उत्तर प्रदेश

माफिया अंसारी की मौत का गाजीपुर और आसपास की राजनीति पर क्या होगा असर

Mukhtar Ansari Death: बांदा कारावास में मुख्तार आंसारी की मृत्यु को लेकर यूपी-बिहार के राजनीतिक दलों ने एक साथ विरोध कर सहानुभूति की राजनीति को गर्माने की प्रयास की है. बीजेपी इस मामले पर सधी हुई प्रतिक्रिया दे रही है. वहीं विपक्षी दल सपा, आरजेडी, कांग्रेस पार्टी और बीएसपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. ऐसे में जबकि चुनाव प्रक्रिया चालू है, बड़ा प्रश्न है कि क्या राजनीतिक दलों की मंशा के अनुसार मुख्तार की मृत्यु का मामला मुसलमान वोटों के तुष्टीकरण का सबब बनेगा? क्या विपक्ष को सहानुभूति की राजनीति का फायदा मिलेगा या फिर इस गर्माई राजनीति का फायदा बीजेपी के लिए सहानुभूति के रूप में संगठित होगा.

मुख्तार और उसके भाई अफजाल अंसारी का पूर्वांचल की गाजीपुर और घोसी लोकसभा सीटों के अतिरिक्त मऊ जिले में भी अच्छा राजनीतिक रसूख रहा है. इन जिलों के अतिरिक्त वाराणसी, आजमगढ़ और बलिया में भी मुख्तार अंसारी की अल्पासंख्यकों में पकड़ कही जाती रही है. मुख्तार के भाई अफजाल ने शुरुआती राजनीतिक यात्रा इस क्षेत्र से कम्युनिस्ट पार्टी से प्रारम्भ किया. गरीबों और बुनकरों की राजनीति कर उनकी समाज में धीरे-धीर पकड़ बनती गई जो आज भी बरकरार है.

सपा चाहती है मिले सहानुभूति वोट
समाजवादी पार्टी ने अतीक अहमद की मृत्यु पर भी गवर्नमेंट को घेरते हुए प्रश्न उठाए थे. इस बार अखिलेश यादव ने कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया कर मुसलमान समाज को संदेश देने की प्रयास की है. दरअसल, बसपा के चुनाव में अलग होने या यूं कहें गठबंधन में न होने के चलते इण्डिया गठबंधन मुसलमान मतों के बंटवारे को लेकर सावधान है. इण्डिया गठबंधन कोई भी ऐसा मौका नहीं चूकना चाहता, जिससे मुस्लिमों में गलत संदेश जाए. यही वजह रही कि सपा के विधायकों की मांग के बावजूद अखिलेश यादव ने अयोध्या में रामलला के दर्शन करने में सधी हुई रणनीति बनाई और विधायकों के साथ अयोध्या नहीं गए.

बसपा ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ की चाहत में दिया मुख्तार का साथ
सियासी यात्रा में साम-दाम-दंड भेद का इस्तेमाल कर मुख्तार सबसे पहले मायावती के करीबी हुए थे. बसपा प्रमुख मायावती ने मुख्तार के जरिये सबसे पहले पूर्वांचल में दलितों के साथ मुसलमान मतों को साथ लेने के लिए मुख्तार के कंधे पर हाथ रखा. मुलायम सिंह यादव भी इसे पहले ही भांप गए थे और उन्होंने साल 1995 में मुख्तार को अपने साथ कर लिया. नब्बे के दशक में ही मुख्तार पूर्वांचल के इस क्षेत्र में अल्पसंख्यकों की राजनीति का बड़ा सिपहसलार बन गया. खासतौर पर उनके भाई अफज़ाल और मुख्तार अंसारी…. वर्तमान परिस्थिति में बीएसपी इसी तर्ज पर वर्तमान परिस्थिति में न्यायिक जांच की पैरवी कर मुसलमान समाज को संदेश देने की प्रयास कर रही है.

कांग्रेस भी सहानुभूति भुनाने में जुटी
हैरत तो यह कि कांग्रेस पार्टी ने भी न्यायिक जांच की मांग की है. कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के भाई अवधेश राय की मर्डर में ही मुख्तार को उम्रकैद हुई है लेकिन पार्टी ने इसे नज़रअंदाज कर बड़े लक्ष्य पर निशाना साधा है. चुनाव प्रचार में पार्टी मुख्तार अंसारी के परिवार के साथ खड़ी होकर यह दर्शाने की प्रयास में है कि मुसलमान हितों के लिए किसी हद तक जा सकती है. ऐसे में राजनीतिक समर में देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले को पार्टियां कैसे भुनाती हैं.

मुस्लिम एकजुटता की भी हो सकती है प्रतिक्रिया
पूर्व आईजी और सियासी समीक्षक अरुण कुमार गुप्ता कहते हैं-‘किसी क्रिमिनल या माफिया की मृत्यु पर समाज में सहानुभूति नहीं पैदा होती. यदि यही होता तो साल 2009 में शहाबुद्दीन के कारावास जाने के बाद उनकी पत्नी चुनाव जीत जातीं. राजू पाल की पत्नी पूजा पाल भी उपचुनाव में हार गई थीं. हां, यह जरूर है कि यदि इस स्वभाविक मृत्यु को लेकर अधिक शोर हुआ तो मुसलमान एकजुटता की प्रतिक्रिया में बीजेपी को फायदा हो तो हैरत नहीं.

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