स्वास्थ्य

बच्चों के खान-पान में चीनी की अधिक मात्रा की खबरें बेहद चिंताजनक

नवजात शिशुओं और बच्चों के खान-पान में चीनी की अधिक मात्रा की खबरें बहुत चिंताजनक हैं लेकिन इस संबंध में बहुत समय से चेतावनी दी जा रही है यहां चीनी (शुगर) का मतलब सिर्फ़ वह सफेद चीनी नहीं है, जो हम आम तौर पर खाते हैं यहां इसका अर्थ हर मीठी चीज से है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन खाद्य पदार्थों को एक विशेष श्रेणी में रखा गया है, जिनमें वसा, चीनी और नमक की मात्रा बहुत अधिक होती है ऐसा इसलिए करना पड़ा है क्योंकि पूरे विश्व में जो पैक्ड फूड और ड्रिंक्स आ रहे हैं, बच्चों के खाने-पीने की वस्तुएं आ रही हैं, उनमें यही तीन चीजें अधिक हैं खाने में मीठी लगने वाली हर चीज में किसी न किसी रूप में चीनी होती है इसमें सबसे घातक रूप है फ्रुक्टोज, जो फलों में होता है ग्लूकोज उतना मीठा नहीं होता और यह हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन शरीर इसे अपने-आप वसा, कार्बोहाइड्रेट या प्रोटीन से बना लेता है बाहर से हम ग्लूकोज लें, यह महत्वपूर्ण नहीं है फ्रुक्टोज के कारण कोई भी चीज बहुत अधिक मीठी लगती है जो फ्रुक्टोज अनेक तरह के सिरप में मिलाया जाता है, उसे आम तौर पर मक्के से बनाया जाता है किसी भी उत्पाद में यदि लिखा हुआ है कि इसमें शुगर मिलाया गया है, तो वह फ्रुक्टोज ही होता है

फ्रुक्टोज मस्तिष्क के एक हिस्से को स्टिम्युलेट करता है और डोपामाइन निकलता है खाने-पीने वाले को अच्छा लगता है इस कारण वह बार-बार उस चीज को खाना-पीना चाहता है इस तरह से उसकी लत लगती है यही डोपामाइन शराब, सिगरेट आदि के सेवन से निकलता है क्या फ्रुक्टोज फूड है? फूड का काम है मनुष्य की कोशिका को बढ़ाये या ऊर्जा उत्पन्न करे शोध बताते हैं कि फ्रुक्टोज विकास को बाधित करता है खाद्य पदार्थ बनाने वाली कंपनियां लोगों को अपने उत्पादों का आदी बनाने के लिए फ्रुक्टोज की मिलावट करती हैं यह प्रवृत्ति 1980 के बाद से विशेष रूप से बढ़ी उससे पहले बच्चों में लीवर में अतिरिक्त वसा होने (फैटी लीवर) की परेशानी नहीं देखी जाती थी ऐसे मुद्दे बहुत अधिक शराब पीने वालों और मोटे लोगों में देखे जाते थे आप देखते हैं कि अमेरिका और हिंदुस्तान समेत कई राष्ट्रों में चीनी के उत्पादों पर सब्सिडी दी जाती है चीनी कोई चावल-दाल जैसी राशन की चीज तो है नहीं असल में यह खाद्य कंपनियों और सरकारों की मिलीभगत का नतीजा है इससे उनके उत्पादों का उपभोग बहुत अधिक बढ़ गया और लोगों को भी लगने लगा कि ऐसे उत्पाद स्वास्थ्य के लिए ठीक हैं 
अध्ययनों से साबित हो चुका है कि बाहर से लिये जाने वाले ग्लूकोज या फ्रुक्टोज हमारे शरीर को कोई ऊर्जा नहीं देते हैं फ्रुक्टोज असल में ऊर्जा बनने की प्रक्रिया को बाधित करता है, फैटी लीवर कराता है, लत लगाता है, मोटापा बढ़ाता है और बाद में यह कैंसर का कारण भी बन सकता है आज हिंदुस्तान में लगभग एक-तिहाई बच्चे बीमार और 10 फीसदी बच्चे डायबिटीक हो चुके हैं ऐसे बच्चे जब बड़े होते हैं, तो कम उम्र में हार्ट अटैक, नपुंसकता, डायबिटीज और कैंसर जैसी समस्याओं का जोखिम बहुत बढ़ जाता है हमें समझना होगा कि एक समूची पीढ़ी तबाह होती जा रही है यदि कोई गर्भवती महिला एनर्जी ड्रिंक का सेवन करती है, तो उससे गर्भस्थ शिशु भी प्रभावित होता है इस प्रकार पैक्ड फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड से शिशु से लेकर बड़े तक सभी बीमार हो रहे हैं दुर्भाग्य से डॉक्टरों को खाद्य और पोषण के बारे में पूरा जानकारी नहीं है क्योंकि मेडिकल कॉलेजों में पांच वर्ष की पढ़ाई के दौरान कुछ ही घंटे इस बारे में कहा जाता है अमेरिका के सिर्फ़ 20 प्रतिशत मेडिकल कॉलेजों में फूड के बारे में कहा जाता है, वह भी पांच वर्ष में सिर्फ़ 20 घंटे अपने अनुभव से मैं कह सकता हूं कि हमें हिंदुस्तान में पांच वर्ष में सिर्फ़ दो घंटे इस संबंध में पढ़ाया गया था इस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए
माता-पिता को हर प्रोसेस्ड पैक्ड फूड को घर में लाने से परहेज करना चाहिए ऐसी चीजें जहर हैं और इनसे आपके बच्चे बीमार होंगे प्रयास हो कि प्रकृति से मिली चीजों का सेवन हो या रसोई में बना भोजन खाया जाए क्षेत्र और मौसम विशेष में होने वाले फलों का सेवन हो, न कि आयातित उत्पादों का जूस और पेय पदार्थों से दूरी में ही भलाई है, यह हमें समझना होगा डॉक्टरों को भी प्रयास करनी चाहिए कि यथासंभव रोगों का निदान खान-पान को ठीक करने के जरिये हो खाद्य सुरक्षा के लिए कई कानूनी प्रावधान हैं अनेक एजेंसियां हैं, अधिकारी हैं इसके बावजूद विदेशों से या अन्य जांचों से पता चल रहा है कि बच्चों के खाने-पीने की चीजें हानिकारक हैं इसका अर्थ है कि ये व्यवस्था कारगर नहीं हैं ये खामियां शीघ्र ठीक होनी चाहिए सरकारों को भी अधिक मुस्तैद होने की आवश्यकता है वह दिन भी आयेगा, जब लोग खाद्य कंपनियों के खेल को समझेंगे और उनके उत्पादों का सेवन बंद कर देंगे, लेकिन तब तक देर हो चुकी होगी उन कंपनियों को भी अपने मुनाफे से अधिक भविष्य की पीढ़ियों की भलाई के बारे में सोचना चाहिए
(ये लेखक के निजी विचार हैं)   

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