Lok Sabha Election 2024: क्षत्रिय समाज की नाराजगी दूर करने में जुटी BJP
Lok Sabha Election 2024: ब्रज क्षेत्र की 10 सीटों पर तीसरे चरण में चुनाव होना है. यहां नामांकन में अब महज चार दिन बाकी हैं. मगर बीजेपी ने अभी फिरोजाबाद सीट पर अपने प्रत्याशी का घोषणा नहीं किया है. पार्टी सूत्रों की मानें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर क्षत्रिय समाज के तीखे तेवरों के चलते मैनपुरी के बाद अब फिरोजाबाद सीट पर भी किसी ठाकुर चेहरे को उतारे जाने की प्रबल आसार है.
2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो समाजवादी पार्टी के अक्षय यादव और अपनी अलग पार्टी से उतरे शिवपाल यादव की लड़ाई में बीजेपी ने बाजी मार ली थी. मगर बीजेपी के सांसद चंद्रसेन जादौन पार्टी के सर्वे में 2024 की लड़ाई के लिए कमजोर लड़ाके साबित हुए हैं. ऐसे में पार्टी ने इस सीट पर परिवर्तन का निर्णय किया. वहीं समाजवादी पार्टी ने फिर अक्षय यादव को ही उतारा है.
टिकट के लिए इन नामों की चर्चा
टिकट के दावेदारों में समाजवादी पार्टी से बीजेपी में आने वाले हरिओम यादव, फिरोजाबाद के विधायक मनीष असीजा सहित कई अन्य दावेदार शामिल थे. मगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई सीटों पर इन दिनों क्षत्रिय समाज बागी तेवर दिखा रहा है. उनकी कम्पलेन है कि उन्हें कम सीटें दी गई हैं. विरोधी दल भी इस मौके का लाभ उठाना चाहते हैं. बीएसपी ने गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर सीट से ठाकुर प्रत्याशी उतारा है. ऐसे में बीजेपी विपक्षी दलों को कोई फायदा लेने देना नहीं चाहती. मैनपुरी के बाद अब पार्टी फिरोजाबाद सीट से भी ठाकुर प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है. संभावित प्रत्याशियों में बीजेपी में शामिल होने वाले पूर्व वायुसेना अध्यक्ष आरकेएस भदौरिया और राजा भदावर अरिदमन सिंह शामिल हैं. इसके अतिरिक्त आगरा के पूर्व विधायक डा। राजेंद्र सिंह, फिरोजाबाद के पहले सांसद ब्रजराज सिंह के पुत्र विश्वजीत सिंह, अवागढ़ एस्टेट परिवार का नाम चर्चा में हैं.
झेलनी पड़ी फिरोजाबाद की नाराजगी
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इस सीट से स्वयं मुलायम सिंह और अखिलेश यादव भी चुनाव जीते हैं. हालांकि जिताने के बाद बार-बार सीट छोड़ने की नाराजगी भी मुलायम परिवार झेल चुका है. 2009 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज और फिरोजाबाद दोनों सीटों से जीतने के बाद अखिलेश यादव ने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी थी.
राजबब्बर के हाथों डिंपल को मिली थी करारी हार
उपचुनाव में पहली बार सैफई परिवार की बहू डिंपल यादव को उतारा गया था. मगर फिरोजाबाद वालों का शिकोहाबाद और जसराना के तत्कालीन सपाई क्षत्रपों के प्रति गुस्सा और अखिलेश के सीट छोड़ने की नाराजगी भारी पड़ी थी. डिंपल को राजबब्बर के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी थी.