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मायावती : बहुजन समाज पार्टी अकेले लड़ेगी लोकसभा चुनाव

बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने फिर एक बार आनें वाले लोकसभा चुनाव को लेकर घोषणा की है कि बसपा अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेगी मायावती इसके पहले भी कई बार लोकसभा चुनाव के लिए किसी भी तरह के गठबंधन में शामिल होने से मना करती रही हैं उन्होंने चुनाव के लिए अभी तक प्रत्याशियों की घोषणा भी नहीं की है जिसके कारण उनके इण्डिया गठबंधन में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे हैं 2024 के आम चुनाव में सियासी लिहाज से यूपी जैसे अहम राज्य में हर सियासी दल अधिक से अधिक सीटें हासिल करना चाहता है इसलिए एनडीए और इण्डिया गठबंधन में छोटे-बड़े दल शामिल होकर अपना सियासी कद और हैसियत बढ़ाना चाहते हैं ऐसे में मायावती का किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना कई प्रश्न खड़े करता है

प्रश्न यह है कि क्या अकेले चुनाव लड़कर मायावती एनडीए और इण्डिया गठबंधन को चुनौती दे पाएंगी? क्या मायावती को भरोसा है कि उनका कोर वोट बैंक पूरी तरह उनका साथ देगा? क्या मायावती को लगता है कि त्रिकोणीय मुकाबले में बीएसपी हावी रहेगी? क्या मायावती को इस बात का भरोसा है कि इण्डिया गठबंधन की बजाय मुसलमान मतदाता उनके साथ मजबूती से खड़े होंगे? क्या मायावती चुनाव नतीजों के हिसाब से रणनीति का खुलासा करेगी? क्या मायावती एकला चलो की राह पर हैं या फिर वो जिस तरह से शान्त हैं उसके पीछे कोई बड़ा प्लान है?

बसपा प्रमुख ने पिछले छह-सात महीने में अकेले चुनाव लड़ने की बात कई बार कही है, साथ ही यह भी बोला कि गठबंधन करने से उनको हानि होता है इसमें कोई गलत बात नहीं है कि कोई पार्टी गठबंधन नहीं करे और चुनाव अकेले लड़े लेकिन पार्टी लड़ते हुए तो दिखाई दे! मायावती की बसपा भाजपा और सपा दोनों के साथ गठजोड़ कर चुकी है लेकिन बीते ढाई दशकों से बीएसपी का बीजेपी के भाजपा के प्रति अधिक रुझान देखा गया है मायावती तीन बार बीजेपी के योगदान से उत्तर प्रदेश की सीएम भी बन चुकी हैं

बसपा ने पिछला लोकसभा चुनाव सपा के साथ मिल कर लड़ा था लेकिन समाजवादी पार्टी की सहायता से शून्य से 10 सीट पर पहुंचने के बाद ही उन्होंने सामंजस्य खत्म कर दिया था इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीएसपी का वोट बैंक भी खिसक रहा है बीएसपी सुप्रीमो भले ही कहें कि गठबंधन से उनकी पार्टी को हानि होता है लेकिन सच्चाई तो ये है कि पिछले लोकसभा चुनाव में गठबंधन का सबसे अधिक फायदा बीएसपी को ही हुआ था साल 1996 में बीएसपी ने 6 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, तब बीएसपी को 20.6 फीसदी मत मिले थे साल 1998 में बीएसपी को चार सीटें मिलीं और वोट फीसदी बढ़कर 20.9 फीसदी हो गया साल 1999 में बीएसपी को 14 सीटें मिलीं और मत 22.08 फीसदी हो गया साल 2004 में सीटें बढ़कर 19 हो गईं और 24.67 फीसदी मत मिले बीएसपी ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन साल 2009 में किया जब पार्टी को 20 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई और 27.42 फीसदी मत मिले

बसपा की स्थिति वर्ष 2014 से बदलती चली गई बीस सांसदों वाली बीएसपी को इस चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं हो पाई और उसका मत फीसदी भी गिरकर 19.77 फीसदी पर आ गया बीएसपी के वोट में लगभग आठ फीसदी की गिरावट आई 1996 के बाद बीएसपी का ये सबसे बुरा प्रदर्शन था साल 2019 में बीएसपी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया जिसका बीएसपी को भरपूर फायदा हुआ और शून्य सीटों वाली बीएसपी ने दस सीटों पर विजय प्राप्त की जबकि उसका मत और कम हुअ इस चुनाव में बीएसपी को समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर 19.43 फीसदी ही मत मिले विधानसभा में बीएसपी का सिर्फ़ एक विधायक है

एक वो समय था जब बीएसपी चुनाव से काफी समय पहले ही उम्मीदवार घोषित कर देती थी सबसे पहले संभवतः बीएसपी ने ही चुनाव से महीनों पहले उम्मीदवार घोषित करने प्रारम्भ किए थे लेकिन अब चुनाव एकदम सिर पर आ चुके हैं और बीएसपी उम्मीदवारों की घोषणा की बजाय अकेले चुनाव लड़ेंगे का पुराना रिकॉर्ड बजाए जा रही है जबकि भाजपा, सपा, रालोद और सुभासपा कई सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर चुके हैं बड़ी मशक्कत के बाद बीते 10 मार्च को बीएसपी ने उत्तर प्रदेश की मुरादाबाद सीट से मो इरफान सैफी को अपना पहला प्रत्याशी घोषित किया है

पिछले एक दशक में मायावती के कई भरोसेमंद सिपहसालार दूसरी पार्टियों में शामिल होते चले गए बीते चुनाव में जीते 10 सांसद भी नयी राजनीतिक संभावनाएं तलाश रहे हैं इसमें अंबेडकर नगर से सांसद रितेश पांडे भाजपा में शामिल हो चुके हैं उन्हें भाजपा ने टिकट भी दे दिया है वहीं गाजीपुर सांसद अफजाल अंसारी को समाजवादी पार्टी उम्मीदवार घोषित कर चुकी है वहीं, अमरोहा से दानिश अली अब कांग्रेस पार्टी के खेमे में हैं जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव भी कांग्रेस पार्टी की ओर कदम बढ़ा चुके हैं बिजनौर से सांसद मलूक नागर और लालगंज लोकसभा सीट से सांसद संगीता आजाद के भी पाला बदलने के कयास लगाए जा रहे हैं

यूपी समेत राष्ट्र के अन्य राज्यों में बसपा का राजनीतिक ग्राफ चुनाव रेट चुनाव गिरता ही जा रहा है पिछले साल विधानसभा चुनावों में आकाश आनंद छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में पार्टी का चुनावी अभियान संभाल रहे थे, जहां पार्टी ने पिछले चुनाव की तुलना में काफी खराब प्रदर्शन किया है राजस्थान छोड़कर किसी भी राज्य में बीएसपी का खाता तक नहीं खुला और वोट प्रतिशत में भी गिरावट आई बीएसपी अब यूपी और बाहर के राज्यों में हर स्थान कमजोर दिखाई दे रही है मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली समेत उत्तर हिंदुस्तान के राज्यों में पार्टी संगठन लचर हाल में है पार्टी अपने कोर दलित वोटरों को भी एकजुट करने में सफल नहीं हो पाई है सत्ता से बाहर होने के बाद मायावती से दलितों का मोहभंग लगातार होता जा रहा है वास्तव में, कांशीराम ने बीएसपी का जो राजनीतिक समीकरण बनाया था, वो गड़बड़ा चुका था और दलितों के बीच चंद्रशेखर आजाद नयी लीडरशिप के रूप में स्वयं को खड़ा कर रहे हैं इस तरह से बसपा राजनीतिक चक्रव्यूह में घिरी हुई है, जहां एक तरफ भाजपा गैर-जाटव वोटों को अपने पाले में ले चुकी है तो जाटव वोट को चंद्रशेखर अपने साथ जोड़ने में लगे हैं दलित राजनीति का चेहरा माने जाने वाली मायावती की चमक अब पहले जैसी नहीं रही है

वर्ष 2009 में 27.42 फीसदी मत वाली बीएसपी 2019 के आम चुनाव में 19.43 फीसदी पर आ गई जबकि इस चुनाव में बीएसपी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में थी 2007 में बसपा उत्तर प्रदेश में भले ही पूर्ण बहुमत के साथ गवर्नमेंट बनाने में सफल रही हो, लेकिन उसके बाद से ही गिरावट देखने को मिल रही है 2012 के उत्तर प्रदेश चुनाव में बसपा 2007 के 206 सीट से घटकर 80 सीटों पर आ गई 2017 में बसपा महज 19 सीटों पर सिमट गई 2022 के चुनाव में बसपा एक सीट जीतने के साथ 13 प्रतिशत वोट पर सिमट गई

प्रदेश में अस्तित्व की जंग लड़ रही बीएसपी को अपनी सुप्रीमो और पूर्व सीएम मायावती के गृह जनपद में भी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए चेहरों का अकाल पड़ गया है चुनाव सिर पर हैं, बावजूद इसके बीएसपी के खेमे में कोई खास हलचल दिखाई नहीं देती मायावती और बीएसपी के किसी दूसरे नेता अभी तक कोई चुनावी रैली भी नहीं की है 2024 के आम चुनाव में बीएसपी का वोट फीसदी और सांसदों की संख्या नहीं बढ़ती है तो पार्टी के लिए राजनीतिक राह कठिन हो जाएगी 2014 में अकेले लड़ने का खामियाजा बीएसपी भुगत चुकी है ठीक मायनों में बीएसपी के लिए चुनाव का रास्ता मुश्किलों से भरा है यूपी की सत्ता पर चार बार काबिज होने वाली मायावती का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला उनके लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है

 

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