राज्यसभा की हार ने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी को उजागर कर दिया है। चुनाव के बाद से ही प्रदेश में कांग्रेस के दो धड़े नजर आ रहे थे। इनमें एक धड़ा वीरभद्र सिंह समर्थकों का है, तो दूसरा धड़ा सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का है। वीरभद्र सिंह के समर्थक विधायकों को प्रतिभा सिंह लीड कर रही हैं। अयोध्या में जब राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित हुआ, तो उस वक्त कांग्रेस पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को निमंत्रण मिला था, लेकिन उन्होंने वहां पहुंचने में असमर्थता जताई थी। खास बात है कि पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के बेटे और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने के लिए अयोध्या पहुंच गए थे। विधायक सुधीर शर्मा ने भी समारोह में भाग लिया था। तब से ही कांग्रेस पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था।
सीएम सुक्खू से नाराज विक्रमादित्य सिंह ने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने भावुक होते हुए कहा, इस सरकार द्वारा हमें प्रताड़ित किया गया। वे अपने पिता के पद चिन्हों पर चलेंगे। उन्होंने सुक्खू सरकार पर आरोप लगाया कि इसने उनके पिता वीरभद्र सिंह का स्टैच्यू लगाने के लिए जमीन तक नहीं दी। कांग्रेस विधायकों के साथ अनदेखी की गई। नतीजा, कांग्रेस के कई विधायक उनसे नाराज हैं। उधर, कांगेस ने अपने वरिष्ठ नेता डीके शिवकुमार और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को शिमला भेजा है। ये दोनों नेता, नाराज विधायकों से बात कर रहे हैं।
मंगलवार को हुए राज्यसभा चुनाव ने हिमाचल प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया है। राज्यसभा की एक सीट के लिए हुए चुनाव में कांग्रेसी खेमें के विधायकों में जमकर क्रॉस वोटिंग हुई। नतीजा, कांग्रेस पार्टी का बहुमत होते हुए भी भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में बाजी मार ली है। क्रॉस वोटिंग के चलते कांग्रेसी उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन ने जीत हासिल की है। जानकारों का कहना है कि राज्यसभा चुनाव ने पहाड़ की राजनीति के समीकरण बदल दिए हैं। अब हिमाचल प्रदेश की सियासत, अब क्रॉस वोटिंग के इस खेल तक ही सीमित नहीं रहेगी। अब सुक्खू सरकार पर ‘ऑपरेशन लोटस’ का खतरा भी मंडराने लगा है। हिमाचल के पूर्व सीएम जय राम ठाकुर ने कह दिया है कि सरकार अल्पमत में है। वित्त बिल को विधानसभा में वोटिंग के आधार पर पास नहीं किया गया। केवल वॉयस नोट के आधार पर इसे पास करना पड़ा। पार्टी लाइन से हटकर कांग्रेस के कई विधायक हमारे संपर्क में हैं।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के 40 विधायक हैं। राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की तरफ से यह दावा किया गया था कि उसे प्रदेश के तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी हासिल है। 68 सदस्यों वाली हिमाचल प्रदेश विधानसभा में भाजपा के 25 विधायक हैं। इसके बावजूद प्रदेश की एक सीट के लिए हुए राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा है तो इसका मतलब समझा जा सकता है। भविष्य में कांग्रेसी खेमे में टूट नहीं होगी, ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। राज्यसभा चुनाव की हार, मुख्यमंत्री सुखविंद्र सुक्खू के लिए खतरे की घंटी है। प्रदेश की राजनीति के जानकारों ने कहा, भाजपा के लिए यह जीत एक बड़ा संकेत है। प्रदेश की कांग्रेस सरकार के लिए ये शुभ संकेत नहीं हैं।