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निर्वासित तिब्बती सरकार और चीन के बीच पर्दे के पीछे चल रही है बातचीत

शिमला न्यूज़ डेस्क .. निर्वासित तिब्बती गवर्नमेंट और चीन के बीच पर्दे के पीछे वार्ता चल रही है. यह इस बात का संकेत है कि दोनों पक्षों के बीच एक दशक से अधिक समय से रुकी वार्ता प्रक्रिया फिर से प्रारम्भ हो सकती है तिब्बत में चीनी विरोधी विरोध प्रदर्शन और बौद्ध धर्म के प्रति बीजिंग के कट्टरपंथी दृष्टिकोण ने दोनों पक्षों के बीच औपचारिक वार्ता प्रक्रिया को पूरी तरह से रोक दिया.

तिब्बत की निर्वासित गवर्नमेंट के सियासी प्रमुख पेन्पा त्सेरिंग ने अनौपचारिक वार्ता की पुष्टि की. उन्होंने बोला कि उनके वार्ताकार “बीजिंग में लोगों” से बात कर रहे हैं लेकिन किसी समझौते पर पहुंचने की तुरन्त कोई आशा नहीं है. त्सेरिंग ने संवाददाताओं से कहा, “पिछले वर्ष से पर्दे के पीछे वार्ता चल रही है, लेकिन हमें तुरन्त कोई आशा नहीं है.

भारत को थोड़ा और मुखर होना चाहिए
निर्वासित तिब्बती गवर्नमेंट के नेता ने कहा, आप देख सकते हैं कि हिंदुस्तान की विदेश नीति अब और अधिक गतिशील हो रही है. पूरे विश्व में हिंदुस्तान का असर भी बढ़ रहा है इस संबंध में हम निश्चित रूप से चाहेंगे कि हिंदुस्तान तिब्बत मामले पर थोड़ा और मुखर हो. 1959 में चीनी उपद्रव के बाद 14वें दलाई लामा ने भी हिंदुस्तान में शरण ली थी.

पूरी वार्ता प्रक्रिया फिर से प्रारम्भ होनी चाहिए
2002 से 2010 के बीच तिब्बत और चीन के प्रतिनिधियों के बीच नौ दौर की वार्ता हो चुकी है. लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला अब पर्दे के पीछे की वार्ता का उद्देश्य पूरी वार्ता प्रक्रिया को बहाल करना है क्योंकि तिब्बत मामले को हल करने का यही एकमात्र तरीका है.

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