बिहार

80 साल की एक बुजुर्ग महिला से 22 साल के युवक ने किया रेप

कानपुर के बिल्हौर में 28 मार्च 2024 को 80 वर्ष की एक बुजुर्ग स्त्री से 22 वर्ष के पुरुष ने बलात्कार किया. पीड़िता संबंध में आरोपी की दादी लगती है.

युवक ने दोस्तों के साथ शराब पी और अपने घर के सामने रहने वाली 80 वर्ष की स्त्री के घर में घुस गया. बुजुर्ग स्त्री गिड़गिड़ाती रही लेकिन आरोपी ने एक नहीं सुनी.

नेशनल अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, बलात्कार के 91% मामलों में बलात्कारी पीड़िता की जान-पहचान वाला ही होता है.

बच्चों के साथ सेक्शुअल एब्यूज के मामलों में भी ज्यादातर पहचान के ही लोग होते हैं.

2022 में हिंदुस्तान में स्त्रियों के विरुद्ध क्राइम के 4,45,256 मुकदमा दर्ज किए गए. हर घंटे 51 एफआईआर हुई. इनमें से अधिकांश अपराध पति या संबंधियों द्वारा किए गए.

अप्रैल के पहले सप्ताह का मंगलवार सेक्शुअल असॉल्ट के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है. इस अवसर पर जानते हैं कि रेप, छेड़खानी, सेक्शुअल रिमार्क, एब्यूज जैसे अपराध बढ़ने के कारण क्या हैं?

स्कूली पढ़ाई न करने वाली स्त्रियों के साथ अत्याचार अधिक

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार जो लड़कियां स्कूली पढ़ाई पूरी नहीं करतीं या पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती हैं उनके साथ मारपीट, गाली-गलौच की घटनाएं अधिक होती हैं.

सर्वे के अनुसार, विद्यालय न जाने वाली 40% लड़कियों के साथ फिजिकल वॉयलेंस देखने को मिली जबकि पढ़ाई पूरी करने वाली 18% लड़कियों के साथ शारीरिक अत्याचार हुई.

रिपोर्ट के अनुसार, 12वीं या इससे अधिक पढ़ाई करने वाली लड़कियों में फिजिकल और सेक्शुअल वॉयलेंस विद्यालय न जाने वालों की तुलना में आधी होती है.

यौन अत्याचार का बड़ा कारण शराब

बिहार में शराबबंदी के 7 वर्ष से अधिक हो चुके हैं. इसके बावजूद वहां यौन अत्याचार का बड़ा कारण लोगों का शराब पीना है.

एनएफएचएस 5 के सर्वे के अनुसार, 83% घरेलू अत्याचार झेलने वाली स्त्रियों के पति शराब पीते हैं. जबकि 34% स्त्रियों का बोलना था कि उनके पति शराब नहीं पीते लेकिन उन्हें घरेलू अत्याचार का सामना करना पड़ता है.

शराब के सेवन करने से फिजिकल और सेक्शुअल वॉयलेंस बढ़ता है. एनएफएचएस की रिपोर्ट के अनुसार, पूरे राष्ट्र में 70% महिलाएं जिनके पति अक्सर शराब पीकर आते हैं उन्हें सेक्शुअल वॉयलेंस का सामना करना पड़ता है.

सेक्शुअल वॉयलेंस करने में पति से 17 गुना अधिक खतरा

नोएडा की रहनेवाली बीना (बदला हुआ नाम) 28 वर्ष की हैं ग्रेजुएट हैं. 20 साल की उम्र में बीना की विवाह 4 वर्ष छोटे लड़के से हुई जो नोएडा में ही फोटो स्टूडियो चलाता है.

शादी के समय बीना के परिवार ने दहेज में काफी कुछ दिया. लेकिन विवाह के बाद ससुराल वालों ने और पैसे, सामान मांगना प्रारम्भ किया. बीना के साथ गाली-गलौच, हाथापाई होती रही. बीना ने यौन अत्याचार भी झेली.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के अनुसार, सेक्शुअल वॉयलेंस के 99.1% मुकदमा दर्ज ही नहीं किए जाते.

सेक्शुअल वॉयलेंस के कुछ ही मुद्दे पुलिस रिकॉर्ड करती है. इसका कारण यही है कि अधिकांश मामलों में पति या करीबी लोग ही गुनेहगार होते हैं.

एक औसत भारतीय स्त्री को दूसरों के मुकाबले पति से 17 गुना सेक्शुअल वॉयलेंस झेलने का रिस्क होता है.

मीना बताती हैं कि वो जानती हैं कि दहेज के विरुद्ध कानून है लेकिन इसके बाद भी वह पति और उसके परिवार के विरुद्ध पुलिस स्टेशन में कम्पलेन नहीं दर्ज करा पाईं.

हालांकि सिर्फ़ परिवार की बदनामी ही कारण नहीं है. कठोर कानून की कमी, पुलिस में भरोसा नहीं होना और गुनेहगार को सजा न मिलने के कारण महिलाएं सेक्शुअल असॉल्ट की रिपोर्ट नहीं दर्ज करातीं.

पढ़े-लिखे समाज में भी महिलाएं होतीं टारगेट

जहां स्त्रियों की साक्षरता कम है वहां यौन अत्याचार के मुकदमा बहुत कम दर्ज किए जाते हैं. बिहार, यूपी, झारखंड में स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार के मुकदमा दर्ज कराने की रेट 0.5% है.

यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद की सेंटर फोर जेंडर स्टडीज की प्रोफेसर के सुनीता रानी बताती हैं कि जहां महिलाएं कम पढ़ी-लिखी हैं, नौकरीपेशा नहीं हैं, पति पर निर्भर हैं वहां पति या ससुराल के लोगों द्वारा यौन अत्याचार अधिक है. बावजूद इनकी रिपोर्ट ही दर्ज नहीं होती.

लेकिन यह भी दिचलस्प है कि तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्य जहां स्त्रियों की साक्षरता अधिक है वहां भी यौन अत्याचार की रिपोर्ट कम दर्ज की जाती है.

गरीब परिवार की स्त्रियों से यौन अत्याचार अधिक

यौन अत्याचार किस सोसाइटी में अधिक है या कम है यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि वे कितने समृद्ध हैं.

एनएफएचएस की रिपोर्ट के मुताबकि गरीब परिवारों में शारीरिक अत्याचार 39% है, जबकि अमीर परिवार की स्त्रियों में यह 17% है. एक तिहाई महिलाएं शारीरिक या यौन अत्याचार की शिकार होती हैं.

के सुनीता बताती हैं कि गरीब हो या अमीर दोनों ही तरह के परिवारों में यौन अत्याचार देखने को मिल सकती है.

लेकिन पढ़ाई-लिखाई और कामकाजी की तरक्की का असर पड़ता है जिससे स्त्री को यौन अत्याचार कम झेलनी पड़ती है.

यौन अत्याचार से पीड़ित होने वाली महिलाएं जीवन भर इसके दर्द को झेलती हैं. उन्हें अपने आप को संभालने में सालों लग जाता है पर मन पर पड़ा जख्म कभी नहीं भरता.

भारत में यौन अत्याचार से पीड़ित स्त्रियों के साथ समाज खड़ा नहीं होता. हमारे पड़ोस में, दोस्तों के साथ, करीबी नाते-रिश्तेदारों के साथ ऐसे कई पीड़ित होते हैं जिन्हें हमारे साथ की आवश्यकता होती है.

अमेरिका सहित कई राष्ट्रों में अप्रैल महीने को सेक्शुअल असॉल्ट अवेयरनेस मंथ के रूप में मनाया जाता है.

हमें भी यौन अत्याचार से पीड़ित होने वाली स्त्रियों को डिप्रेशन, एंग्जाइटी और ट्रॉमा से बाहर निकालने के लिए उनका सपोर्ट करना चाहिए.

 

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