रणधीर ओझा: रामत्व का विकास समाज और राष्ट्र के लिए है अनुकरणीय एवं कल्याणकारी
बक्सर शहर के नया बाजार स्थित सीताराम शादी महोत्सव आश्रम में महंत राजाराम शरण दास जी महाराज के मंगलानुशासन आयोजित नव दिवसीय राम कथा के आठवें दिन मंगलवार को आचार्य रणधीर ओझा ने प्रताप भानु चरित्र का व्याख्या करते हुए कहा कि श्रीराम का संघर्ष रावण नाम के आदमी से नहीं अपितु रावणत्व से होता है. उन्होंने बोला कि रावण को एक आदमी के रूप में नहीं अपितु विचारधारा के रूप में देखना होगा. रावण प्रत्येक युग में नए-नए नाम रूप में अपना रावणत्व का परिचय देता है.
यह प्रसंग हम सभी को यह सीख देती है की प्रत्येक आदमी में कुछ ना कुछ दुर्गुण है जो आदमी को रावण बना सकता है. जय विजय ईश्वर विष्णु के परिषद थे. अहंकार के कारण दोनों शापित हुए. उन्हें रावण बनना पड़ा. दूसरे कल्प में ईश्वर शंकर के दो गणो को नारद जी के श्राप के कारण राक्षस बनना पड़ा. राक्षस बनने का करण उनके दिल में आसुरी वृत्ति मात्सर्य का जन्म हो जाता है. दूसरों को उत्पीड़ित करना दूसरों के दुख में सुख का अनुभव करना, उपहास करना यही रावणत्व है. जालंधर का चरित्र प्रतिशोध भावना से प्रेरित है. इसी भावना ने उसे रावणत्व की ओर अग्रसर कर दिया. प्रताप भानु लोभ के कारण रावणत्व को प्राप्त करता है. आचार्य श्री ने बोला कि तीन महान सदगुण संपन्न आदमी थे. जय विजय ईश्वर के द्वारपाल थे. रुद्र गुण शिव जी के पार्षद थे. प्रताप भानु धर्मात्मा सत्य केतु का पुत्र स्वयं धर्मात्मा राजा था. ये सभी किसी न किसी दुर्गुण विचार के कारण ही राक्षस बनते हैं. राम कथा इस प्रसंग के द्वारा हमें यह बताता है कि प्रताप भानु अपने आंतरिक शत्रुओं को प्रस्त नहीं कर पाया. एक के बाद एक गुनाह आता गया अंत में उसमें रावणत्व का जन्म हो जाता है. रावण प्रताप भानु के रूप में मूलत मनुष्य था और यही मनुष्य राक्षस हो गया. मनुष्य का राक्षस बन जाना त्रेता युग का ही सत्य नहीं है वरन आज भी जो राक्षस दिखते हैं वह मनुष्य से ही राक्षस बनते हैं. उन्होंने बोला कि इस कथा से हमें अपने दुर्गुणों को पहचान कर उसे ठीक करने का कोशिश करना चाहिए. धर्मपथ के पथिक होकर रामत्व को प्राप्त करना चाहिए. मनुष्य जब धर्मपथ से करप्ट हो जाता है तब उसे रावण बनने से कोई रोक नहीं सकता. राम कथा से हमारे दिल में छुपे हुए रावणत्व का नाश होता है. रामत्व का विकास होता है जो समाज और देश के लिए अनुकरणीय एवं कल्याणकारी है.