Lok Sabha Chunav: विपक्ष के OBC पॉलिटिक्स का BJP ने निकाला तोड़
OBC Vote Bank बीजेपी SP Congress: मैं दंग हूं कांग्रेस पार्टी के हमारे साथियों को इतना बड़ा ओबीसी नजर नहीं आता… कुछ दिन पहले लोकसभा में अपनी तरफ इशारा करते हुए पीएम मोदी ने यह बात कही थी। यह एक लाइन अपने आप में समझाने के लिए काफी है कि लोकसभा चुनाव करीब आने पर कैसे राजनीति ओबीसी वोटरों को साधने पर केंद्रित हो गई है। गवर्नमेंट में उच्च पदों पर ओबीसी कितने… जैसे प्रश्न कांग्रेस पार्टी उठा रही है। राहुल गांधी यात्रा में लोगों से यही बात दोहरा रहे हैं। अब समाजवादी पार्टी के लोकसभा उम्मीदवारों की लिस्ट देखिए तो उसका भी फोकस समझ में आ जाता है।
जी हां, लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी ने ओबीसी कार्ड चला है। अखिलेश यादव PDA यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक फॉर्मूले की बात करते रहे हैं लेकिन कैंडिडेट लिस्ट देखिए तो पता चलता है कि उनका पूरा फोकस ओबीसी वोटों पर है। यही ओबीसी बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक है। सपा ने ठाकुर, दलितों और मुसलमान कैंडिडेट के अलावा जाट, मौर्य, पटेल और वर्मा को भी टिकट दिया है। यह तो अभी आरंभ है अभी 27 टिकट ही घोषित किए गए हैं।
27 में 15 ओबीसी
जी हां, समाजवादी पार्टी ने अभी तक कुल 27 उम्मीदवार उतारे हैं। उसमें दूसरी सूची में 11 में से 4 गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवार शामिल हैं। पहली सूची में 16 में से 8 गैर-यादव ओबीसी प्रत्याशी उतारे गए थे। इस तरह से अब तक सामने आए 27 उम्मीदवारों में कुल 15 ओबीसी समाज से हैं।
यादव तो साथ लेकिन…
सपा को एक समय यादवों से ही जोड़कर देखा जाता था। वो सपा-बसपा का दौर था। आज जब भाजपा ओबीसी में भी पिछड़े समाज को टारगेट कर रही है तो समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के करीब 11 प्रतिशत यादवों के अतिरिक्त ओबीसी के बड़े तबके को अपने साथ जोड़ने की कोशिशों में जुट गई है। 24 वर्ष पहले की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में ओबीसी की जनसंख्या 54 प्रतिशत है।
भाजपा की रणनीति
पिछले दिनों जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को हिंदुस्तान रत्न देने का घोषणा हुआ तो इसे भाजपा का मास्टरस्ट्रोक माना गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे लेकिन भाजपा वहां की सत्ता में आ गई। इसका असर लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिल सकता है। राहुल गांधी ‘न्याय यात्रा’ लेकर निकले हुए हैं और हर सभा में जाति जनगणना की बातें कर रहे हैं। ऐसे में संसद में बोलते हुए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने ओबीसी समुदाय का जिक्र करते हुए कांग्रेस पार्टी पर जोरदार धावा बोला। उन्होंने बोला कि कांग्रेस पार्टी पार्टी ने ओबीसी समुदाय के साथ अन्याय किया। इन्होंने ओबीसी नेताओं का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कर्पूरी ठाकुर का जिक्र करते हुए मोदी ने बोला कि याद कीजिए अति पिछड़े ओबीसी समाज के उस महापुरुष के साथ क्या व्यवहार हुआ था।
आधी जनसंख्या ओबीसी!
ऐसे में यह समझना जरूरी है कि ओबीसी वोटरों पर चुनाव केंद्रित क्यों दिख रहा है? दरअसल, राष्ट्र की जनसंख्या में ओबीसी समाज के लोग करीब 52 प्रतिशत हैं। ऐसे में यह वोट बैंक जिस तरफ झुकेगा उसकी जीत तय होगी। हालांकि इसमें भी दो तबका है। एक तबका जो थोड़ा संपन्न है और उसे अगुवाई मिल चुका है और कई पार्टियों में उनका बोलबाला है। दूसरा तबका उनका है जिन्हें कोई अगुवाई नहीं है और वे अति पिछड़े श्रेणी में कहे जा सकते हैं। भाजपा इन्हीं अति पिछड़ों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है। दूसरी तरफ, समाजवादी पार्टी ने पार्टी रैंक में ओबीसी का अगुवाई बढ़ाया है और अब कैंडिडेट सिलेक्शन में भी ओबीसी पर अधिक फोकस किया जा रहा है।
पिछले दो लोकसभा चुनावों में कमजोर ओबीसी जातियों के वोटर भाजपा की ओर अधिक आकर्षित हुए हैं। पहले ओबीसी कांग्रेस पार्टी और क्षेत्रीय दलों को ही वोट करता था लेकिन मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद ये सपा, जनता दल, आरएलडी, जेडीएस जैसी पार्टियों के साथ चला गया।
प्रधानमंत्री स्वयं ओबीसी हैं और गैर-रसूखदार ओबीसी की जातियों को लुभाने में भाजपा काफी हद तक सफल रही है। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण देने की तैयारी है लेकिन ओबीसी आरक्षण को कम नहीं किया जाएगा। भाजपा ने यह बात जोर-शोर से कही है कि ओबीसी आरक्षण और दूसरी सुविधाओं का लाभ अति पिछड़ी जातियों को नहीं मिल रहा है। पीएम रैलियों में जातियों के नाम भी लेते रहे हैं जिससे उन वोटरों को अपने अगुवाई का एहसास हो। 90 के दशक में ही कांग्रेस पार्टी से ओबीसी वोटर दूर चले गए थे। राहुल गांधी को पता है कि ओबीसी वोटर यदि लौटे तो पलड़ा भारी हो सकता है। यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी जातीय जनगणना का पुरजोर समर्थन कर रही है। स्त्री आरक्षण बिल में ओबीसी कोटे की मांग की गई है। इस तरह से देखें तो बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी का भी ओबीसी पर फोकस अधिक दिख रहा है।