबंध हटाने के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन आयोजित नहीं करेगी, लेकिन लोग आनें वाले संसदीय चुनावों में कांग्रेस पार्टी को सबक सिखाएंगे. बीजेपी विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल और पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि ने बोला कि हिंदू विद्यार्थी अब मांग कर रहे हैं कि उन्‍हें भगवा शॉल और तिलक का प्रयोग की अनुमति दी जाए.

भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्ता करुणाकर कसाले ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के सत्ता संभालने के बाद, वह कर्नाटक में तुष्टिकरण की राजनीति का सहारा ले रहे हैं. वह समुदायों को बांट रहे हैं. उन्होंने कहा, राज्य में सूखा है. कोई भी मंत्री इसके बारे में बात नहीं कर रहा है. वे लोगों को उत्तर नहीं दे रहे हैं. वे राजनीति कर रहे हैं और मुद्दों को भटका रहे हैं.

करुणाकर कसाले ने कहा,यह बयान एक समुदाय को दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने के बारे में है. कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक के लोगों को विश्वासघात दिया है. यह विद्यार्थियों के दिमाग में जहर और नफरत के बीज बोने के बारे में है. मुद्दा उच्चतम न्यायालय में है और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का बयान गलत है. मुद्दे कड़ा विरोध होने वाला है और इसके रिज़ल्ट के रूप में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को त्याग-पत्र देना पड़ सकता है.

राजनीतिक विश्लेषक चन्नबसप्पा रुद्रप्पा ने आईएएनएस से कहा, हिजाब पर बयान वोट बैंक को मजबूत करने के बारे में है. राष्ट्र में राम मंदिर का बुखार प्रारम्भ हो गया है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अहिंदा वोटों को मजबूत कर रहे हैं. एक सप्ताह में एडिगा, मडिवाला, गनीगा, भोवी और दलितों जैसे पिछड़े वर्गों के सम्मेलन आयोजित किए जाने हैं.

रुद्रप्पा ने कहा,एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को इण्डिया ब्लॉक के लिए पीएम उम्मीदवार के रूप में पेश करने के साथ, दलित हितों का ध्यान रखा गया है, मुसलमान वोटों को मजबूत करने के लिए हिजाब मामले को सामने लाया गया है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया राज्य में स्वयं को प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध खड़ा कर रहे हैं.

शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता निरंजन आराध्या ने आईएएनएस को बताया, हिजाब पर प्रतिबंध हटाने का मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का यह एक स्वागत योग्य फैसला है. कोई भी फैसला जो विद्यालयों और कॉलेजों में विद्यार्थियों के मौलिक अधिकार को छीनता है, उसका बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ेगा.

उन्होंने कहा,हिजाब प्रतिबंध के कारण कई स्त्री विद्यार्थियों ने शिक्षा का अधिकार खो दिया था. कई ने पहले पीयूसी (कक्षा 11) में प्रवेश नहीं लिया और दूसरे पीयूसी (कक्षा 12) को बंद कर दिया. पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ( पीयूसीएल) ने अपने शोध में कहा कि जाब पर प्रतिबंध के बाद लड़कियों के माता-पिता ने उन्हें विद्यालयों में भेजने में रुचि नहीं दिखाई.

निरंजन आराध्य ने आगे बोला कि पिछला निर्णय शिक्षा के मौलिक अधिकारों के प्रति प्रतिगामी था.

इसके अलावा, हिंदुस्तान का संविधान बहु-संस्कृति और बहुभाषावाद जैसे विभिन्न मूल्यों के बारे में बात करता है. जब सभी परंपराओं का पालन करने का प्रावधान है, तो धर्म के नाम पर इसे रोकना गलत है. राज्य में एक के बाद की गई गलतियों को ठीक किया जा रहा है.

निरंजन आराध्या ने कहा, एक शिक्षा जानकार के रूप में मैं हमेशा बच्चों के मौलिक अधिकारों का समर्थन करता हूं. बाल अधिकारों पर संयुक्त देश कन्वेंशन (यूएनसीआरसी) साफ रूप से कहता है कि शिक्षा को बच्चे की गरिमा को प्रभावित किए बिना इस तरह से अनुशासन और शिक्षा दी जानी चाहिए.

बच्चे की गरिमा बच्चे की मान्यताओं, उनके रीति-रिवाजों का गठन करती है. यह गरिमा को बनाए रखने का हिस्सा है. अंतर्राष्ट्रीय कानून उन्हें मान्यता देते हैं, और भारतीय संविधान इसके लिए गुंजाइश प्रदान करता है. हालांकि कानूनी प्रावधान हैं, लेकिन सियासी उद्देश्यों के लिए उनका उल्लंघन किया जाता है.

मुझे आशा है कि इस संबंध में मुनासिब आदेश पहले जारी किए जाएंगे. यह भाईचारे और भारतीय संविधान को बरकरार रखता है. इसे अधिक से अधिक किया जाना चाहिए ताकि सभी समुदाय के बच्चों का विकास हो सके.

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