बिहार

पूर्णिया में चुनावी मिजाज! अपनी जीत से ज्यादा दूसरे की हार के लिए जोर-आजमाइश

लोकसभा चुनाव में बिहार की पूर्णिया सीट न केवल राज्य की सबसे हॉट सीट बन चुकी है, बल्कि दिल्ली तक की निगाहें भी पूर्णिया पर टिकी हैं. पीएम नरेंद्र मोदी, लालू यादव, तेजस्वी यादव, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और पप्पू यादव सभी नेताओं और सियासी दलों की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी पूर्णिया सीट पर राजनीतिक सरगर्मी तेज है.

बिहार की इस VIP सीट ने राजनीति की महत्वाकांक्षाओं, रिश्ते, अपमान और बदला लेने के राजनीतिक दांव-पेंच को सार्वजनिक कर दिया है. आलम ये हो चला है कि अब अपनी जीत से अधिक दूसरे की हार के लिए जोर-आजमाइश हो रही है. पूर्णिया की लड़ाई में एनडीए के संतोष कुशवाहा, महागठबंधन की बीमा भारती और निर्दलीय पप्पू यादव ने एड़ी-चोटी का बल लगाया हुआ है.

सबके अपने दावे हैं, सबके अपने फसाने. लेकिन, नेताओं के दावों से इतर आखिर पूर्णिया की जमीन पर क्या माहौल है, लोगों के क्या मामले हैं, कौन किस पर भारी पड़ रहा, इन अनेक प्रश्नों के उत्तर आपको मीडिया की इस ग्राउंड रिपोर्ट में मिलेंगे.  

चुनाव के ऐनवक्त पर जदयू छोड़कर आईं बीमा भारती को आरजेडी ने टिकट दिया है. तेजस्वी दो दिन से पूर्णिया में कैंप कर रहे हैं.

पूर्णिया में चुनावी मिजाज

‘आप लोग किसी धोखे में नहीं आइए. यह चुनाव किसी एक आदमी का चुनाव नहीं है. यह एनडीए और इण्डिया गठबंधन की लड़ाई है. या तो इण्डिया को चुनिए, बीमा भारती को वोट करिए और यदि इण्डिया को नहीं चुन सकते, बीमा भारती को वोट नहीं दे सकते तो फिर एनडीए को चुन लीजिए. साफ बात है.

तेजस्वी यादव का ये बयान सुनकर शायद आपको पहली बार में विश्वास न हो, लेकिन पूर्णिया से महागठबंधन की प्रत्याशी बीमा भारती के लिए चुनावी प्रचार में तेजस्वी वाकई ये कह रहे हैं कि या तो बीमा भारती को वोट दीजिए, नहीं तो संतोष कुशवाहा को वोट दे दीजिए. यानी तेजस्वी एनडीए प्रत्याशी के लिए भी वोट मांग रहे है.

जाहिर है, तेजस्वी यादव किसी भी सूरत में पप्पू यादव को पूर्णिया से जीत दर्ज नहीं करने देना चाहते. दिलचस्प ये है कि तेजस्वी मंच से जब ये बात कह रहे थे, सभा में उपस्थित कार्यकर्ता पप्पू यादव जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे. तेजस्वी के एनडीए को वोट देने की बात से वहां उपस्थित लोग नाराज दिखे.

पप्पू यादव अपने रोड शो में क्षेत्रीय लोगों से ही खाना मांग लेते हैं. वह देसी अंदाजा में दही चूड़ा खाते हैं.

आपको ये जानकर आश्चर्य हो सकती है कि तेजस्वी यादव ने पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव प्रचार किया, लेकिन मात्र एक सीट पर ही कैंप किया. वो सीट थी मधेपुरा, जहां से पप्पू यादव चुनाव लड़ रहे थे. लोकसभा चुनाव में भी तेजस्वी पहली बार किसी प्रत्याशी के नामांकन में गए, वो थीं बीमा भारती.

लोकसभा चुनाव में पहली बार तेजस्वी यादव ने किसी लोकसभा सीट पर स्वयं 2 दिन तक कैंप किया. पूर्णिया में महागठबंधन के दर्जनों नेता पहले से ही डेरा जमाए हुए हैं. तेजस्वी यादव का पूर्णिया में कई रैलियों, बैठकों के अतिरिक्त कैंप करना और फिर एक बड़ा रोड शो करना बताता है कि ये सीट तेजस्वी के लिए नाक की लड़ाई बन चुकी है, तेजस्वी ने जिद ठान ली है. जिद अपनी जीत से अधिक पप्पू यादव के हार की है.

उधर ‘प्रणाम पूर्णिया’ कैम्पेन के जरिए पूर्णिया में वापसी की दस्तक देने वाले पप्पू यादव पहले ही लालू-तेजस्वी पर उनकी सियासी मर्डर करने की प्रयास का इल्जाम लगा चुके हैं. एक वर्ष से पूर्णिया में चुनाव की तैयारी कर रहे पप्पू यादव का दावा है कि कांग्रेस पार्टी में विलय से पहले जब वो लालू-तेजस्वी से मिलने पहुंचे थे, तो उन्हें फिर से आरजेडी जॉइन कर मधेपुरा से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया गया था, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया.

एनडीए को आशा है कि विपक्ष की इस आपसी लड़ाई का लाभ उन्हें चुनाव में मिलेगा और क्षेत्रीय जेडीयू सांसद संतोष कुशवाहा के विरुद्ध एंटी इंकम्बेंसी होने के बावजूद वो तीसरी बार सांसद चुने जाएंगे. संतोष कुशवाहा का बोलना है कि पूरे बिहार में एनडीए की एकतरफा लहर चल रही है. पूर्णिया लोकसभा में पिछली बार के मुकाबले एनडीए बहुत बड़े अंतर से चुनाव जीतेगी, क्योंकि जनता ने विकास के लिए वोट देने का मन बना लिया है.

हालांकि, संतोष कुशवाहा अपने प्रचार के दौरान खीजे हुए नजर आते हैं. एक वायरल वीडियो में वो मंच से कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कथित तौर पर पप्पू यादव के सीने पर चढ़कर हड्डी तोड़ने की बात करते हुए पाए गए.

दैनिक मीडिया के प्रश्न पर संतोष कुशवाहा कहते हैं, ‘कोई प्रत्याशी 41 मुकदमा का अभियुक्त है, कोई अन्य केसों के अभियुुक्त हैं. छाती तोड़ने का विषय मेरा ये है कि कानून का राज है, जो गड़बड़ करेगा, कानून के सहारे उसका उपचार जरूर किया जाएगा.

क्षेत्र में समय न देने और प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने के प्रश्नों पर संतोष कुशवाहा बोले- ‘जब संसद चलता है तो मैं संसद में रहता हूं, नहीं तो पूर्ण रूप से क्षेत्र में ही रहता हूं. राष्ट्रवाद है, नरेंद्र मोदी को तीसरी बार पीएम बनाना है, नीतीश कुमार के हाथ को मजबूत करना है, विकसित पूर्णिया बनाना है.

एनडीए प्रत्याशी संतोष कुशवाहा ने प्रचार के लिए एसयूवी को स्पेशल लुक दिया है.

पूर्णिया का चुनावी समीकरण

दैनिक मीडिया के पूर्णिया ब्यूरो चीफ मनोहर कुमार के मुताबिक, पूर्णिया सीमांचल की हॉट सीट है, यहां से जो भी चुनावी बयार बहती है, उसका असर 4-5 जिलों पर पड़ता है. एनडीए और महागठबंधन के बीच आमने-सामने के मुकाबले का ही समीकरण था. लेकिन, पप्पू यादव को टिकट न मिलने की वजह से उनके कार्यकर्ताओं में काफी नाराजगी है. खासतौर पर सीमांचल में काफी वजूद रखने वाले समुदाय (मुस्लिम) जो RJD का MY समीकरण है, उस वोट बैंक में पप्पू यादव अधिक सेंधमारी करते हुए देखे जा रहे हैं.

इस क्षेत्र में ध्रुवीकरण की राजनीति होती रही है, उसे लेकर NDA के लोग राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का मामला उठाते रहे हैं. पीएम की चुनावी सभा के बाद समीकरण कुछ बदलने के आसार हैं. बीजेपी के कोर वोट बैंक में बड़ा उत्साह देखा जा रहा है. अभी यहां त्रिकोणीय मुकाबला है. NDA और पप्पू यादव में काफी संघर्ष देखा जा रहा है और बीमा भारती अपना जगह बनाने की प्रयास में हैं.

RJD के बड़े नेता अपने छिटके हुए कोर वोट बैंक को अपने पक्ष में करने में जुटे हुए हैं. पप्पू यादव अभी भी मान रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी उनके साथ है. कांग्रेस पार्टी ने भी उन पर ऐसा कोई एक्शन नहीं लिया है.

इसका मतलब है कि उनको कांग्रेस पार्टी का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन है. महागठबंधन की तरफ से RJD की बीमा भारती उम्मीदवार हैं, वो रुपौली से JDU की 5 बार विधायक रही हैं. बीमा भारती अत्यंत पिछड़ी जाति से आती हैं, तो RJD ने अत्यंत पिछड़ों को साधने के लिए उनको कैंडिडेट बनाया है.

पूर्णिया के क्षेत्रीय वरिष्ठ पत्रकार पंकज नायक कहते हैं, ‘पूर्णिया त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गया है, पप्पू यादव के निर्दलीय लड़ने के कारण ये सीट बहुत दिलचस्प हो गई है. पिछले 20 वर्षों से कहीं न कहीं ये सीट एनडीए के पास है, 10 वर्ष पप्पू सिंह और 10 वर्ष संतोष कुशवाहा के.

2014 में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी पप्पू सिंह के प्रचार के लिए यहां आए थे, एंटी इंकम्बेंसी का ये आलम था कि मोदी लहर के बावजूद पप्पू सिंह को 3 लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा था और जेडीयू से संतोष कुशवाहा जीते थे.

इस बार फिर ये सीट जेडीयू के खाते में गई और संतोष कुशवाहा उम्मीदवार हैं, लेकिन लोगों में इस चेहरे के प्रति उपस्थित एंटी इंकम्बेंसी का फायदा अभी कहीं न कहीं विरोधी उम्मीदवारों को मिल रहा है. महागठबंधन ने जो टिकट बांटा है, खास तौर पर आरजेडी ने, उसे लेकर विश्लेषक ये समझने में लगे हैं कि आखिर इतने कमजोर लोगों को टिकट क्यों दिया गया है.

बीमा भारती जिस समाज से आती हैं, उनका यहां पर बहुत वोट बैंक नहीं है. उसके बावजूद उनको यहां से टिकट देना. जो पप्पू यादव टिकट मांगने के लिए चलकर गए थे, उनको कहीं न कहीं आश्वासन मिला, जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी से कंफर्म किया. जब उनको फाइनली टिकट नहीं दिया गया, तब उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा. अब मुकाबला एनडीए और पप्पू यादव के बीच रह गया है.

“पूर्णिया लोकसभा में 70 प्रतिशत हिंदू हैं और 30 प्रतिशत मुसलमान हैं. यहां तकरीबन साढ़े 5 लाख मुसलमान हैं, डेढ़ लाख यादव हैं. यहां कुल 19 लाख के इर्द-गिर्द मतदाता हैं. पिछली बार 65 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस बार लग रहा कि मौसम थोड़ा गर्म रहेगा, तो इसमें थोड़ा-बहुत ऊपर-नीचे होगा. पचपनिया (55 छोटी जातियों का समूह) वोटर 40 प्रतिशत के इर्द-गिर्द हैं और वो दोनों तरफ हैं. एनडीए की तरफ इसलिए है, क्योंकि उनको अनाज मिल रहा है.,

-पंकज नायक के मुताबिक, दूसरी तरफ पप्पू यादव लोगों से कनेक्ट कर रहे हैं, तो इनके पास भी जाएंगे. लेकिन, मुसलमान और यादव आज की तारीख में पप्पू यादव के साथ इंटैक्ट दिख रहे हैं. अपर कास्ट वोटर्स में 70:30 रेशियो है. वैसे पप्पू यादव कांग्रेस पार्टी में गए हैं और आज भी कह रहे हैं कि 26 अप्रैल के बाद कांग्रेस पार्टी का प्रचार करेंगे, तो 60 वर्ष से अधिक उम्र के ब्राह्मण वोटरों को लग रहा है कि यदि ये चुनाव जीत जाएं तो आने वाले समय में पप्पू यादव कांग्रेस पार्टी का बड़ा चेहरा होंगे.

उम्रदराज ब्राह्मणों को इस बार पप्पू यादव में अपना नेता नजर आ रहा है. इसलिए हो सकता है कि 30 प्रतिशत सवर्ण वोटर पप्पू यादव की तरफ शिफ्ट हो जाए.

पंकज नायक ने कहा- ‘जब पप्पू यादव मधेपुरा विधानसभा का चुनाव बुरी तरह से हारे, तो उन्हें लगा कि मधेपुरा में उनके लिए कुछ बचा हुआ नहीं है. इस बीच पटना की बाढ़ उनके लिए मनचाही मुराद जैसी साबित हुई, जिस तरह से उन्होंने काम किया, उसका इम्पैक्ट पूरे बिहार और खासतौर पर पूर्णिया के लोगों पर पड़ा.

पप्पू यादव को कोविड-19 के समय दवाइयां मौजूद कराने से लेकर श्मशान घाटों पर घूमते हुए देखा होगा. जो ग्रामीण परिवेश के लोग हैं, उनको ये बात समझ आ रही है कि ये नेता मुसीबत में खड़ा रहने वाला है. जहां बाकी नेता अपने घर में स्वयं को सुरक्षित किए हुए थे, उस समय पप्पू यादव घूम रहे थे. पिछले 6 महीने में पप्पू यादव ने लोगों के बीच जाकर पर्सनल कनेक्ट किया है, बूथ लेवल पर काम किया. बाकी उम्मीदवारों को फीलगुड हो सकता है, लेकिन ये फीलगुड में एकदम नहीं हैं, ये जमीनी तौर पर मेहनत करते दिखते हैं.

एंटी इंकम्बेंसी नैचुरल है, यदि कोई 10 वर्ष से लगातार हो. आप कुछ भी दिए हों, उसके बावजूद ये रहता ही है. मुसलमान और यादव पिछले 20 वर्ष से स्वयं को हाशिेए पर पा रहे थे, पप्पू यादव के आ जाने के बाद उनको ये लग रहा कि अब हमारा नेता हमारे बीच है.

छोटी-छोटी चीजें होती हैं, ब्लॉक में किसी का काम नहीं हो पा रहा है, पुलिस स्टेशन में कोई काम है, उसके लिए यहां नेताओं की मौजूदगी नहीं थी. बिहार में अफसरशाही है, ऐसे में लोगों को लग रहा है कि पप्पू यादव बड़ा चेहरा हो सकते हैं.

सीनियर जर्नलिस्ट पंकज नायक कहते हैं कि पप्पू यादव का पहले लालू यादव के पास जाना और उसके बाद दिल्ली जाना, ये कहीं न कहीं पप्पू यादव के फेवर में गया है. यादवों में ये चर्चा है कि आखिर यादव समाज से आने वाले एक अच्छे उम्मीदवार पप्पू यादव चलकर जाते हैं और आप उनको टिकट नहीं देते हैं.

उनकी स्थान आप ऐसे उम्मीदवार को टिकट दे रहे हैं, जिनकी अभी यहां से सीट निकालने की ताकत नहीं है. ऐसे में उनको अंदेशा है कि कहीं ये परदे के पीछे से एनडीए को सहायता करने के मूड में तो नहीं हैं? दिल्ली में केजरीवाल काण्ड के बाद लोगों के बीच चर्चा है कि लालू-तेजस्वी 2024 में बैक डोर से एनडीए को सहायता कर रहे हैं, 2025 के लिए इनकी तैयारी है.

पूर्णिया में चुनावी हवा का रुख

लोकसभा चुनाव को लेकर पूर्णिया की जनता के मन में क्या है, ये जानने के लिए हमारी टीम पूर्णिया लोकसभा पहुंची. हमने पूर्णिया सीट के वोटर्स का मिजाज टटोला. पूर्णिया के कस्बा में हमें होटल मजदूर संजय पासवान मिले. संजय को पीएम आवास योजना और निःशुल्क राशन का फायदा मिल रहा है, जिसके कारण वो मोदी को फिर से पीएम बनाना चाहते हैं.

संजय कहते हैं, ‘जो लोकतंत्र मजबूत करे, उसको सत्ता में देखना चाहते हैं. जो हमारे पीएम हैं, हमको वही चाहिए. हमारे कुशवाहा जी जीतेंगे. हम कभी नहीं सोचे थे कि हमारा घर बन जाएगा. पीएम जी का इंदिरा आवास मिला, बहुत अच्छा जीवन जी रहे हैं. फ्री में राशन मिल रहा है और क्या चाहिए. ये बहुत बड़ा मामला है.

वहीं, बगल में मेडिकल स्टोर चलाने वाले दिलीप प्रसाद के अनुसार पूर्णिया में लड़ाई संतोष कुशवाहा और पप्पू यादव के बीच है और वो महागठबंधन उम्मीदवार बीमा भारती के बारे में नहीं जानते.

दिलीप प्रसाद ने कहा- ‘अभी जेडीयू-बीजेपी और पप्पू यादव हैं, दोनों में लड़ाई है, बोलना कठिन है कि क्या होगा. अंतिम समय तक देखना होगा, अभी दोनों का लहर चल रहा है. आगे कौन निकलेगा, ये बोलना कठिन है. बीमा भारती तो कस्बा क्षेत्र में कभी आई भी नहीं है. उनके बारे में उतना नहीं सुने है, प्रचार भी नहीं है उनका. संतोष जी काम ठीक ही किए. पप्पू यादव भी जब सांसद थे, वो भी अच्छा काम किए थे. दोनों इस क्षेत्र के लिए काम किए हैं. महंगाई, बेरोजगारी से आम आदमी त्रस्त है, यही चुनाव के मुख्य मामले हैं.

पूर्णिया सीट पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावी सभा भी हुई, जिसमें उन्होंने एनडीए प्रत्याशी संतोष कुशवाहा के लिए वोट मांगा. ये कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी की रैली के बाद संतोष कुशवाहा के पक्ष में माहौल बनेगा. लेकिन, स्वयं को भाजपा वोटर बताने वाले एनजीओ वर्कर रविनेश पोद्दार का बोलना है कि “ हम चाहते हैं कि मोदी जी पूर्ण बहुमत से पीएम बनें, लेकिन पूर्णिया में परिवर्तन हो. राष्ट्र में भले ही मोदी आ जाएं, मोदी जी 500 सीट ले आएं, लेकिन पूर्णिया में ऐसा सांसद चाहिए जो समाज भलाई के लिए बात करे, युवाओं के लिए बात करे.

पूर्णिया मेडिकल कॉलेज बन चुका है, लेकिन कैसी हालत है, सबको पता है. यहां के नेता को लगता है कि किसी पार्टी का टिकट लेकर आ जाएंगे, विधायक-सांसद बन जाएंगे. लेकिन, इस बार इस ट्रेंड को बदलना है. उनको ये एहसास दिलाना है कि आपको समाज भलाई के लिए बात करनी पड़ेगा, आपको जनता के लिए बात करना पड़ेगा. आप मोदी-योगी के नाम पर कब तक वोट मांगिएगा. आप 10 वर्ष सांसद रहे, अपने काम पर वोट मांगिए.

सोशल वर्कर और बिजनेसमैन शशि कुमार मिठ्ठू के मुताबिक, “बहुत लोगों का बोलना है कि मोदी जी के आने से माहौल उलट गया, लेकिन हम जैसे लोगों की सोच है कि यदि हमें यहां कोई भी परेशानी होगी तो लोकल प्रतिनिधि से ही निवारण मिलेगा न कि मोदी जी के द्वारा. जो अच्छे उम्मीदवार होंगे, हम उन्हीं को वोट देंगे.

पूर्णिया सदर हॉस्पिटल में 18 मार्च से थैलेसीमिया पीड़ित 125-130 बच्चों को ब्लड नहीं मिल पा रहा है. वो परेशानी किसकी है, प्रतिनिधि की है. बीमा भारती की तो वैसे कहीं लहर दिख नहीं रही. पप्पू यादव की लहर इसलिए दिख रही है, क्योंकि उनकी गिनती बिहार के एक अच्छे सोशल वर्कर में होती है. बाढ़ हो या कोरोना, सबमें उनका सहयोग देखा गया है. उसको लेकर भी हम उनको सपोर्ट कर रहे हैं. सांसद से कोई नाराजगी नहीं है, लोगों का जेडीयू से भरोसा टूट गया है. नीतीश कुमार को पलटूराम चाचा भी कहा जाता है. बहुत सारे लोगों की सोच है कि हर बार गवर्नमेंट पलटी मारती है तो इस बार जनता क्यों नहीं पलटी मार सकती है.

कम्युनिटी किचन चलाने वाले कुश कुमार झा कहते हैं, ‘लोग एक परिवर्तन की आशा कर रहे हैं और सभी लोग एकजुट होकर वोट करने की सोच रहे हैं. लोग अब जाति और पार्टी पॉलिटिक्स पर वोट नहीं करते. ये देखते हैं कि ऐसा कौन सा प्रत्याशी है जो हमारे लिए उपयोगी है. पूर्णिया में ऐसा कोई बंदा नहीं होगा, जिसके दुख में पप्पू यादव उपस्थित नहीं रहते होंगे. जो समाज में रहकर काम करेगा, हम लोग उसको वोट करेंगे. सीमांचल जैसे पिछड़े और बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में पप्पू यादव सबसे मजबूत आवाज हैं.

पप्पू यादव जब पूर्णिया से सांसद थे, उस समय 24 घंटे बिजली रहती थी. जब वो सांसद थे तो पूर्णिया को अलग पहचान दिलाई. उनके बाद बने सांसदों ने पूर्णिया का उतना विकास नहीं किया. पूरी जनता एकजुट होकर उन पर विश्वास जता रही है. दुनिया में हर गलती की सजा होती है, वो अपनी गलती की सजा भुगत चुके हैं. उनको एहसास हो चुका है, वही सुधारने के लिए वो फिर से पूर्णिया आए हैं. उनकी पुरानी छवि आने वाले समय में समाप्त होने वाली है. हम भाजपा के वोटर हैं, केंद्र में हमें मोदी चाहिए, लेकिन पूर्णिया में पप्पू चाहिए.

पप्पू यादव को पसंद करने वाले मतदाताओं से इतर कुछ वोटर ऐसे भी हैं जो पप्पू यादव की आपराधिक छवि से आज भी उबर नहीं पाए. एनजीओ वर्कर और खेती-बारी करने वाले विकास आदित्य का मानना है, “मुकाबला त्रिकोणीय है और तीनों प्रत्याशी बेहतरीन ढंग से लड़ रहे हैं. लेकिन, जो पिछले 10 वर्ष से पूर्णिया के विकास में सहभागी है, उन्हें बढ़त है. पूर्णिया के हित, बेहतर स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वैसे लोगों को वोट न करें जो पूर्णिया को 20-25 वर्ष पीछे लेकर चले जाएं.

पप्पू यादव और बीमा भारती पर आपराधिक मुद्दे दर्ज हैं, कुख्यात क्रिमिनल वाली क्षवि है. यहां एयरपोर्ट और रेलवे मामले हैं. कृषि आधारित मक्का और मखाना को लेकर जो काम होना था, वो भी बड़ा मामला है. जीएमसीएच, इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि यूनिवर्सिटी बनने जैसे काम हो गए हैं. पटना के बाद पूर्णिया दूसरा ऐसा जिला होगा, जहां बीच शहर से 6 लेन पास हुआ और बनकर तैयार है.

चुनावी मामले क्या हैं

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति के जानकार पंकज नायक कहते हैं, ‘ये बात बड़ी अटपटी सी लगेगी, इस बार चुनावी मामला ये है कि कौन सा नेता जनता के बीच में रहेगा, कौन हमेशा सरलता से मौजूद होगा. बाकी मुद्दों पर चर्चा ही नहीं हो रही है.

ऐसा नहीं है कि पिछले 10 वर्ष में पूर्णिया में काम नहीं हुआ है. पूर्णिया में 6 लेन सड़कें हैं, बड़ा मेडिकल कॉलेज खुला है. आज हम लोग एयरपोर्ट की बात कर रहे हैं, जो तभी हो सकता है जब बाकी इंफ्रास्ट्रक्चर हो. लेकिन, इस चुनाव में मामला ये है कि हमारे बीच कौन सा नेता अधिक समय दे रहा है. सांसद बनने के बाद हो सकता है कि बाकी स्थान व्यस्तता होने की वजह से संतोष कुशवाहा क्षेत्र में कम समय दे पाते हों. इसका लाभ कहीं न कहीं दोनों विरोधी उम्मीदवारों को हो रहा है.

प्रधानमंत्री अपने भाषण में कह रहे थे कि यहां का मक्का इथेनॉल प्लांट में इस्तेमाल होता है, तो ये पता करने का विषय है कि कितने मक्के की वहां खरीद हुई. जिस स्थान पर प्लांट बना है, वहां इर्द-गिर्द के क्षेत्र के लोगों की शिकायतें हैं. कम्पलेन है कि इतना बड़ा प्लांट किसी ऐसे इंडस्ट्रियल एरिया में लगाया जाता, जहां आम लोग परेशान नहीं होते.

वहां जो रॉ मैटेरियल खरीदा जा रहा है, वो लोकल में खरीदा जा रहा या नहीं, किसानों को लाभ मिल रहा है या नहीं, ये जांच का विषय है. यदि गवर्नमेंट ने प्लांट को सब्सिडी दी है तो उससे कितना रोजगार यहां के लोगों को मिला है, ये जांच का विषय है.

प्रधानमंत्री पूर्णिया में 16 अप्रैल को जनसभा की थी. उन्होंने संविधान, भ्रष्टाचार, राम मंदिर और आतंकवाद पर इंडी गठबंधन को घेरा

पंकज नायक के अनुसार आम किसानों को  अभी भी एमएसपी का फायदा नहीं दिख रहा है. किसान आज भी बिचौलियों के हाथ माल बेचने को विवश हैं. अभी मक्का बिक्री का समय है, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यदि किसान को सेम डे पेमेंट चाहिए तो उसको 2-3 प्रतिशत कट बीच में काम करने वाली एक एजेंसी को देना होता है. एजेंसी खरीददार से 15 दिन बाद पूरी पेमेंट लेती है. किसानों को 3 प्रतिशत का हानि हो रहा है, क्योंकि यहां उस तरह की प्रबंध नहीं हुई है. यहां की कृषि मंडी अव्यवस्थित है, 10 वर्षों से हम सुनते ही आ रहे हैं कि बन जाएगा.

दैनिक मीडिया के पूर्णिया ब्यूरो चीफ मनोहर कुमार के मुताबिक, ‘यहां अभी तक बहुत बड़े उद्योग-धंधे नहीं लग पाए हैं, फूड प्रोसेसिंग लगने की बात हो रही थी. बेरोजगारी एक बड़ा मामला तो है ही. लोग पलायन कर रहे हैं, दिल्ली-पंजाब मजदूरी करने जाते हैं. यहां उद्योग-धंधे होते तो यहां के नौजवानों को फायदा मिलता, वो यहीं रहते, रोजगार मिलता. पूर्णिया एयरपोर्ट को लेकर बड़ा सामाजिक आंदोलन हुआ.

प्रधानमंत्री ने बोला है कि जल्द ही यहां से हवाई जहाज उड़ेगा. रेल कनेक्टिविटी का समस्या है, यहां लंबी दूरी की ट्रेन नहीं है, उसको लेकर भी लोग आंदोलन करते रहे हैं. NDA के लोग विकास का मामला उठाते हैं. उनका तर्क है कि उनके चलते यहां यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज आया. दिल्ली की ट्रेन है, जन सेवा और जनहित ट्रेन की आरंभ की गई है. वो अपनी उपलब्धियों को गिना रहे हैं कि उनके कार्यकाल में उनकी मेहनत से हुआ है.

मक्का और मखाना यहां की दो जरूरी फसलें हैं, पूरे बिहार का 20 फीसदी यहां के किसान उगाते हैं. उसकी मार्केटिंग के लिए जो होना चाहिए, जो उद्योग होना चाहिए. जिससे बाहर जाने की बजाय उसकी प्रोसेसिंग की प्रबंध यहीं हो, ये मामला है.

पूर्णिया में मखाने की खेती मशहूर है.

स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार पंकज नायक ने कहा- ‘पूर्णिया बस अड्डे में जो काम 1986 में हुआ था, उसके बाद करीब 40 वर्ष में एक नयी ईंट नहीं जुड़ी है. पूर्णिया एयरपोर्ट यहां की 200 किलोमीटर के एरिया को कवर करेगा. यहां की बड़ी जनसंख्या जो काम करने के लिए खाड़ी राष्ट्रों में जाती है, वो वापस मुम्बई या दिल्ली आते हैं. यदि पूर्णिया एयरपोर्ट हो जाये तो उनका समय और पैसा दोनों बचेगा.

बगल में नेपाल का नजदीकी एयरपोर्ट विराटनगर है, वहां से कोई इंटरनेशनल फ्लाइट नहीं उड़ती. पूर्णिया एयरपोर्ट चालू होगा, तो नेपाल के लोग भी यहां आएंगे. रोजगार भी बढ़ेगा, हर ढंग से शहर बढ़ता है इन चीजों से.

राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण देरी हो रही है. 2015 में इसकी घोषणा हुई थी, करीब 9 वर्ष गुजर गए हैं. 9 वर्ष में ये मुद्दा 9 कदम भी आगे नहीं बढ़ा है. 11 हजार फीट का रनवे कब से बनकर तैयार है. हो सकता है कि इस्तेमाल न होने के चलते वो उखड़ना भी प्रारम्भ हो चुका हो. 2015 के बाद दरभंगा एयरपोर्ट की बात होती है और एक शख्स संजय झा उसको चालू करवा लेते हैं.

निशिकांत दुबे ने देवघर एयरपोर्ट चालू करवा लिया. यदि सियासी इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो काम हो सकता है. यहां सियासी इच्छाशक्ति ही समाप्त है, जिस कारण ये पेंडिंग है. क्षेत्रीय समस्याओं को यहां के क्षेत्रीय नेताओं और ऑफिसरों को समाप्त करना है. यदि किसानों का कोई मुद्दा फंसा हुआ है तो उसके लिए पटना उच्च न्यायालय उठकर पूर्णिया नहीं आएगा. जिस चीज को राहुल कुमार (पूर्व जिलाधिकारी) या यहां के क्षेत्रीय नेता ठीक कर सकते थे, उस काम को भरोसे पर छोड़ दिया गया है कि देखते हैं क्या होता है.

 

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