उत्तराखण्ड

जाको राखै साइंया मार सके न कोय, पहाड़ को ‘चीर’ कर लिखी गई धैर्य-साहस की अद्भुत कहानी

आखिरकार उत्तरकाशी टनल (Uttarkashi Tunnel Rescue) में 17 दिन तक चला अनेकों कठिन वाला रेस्क्यू मिशन (Tunnel Rescue Mission) पूरी तरह से सफल रहा बीते मंगलवार को  सिलक्यारा टनल (Silkyara Tunnel) में फंसे सभी 41 मजदूर सुरंग से सुरक्षित बाहर निकाल लिए गए

इस सफलता के पीछे रेस्क्यू टीम के लगातार इतने दिनों तक बिना थके, बिना रुके किये अथक परिश्रम के चलते यह मिशन परवान चढ़ा बाधाएं यो कई आईं-मुश्किलों ने भी तो बहुत पेरशान किया मगर जीवट रेस्क्यू टीम ने हौसला नहीं छोड़ा इसमें संयम के साथ अन्दर फंसे श्रमिकों ने भी पूरा साथ दिया और जीवन एक बार फिर मृत्यु और मुश्किलों से अपनी जंग जीत गई

इन सबके बीच उन अंदर फंसे श्रमिकों के परिवारवालों का संयम और उत्तराखंड और केंद्र गवर्नमेंट पर उनका विश्वास भी तो जरुरी था, जिन्होंने ऐसे जबरदस्त तनाव वाले मौके पर अपना संयम नही खोया और हमेशा इसी बात पर विश्वास रखा कि उनके लोग जरुर बाहर आएंगे आइये जानते हैं ऐसे ही कुछ लोगों का अनुभव उनकी जुबानी

उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग से बचाए गए मजदूरों में से एक मजदूर सोनू की मां कहती हैं, “मैं बहुत खुश हूं मैं गवर्नमेंट और सभी बचाव दल के सदस्यों को धन्यवाद देती हूंमेरे बेटे ने बोला है कि वह दो दिन में वापस लौट आएगा” वहीँ टनल से बचाए गए मजदूर राम सुंदर की मां धनपति ने कहा, “हम बहुत खुश हैं कल शाम को हमने दीपावली मनाई, पूरे गांव ने कल खुशी से दीपावली मनाई

इसके साथ ही बचाए गए मजदूर राम सुंदर की पत्नी शीला ने भावविभोर होते हुए कहा, “हम बहुत खुश हैं, कल हमने उनसे टेलीफोन पर बात की थी हम केंद्र गवर्नमेंट और बचाव कर्मियों का धन्यवाद करते हैं हमारे पूरे गांव में बहुत खुशी है” बचाए गए मजदूर संतोष कुमार की मां ने खुश होते हुए कहा, “हमारी संतोष से टेलीफोन पर बात हुई है, अभी वह हॉस्पिटल में है आज हमने दीपावली मनाई है हम केंद्र गवर्नमेंट और बचाव कर्मियों का धन्यवाद करते हैं

वहीं पश्चिम बंगाल के कूच बिहार में भी उत्तरकाशी के सिल्कयारा सुरंग से बचाए गए मजदूरों में से एक मजदूर के परिवार ने उनके सफलतापूर्वक बचाए जाने की सूचना मिलने के बाद उत्सव मनाया यही असम के कोकराझार में भी हुआ

इस बात पर कूच बिहार मजदूर माणिक तालुकदार के बेटे ने कहा, “हमें बहुत खुशी है कि वे सुरंग से बाहर निकल गए17 दिन हमें बहुत ही चिंता थी अभी वे(माणिक तालुकदार) ठीक हैंइधर लखीमपुर खीरी से बचाए गए मजदूर मंजीत की मां ने कहा, “हम बहुत खुश हैं, हमने आज दीपावली मनाई है हमारा एक ही बेटा है 17 दिन कैसे बीते हैं यह केवल ईश्वर और हम ही जानते हैं 17 दिन हमारे लिए अंधेरा था, आज उजाला हुआ है मैं केंद्र और राज्य गवर्नमेंट का धन्यवाद करती हूं”देखा जाए तो उत्तरकाशी की टनल में फंसे श्रमिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनका संयम बनाए रखने की ही थी, लेकिन 17 दिन तक वह लगातार इस मुश्किल परीक्षा में पास हुए सुरंग से बाहर निकलते समय सभी 41 श्रमिकों के खिलखिलाते चेहरे उस जीत के गवाह थे जो वे जैसे हर पल मृत्यु से दो-दो हाथ लड़कर जीते थे

सिर्फ इन बचाए गए मजदूर ही नहीं सलाम तो उन रक्षकों को भी किया जाना चाहिए तो इन मुश्किल और दुरूह 17 दिनों तक बिना रुके, बिना थके फंसे श्रमिकों को बचाने के लिए जुटे रहे उनके सामने मुश्किलों से भरा और थका देने वाला पहाड़ था, फिर पल-पल पर अनेकों बाधाएं भी तो थीं, लेकिन न डिगे न हौसला छोड़ा और सबने मिलकर मुश्किलों का पहाड़ चीर सभी 41 जिंदगियां बचा लीं

वो कहते हैं न कि, ‘जीत-हार’ दरअसल आपकी सोच पर ही तो निर्भर होती है यदि मान लो तो ‘हार’ है, लेकिन साहस, धैर्य और संयम के साथ ठान लो तो जीत निश्चित है यहां 17 दिनों तक चली यह जंग और कुछ नहीं बस साहस, धैर्य और संयम के मजबूत धागों के ताने-बाने की ही तो कहानी है,जो पहाड़ का सीना को चीर कर लिखी गई है

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