उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश में पहले चरण के चुनाव से भाजपा को काफी उम्मीदें

राष्ट्रीय लोक दल के योगदान से बीजेपी को यहाँ सभी सीटें जीतने का भरोसा है.

एक पार्टी पदाधिकारी ने कहा, ”भाजपा-रालोद गठबंधन पहले चरण में जीत हासिल करेगा. जनता का मूड, और चुनावी गणित भी, हमारे पक्ष में है.

सपा-बसपा गठबंधन ने 2019 के चुनावों में पाँच सीटें जीती थीं – सहारनपुर, बिजनौर और नगीना बीएसपी की झोली में गई थीं जबकि मोरादाबाद और रामपुर सपा (एसपी) को मिली थीं.

इस बार बीजेपी ने बिजनोर सीट सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल को दे दी है, लेकिन अन्य सीटों पर वह सावधानी से कदम बढ़ा रही है. रालोद ने अपने मीरापुर विधायक चंदन चौहान, जो कि एक गुर्जर हैं, को बिजनौर में समाजवादी पार्टी के दलित उम्मीदवार यशवीर सिंह के विरुद्ध मैदान में उतारा है. बीएसपी ने जाट बिजेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है, जो रालोद छोड़कर मायावती की पार्टी में शामिल हुए थे.

रामपुर में, बीजेपी ने घनश्याम लोधी को मैदान में उतारा है, जिन्होंने 2022 के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के असीम राजा को हराया था, जब एक आपराधिक मुद्दे में गुनेहगार ठहराए गए समाजवादी पार्टी नेता आजम खान की अयोग्यता के बाद सीट खाली हो गई थी. काँग्रेस के साथ गठबंधन करने वाली समाजवादी पार्टी ने अभी तक रामपुर के लिए अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन आजम खान फैक्टर एक किरदार निभा सकता है, भले ही उनका पूरा परिवार इस बार चुनाव से गायब है.

भाजपा सहारनपुर पर दोबारा कब्ज़ा करने की प्रयास कर रही है जहाँ 2019 में बीएसपी के हाजी फजलुर रहमान ने उसके उम्मीदवार राघव लखन पाल को 24 हजार वोटों से हराया था.

मुरादाबाद में 2019 में समाजवादी पार्टी के एस.टी. हसन ने जीत हासिल की थी. इस सीट पर इस बार भी बीजेपी आशा लगाये है. हालाँकि, बीजेपी और सपा-कांग्रेस गठबंधन ने अभी तक इन दोनों सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित नहीं किए हैं.

कैराना में भी मुकाबला दिलचस्प हो सकता है.यह सीट 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले हिंदू परिवारों के पलायन की खबरों के बीच सुर्खियों में आई थी. बीजेपी ने मौजूदा सांसद प्रदीप चौधरी, जो कि एक गुर्जर हैं, को समाजवादी पार्टी के कैराना विधायक नाहिद हसन की बहन इकरा हसन के विरुद्ध फिर मैदान में उतारा है. लंदन यूनिवर्सिटी के विद्यालय ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज से तरराष्ट्रीय कानून में स्नातकोत्तर इकरा ने 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान नाहिद के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया था.

संयोग से, कैराना पर खींचतान के कारण ही रालोद ने समाजवादी पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया था क्योंकि अखिलेश यादव इस सीट से इकरा को चुनाव लड़ाना चाहते थे. बीएसपी ने अभी तक किसी उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं किया है, हालांकि ऐसी अटकलें हैं कि समाजवादी पार्टी के मुसलमान वोटों को काटने के लिए मायावती किसी मुसलमान को चुन सकती हैं.

मुजफ्फरनगर में, बीजेपी अपने मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, पर भरोसा कर रही है, जिन्होंने 2019 में तत्कालीन रालोद प्रमुख अजीत सिंह को 6,500 वोटों के हल्की अंतर से हराया था. वह जाट समुदाय से हैं. उनका मुकाबला इसी समुदाय के समाजवादी पार्टी के हरेंद्र मलिक से है. बीएसपी ने दारा सिंह प्रजापति को मैदान में उतारकर ओबीसी कार्ड खेला है.

नगीना की आरक्षित सीट 2019 में बीएसपी के गिरीश चंद्र ने बीजेपी के यशवंत सिंह को हराकर जीती थी, और अब उम्मीदवारों में परिवर्तन देखने को मिलेगा. बीजेपी ने यशवंत सिंह की स्थान जाटव विधायक ओम कुमार को चुना है. उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के मनोज कुमार से है. बीएसपी ने अभी तक अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है. ऐसी अटकलें हैं कि दलित नेता और आज़ाद समाज पार्टी के प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद भी नगीना से चुनावी मैदान में उतरेंगे और यदि वह ऐसा करते हैं, तो मुकाबला और दिलचस्प हो जाएगा.

पहले चरण में फोकस, पीलीभीत सीट पर भी है क्योंकि बीजेपी ने अभी तक अपने मौजूदा सांसद वरुण गाँधी को मैदान में उतारने का निर्णय नहीं किया है, जो 2021 में कृषि कानूनों के विरुद्ध किसानों के विरोध के बाद से अपनी ही पार्टी की खुलेआम निंदा कर रहे हैं. सपा पहले ही कह चुकी है कि यदि वरुण गाँधी बीजेपी के साथ नहीं जाते हैं तो वह पीलीभीत से उन्हें मैदान में उतारने पर विचार कर सकती है.

भाजपा द्वारा 2021 में माँ-बेटे को राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति से बाहर करने के बाद, सुल्तानपुर से सांसद उनकी माँ मेनका गाँधी भी पार्टी में कम कम एक्टिव दिख रही हैं. बीजेपी वरुण गाँधी को अपने उम्मीदवार के रूप में नामित करती है या नहीं, इसमें कोई शक नहीं कि पीलीभीत का मुकाबला दिलचस्प होने वाला है.

 

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button