उत्तर प्रदेश

प्राचीन सिद्धपीठ हनुमानगढ़ी अधोध्या का माना जाता है सबसे प्रसिद्ध हनुमान मंदिर

अयोध्या न्यूज डेस्क् !!! हनुमानगढ़ी मंदिर, जहां हनुमान जी आज भी अयोध्या की रक्षा करते हैं, वहां लाखों श्रद्धालु अपनी श्रद्धा और आस्था के साथ हाजिरी लगाते हैं. मंदिर की प्राचीनता और इसकी वास्तुकला अद्वितीय है, जिसे 17वीं शताब्दी में अवध के नवाब ने बनवाया था. प्राचीन सिद्धपीठ हनुमानगढ़ी अधोध्या का सबसे मशहूर हनुमान मंदिर माना जाता है. हनुमानगढ़ी मंदिर की स्थापना लगभग 300 साल पूर्व स्वामी अभयराम जी ने की थी. राम अयोध्या के दिल में विराजमान हैं. पौराणिक कथाओं में बोला गया है कि लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद हनुमान ने राजद्वार के सामने एक ऊंचे टीले पर अपना निवास जगह बनाया था. तब से वह यहीं रहे. भक्तों का मानना ​​है कि आज भी हनुमान अमरता का वरदान लेकर यहां सूक्ष्म रूप से विद्यमान हैं.

हनुमानगढ़ी मंदिर, जहां हनुमान जी आज भी अयोध्या की रक्षा करते हैं, वहां लाखों श्रद्धालु अपनी श्रद्धा और आस्था के साथ हाजिरी लगाते हैं. मंदिर की प्राचीनता और इसकी वास्तुकला अद्वितीय है, जिसे 17वीं शताब्दी में अवध के नवाब ने बनवाया था. प्राचीन सिद्धपीठ हनुमानगढ़ी अधोध्या का सबसे मशहूर हनुमान मंदिर माना जाता है. हनुमानगढ़ी मंदिर की स्थापना लगभग 300 साल पूर्व स्वामी अभयराम जी ने की थी.

हनुमानगढ़ी मंदिर अयोध्या में सरयू नदी के दाहिने किनारे पर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 76 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. बोला जाता है कि यहां बजरंगबली के दर्शन के बिना रामलला की पूजा अधूरी मानी जाती है हनुमानगढ़ी को ईश्वर बजरंगबली का घर बोला जाता है. ऐसा माना जाता है कि जब ईश्वर राम हनुमान जी के साथ लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या आये थे, तब हनुमान जी यहीं एक गुफा में रहने लगे थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे.

लंका विजय के बाद लाये गये निशान भी यहीं रखे गये हैं. हनुमानगढ़ी मंदिर में एक विशेष ‘हनुमान निशान’ है, जो लगभग 4 मीटर चौड़ा और 8 मीटर लंबा ध्वज है. ऐसा माना जाता है कि हर पूजा से पहले लगभग 200 लोग इसे पकड़कर जन्मभूमि जगह पर ले जाते हैं. जहां सबसे पहले इसकी पूजा की जाती है हनुमानगढ़ी के निर्माण के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. बोला जाता है कि जब नवाब शुजाउद्दौला के शहजादे गंभीर रूप से बीमार पड़े तो डॉक्टरों ने भी उनकी सहायता की नवाब परेशान हो गया और हिंदू मंत्रियों ने उस पर बाबा अभयराम और हनुमान जी की कृपा के बारे में नवाब को बताया. बोला जाता है कि जब अभयराम ने कुछ मंत्र पढ़े और हनुमानजी के चरणों का जल नवाब के बेटे पर छिड़का तो नवाब ने इसे करिश्मा माना और अभयराम को हनुमानगढ़ी बनाने के लिए कहा.

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