उत्तराखण्ड

काफी प्राचीन है गौरा देवी का यह मंदिर, जानिए मान्यता

उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र को ईश्वर शिव और माता पार्वती का निवास जगह बोला जाता है यहां पहाड़ की चोटी पर शिव मंदिर देखने को मिल जाता है वहीं कई ऐसे मंदिर है जो देवी पार्वती को समर्पित है, देवी पार्वती का ऐसा ही एक सिद्वपीठ उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल से महज 18 किमी की दूरी पर स्थित देवलगढ़ में है जिसे गौरा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है मंदिर अपनी वास्तु शैली और शिल्पकला के लिए जाना जाता है सिद्वपीठ गौरा देवी मंदिर का इतिहास काफी पुराना कहा जाता है

7वीं सदी में निर्मित गौरा देवी मंदिर के रख-रखाव का जिम्मा पुरातत्व और संस्कृति विभाग के पास है साथ ही मंदिर परिसर में छोटे-छोटे अन्य मंदिरों के समूह भी उपस्थित हैं वहीं क्षेत्र रक्षक भैरव बाबा का भी एक मंदिर यहां स्थापित है

प्राचीन सिद्धपीठ है गौरा देवी

पौड़ी गढ़वाल में माता रानी के कई सिद्वपीठ उपस्थित हैं जिनमें से दो सिद्वपीठ देवलगढ़ में ही उपस्थित हैं यहां सिद्वपीठ गौरा देवी मंदिर के साथ मॉ राजराजेश्वरी का जागृत शक्तिपीठ भी उपस्थित है गौरा देवी मंदिर की गिनती उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों में की जाती है बद्रीनाथ, केदारनाथ की तरह गौरा देवी मंदिर भी प्राचीन और ऐतिहासिक है मान्यता है कि मंदिर का निर्माण स्वयं कुबेर ने किया

धार्मिक यात्रा का आयोजन

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक श्रीनगर गढ़वाल के सुमाड़ी गांव को मां गौरा का मायका कहा गया है और देवलगढ़ को ससुराल यही कारण है कि हर वर्ष एक विशेष उत्सव के दौरान मां की विदाई के लिए सुमाड़ी और इर्द-गिर्द के गांव के ग्रामीण एक धार्मिक यात्रा का आयोजन करते हैं यह यात्रा देवलगढ़ स्थित गौरा देवी मंदिर तक आती है इस दौरान मंदिर मे प्रवेश करने के साथ माता रानी यहां मंदिर प्रांगण में लगे विशाल झूले में झूला झूलती है ओर भक्तों को आर्शीवाद देती है दरअसल बैसाखी के समय गौरा देवी 4 माह तक मायके रहने के बाद ससुराल आती है इस दौरान क्षेत्र में भक्तिमय माहौल रहता है

नाथ संप्रदाय की थी मौजूदगी

काल भैरव के पुजारी मंगल सिंह बताते हैं कि गौरा देवी मंदिर के बाई ओर काल भैरव का मंदिर उपस्थित है साथ ही यहां पर नाथ संप्रदाय के बाबा सत्यनाथ की समाधि भी उपस्थित है जिससे यह साफ होता है कि प्राचीन समय में पहाड़ों पर भी नाथ संप्रदाय की मौजूदगी थी बताते हैं कि राजा अजयपाल को देवलगढ़ राजधानी बनाने के लिए सत्यनाथ ने ही प्रेरीत किया था

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