बिहार

नवादा ने भाजपा से गिरिराज सिंह को नहीं बनाया कभी सांसद, फिर लोजपा के चंदन सिंह को…

 

लोक जनशक्ति पार्टी से लेकर बीजेपी ने नवादा सीट पर अपना प्रत्याशी दिया, लेकिन मामला वहीं का वहीं है. नवादा ने बीजेपी से गिरिराज सिंह को कभी सांसद बनाया, फिर लोजपा के चंदन सिंह को. दोनों ही बाहरी थे. इस बार विवेक सिंह के साथ भी यही बात प्रचारित हो रही है. लेकिन, नवादा की कहानी इतनी भी सहज नहीं है. नवादा में खेल बहुत रोचक हो गया है. महागठबंधन अपने संकटों में घिरा है और निवारण नहीं निकाल सका है. दूसरी तरफ, बीजेपी सामने खड़े राष्ट्रीय जनता दल प्रत्याशी की जाति के वोटरों को साथ लाने में अबतक विफल नजर आ रही है. ऐसे ही कई कारण है, जिससे बहुत दूसरे तरह का रोमांचक मुकाबला बनता दिख रहा है नवादा में.

चंदन सिंह फैक्टर कितने बड़े?

जैसे गिरिराज सिंह आए-गए, उसी तरह चंदन सिंह के बारे में विचार है. यही कारण है कि लोगों की जुबान पर उनके रहने या नहीं रहने की कोई बात नहीं होती सुनाई देती है. हां, बीजेपी प्रत्याशी को जगह-जगह यह जरूर बताना पड़ता है कि वह क्यों बाहरी नहीं हैं और पिछले सांसद की किन खामियों का निवारण वह कैसे निकालेंगे.

राजद के आधार वोट में सेंध

 

राजद के विनोद यादव यहां दोनों प्रत्याशियों के मुकाबले कम चर्चा में नहीं हैं. यह चुनाव उनके जीने-मरने का प्रश्न बन गया है. उनके धुर विरोधी खेमे के श्रवण कुमार कुशवाहा को राजद ने टिकट दे दिया. वह पांच-सात करोड़ में राजद का टिकट बिकने की बात भी कह चुके हैं. महागठबंधन भले कुछ दावा करे, लेकिन विनोद यादव ने राजद के वोट बैंक का ठीकठाक हिस्सा प्रभावित किया है.

भूमिहार स्वयं हो गए विकल्पहीन

यह भूमिहार बाहुल लोकसभा सीट है. इसलिए, एनडीए में अमूमन इसी जाति पर दांव खेला जाता है. इस बार विवेक ठाकुर भी इसी समूह से आए हैं. बीजेपी से भूमिहारों की नाराजगी का असर इस कारण से तो यहां निष्प्रभावी दिखता ही है, एक और बात यह भी है कि राजद के प्रत्याशी श्रवण कुमार कुशवाहा को इस जाति के लोग पसंद नहीं करते हैं. मतलब, बीजेपी के लिए यह सोने पर सुहागा वाली स्थिति है. वैसे, भोजपुरी सिंग गुंजन सिंह ने निर्दलीय उतरकर बीजेपी के इस वोट बैंक को हानि पहुंचाने की भरपूर प्रयास की है.

भाजपा के लिए सब बल्ले-बल्ले नहीं

भाजपा के लिए सबकुछ अच्छा है, यह बोलना भी गलत है. यहां बीजेपी कोटे से राज्य गवर्नमेंट के उप सीएम और बिहार प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी की प्रतिष्ठा सीधे दांव पर है. बोला जा रहा है कि सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा के बावजूद श्रवण कुमार को लेकर कुशवाहा जाति के वोटर गोलबंदी की स्थिति में हैं.

विधायकों के लिहाज से गणित भी समझें

 

नवादा लोकसभा सीट में इस जिले के पांच विधानसभा क्षेत्र हैं और शेखपुरा जिले का बरबीघा विधानसभा क्षेत्र भी है. छह में से चार विधानसभा सीटें महागठबंधन के पास हैं, जबकि दो एनडीए के पास. इनमें राजद नेता विनोद यादव की भाभी विभा देवी और पूर्व मंत्री राजवल्लभ यादव के समर्थक विधायक प्रकाश वीर का लाभ महागठबंधन को मिलने की आशा नहीं है. विनोद यादव और राजवल्लभ फैक्टर को मैनेज करना आखिरी समय में राजद के लिए कितना संभव होता है, यही देखने वाली बात है. 

जातीय गणित में कहां-कहां भटक रही बात

 

जाति के हिसाब से सर्वाधिक कारगर भूमिहार वोट जहां छिटपुट बिखराव से इतर एकतरफा नजर आ रहा है, वहीं इसके बाद कारगर यादवों में अधिक टूट नजर आ रही है. महागठबंधन के लिए राहत की सबसे बड़ी बात मुसलमान जनसंख्या है, जो तीसरे नंबर पर मानी जाती है. महादलितों में पासी समुदाय राजद तो इससे टकराने वाली राजवंशी समाज बीजेपी के साथ जाने की बात कह रहा है. रही बात पिछड़ों की तो इसे समेटने की प्रयास दोनों तरफ से हो रही है.

पिछले चुनाव का गणित भी देखें यहां

 

पिछले लोकसभा चुनाव में यहां राष्ट्रीय जनता दल ने विभा देवी को प्रत्याशी बनाया था और दावा किया था कि वह जीत हासिल करेंगी, लेकिन तब लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी चंदन सिंह ने 2014 के मुकाबले अधिक बड़ अंतर से जीत हासिल की. बाहुबली सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह ने पहली बार राजनीति में कदम रखा और यह जीत दर्ज की. चंदन सिंह को यहां 4.95 लाख से अधिक वोट आए, जबकि राजद की विभा देवी 3.47 लाख वोट ही हासिल कर सकीं. यहां करीब 35 हजार लोगों ने NOTA दबाया, फिर भी यहां एनडीए को 2014 के मुकाबले अधिक अंतर से जीत मिली. तब यहां गिरिराज सिंह ने राजद के पूर्व मंत्री राजवल्लभ यादव को हराया था. देखने वाली बात यह है कि इस बार राजवल्लभ के समर्थकों ने राजद के मौजूदा प्रत्याशी के विरुद्ध स्टैंड ले रखा है.

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