स्वास्थ्य

पहले ही जान सकेंगे कहीं आपको अल्जाइमर-डिमेंशिया का खतरा तो नहीं…

अल्जाइमर रोग-डिमेंशिया मस्तिष्क से संबंधित गंभीर बीमारी है, 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में इस परेशानी का खतरा तेजी से बढ़ता हुआ देखा जा रहा है. इस बीमारी के कारण सोचने-समझने, याददाश्त, मेमोरी लॉस के साथ मूड विकारों की भी परेशानी हो सकती है. कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि 50-55 की उम्र वाले लोगों में भी इस बीमारी का खतरा बढ़ा है. क्या इसका कोई तरीका है जिसकी सहायता से जाना जा सके कि आपको डिमेंशिया का जोखिम तो नहीं है?

इस बारे में अध्ययन कर रही वैज्ञानिकों की टीम ने कहा है कि आप कुछ उपायों की सहायता से एक दशक पहले भी इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि कहीं आपको डिमेंशिया का जोखिम तो नहीं है?

साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित निष्कर्ष में यूनाइटेड किंगडम स्थित लॉफबोरो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि आंखों की जांच की मदद से डिमेंशिया का समय पर पता लगाया जा सकता है. विजन सेंसिटिविटी की परेशानी अल्जाइमर बीमारी का शुरुआती संकेत हो सकती है. वैज्ञानिकों की टीम का बोलना है कि आंखों की जांच, इस गंभीर परेशानी का समय रहते निदान के लिए एक आसान तरीका हो सकता है.

दृष्टि की समस्याएं डिमेंशिया का संकेत

वैश्विक स्तर पर मस्तिष्क विकारों के मुद्दे बढ़ रहे हैं. स्वास्थ्य जानकारों ने कहा कि यदि समय पर अल्जामर बीमारी की परेशानी का अंदाजा लगा लिया जाए तो इससे डिमेंशिया के जोखिमों को कम करना सरल हो सकता है. शोधकर्ताओं ने बताया, विजुअल प्रोसेसिंग टेस्ट के साथ कुछ न्यूरोसाइकोलॉजिकल जांच का सहायता से 10-12 वर्ष पहले ही आप मस्तिष्क से संबंधित इस परेशानी का पता लगा सकते हैं.

दृष्टि संबंधी समस्याएं जो किसी आदमी की पढ़ने और लिखने, वाहन चलाने, रंग भेद करने या दूरी तय करने की क्षमता को प्रभावित करती हैं, वो अल्जाइमर बीमारी का प्रारंभिक संकेत हो सकती हैं.

आंखों की टेस्टिंग-रेटिना में बदलाव

आंखों की जांच की सहायता से मस्तिष्क विकारों का अंदाजा लगाया जा सकता है, इससे संबंधित पहले के अध्ययनों में भी संकेत मिल चुके हैं. अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि आंखों में होने वाले बदलाव- जैसे रक्त वाहिकाओं में क्षति की स्थित भी अल्जाइमर बीमारी का पता लगाने में मददगार पाई गई है.

शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि रेटिना या आंख के लेंस में बीटा-एमिलॉयड प्लेक पाया जाता है (मस्तिष्क में अल्जाइमर बीमारी के मुख्य कारणों में से एक) तो ये भी संकेत बताया जा सकता है कि मस्तिष्क में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.

क्या कहते हैं शोधकर्ता?

यूके स्थित लॉफबोरो यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता अहमत बेगड़े कहते हैं, दृश्य संवेदनशीलता किसी आदमी की दृश्य जानकारी को परफेक्ट और कुशलता से पहचानने और संसाधित करने की क्षमता को संदर्भित करती है. इसमें होने वाली किसी भी प्रकार की क्षति जैसे वस्तुओं या चेहरों को पहचानने में कठिनाई, परिचित वातावरण को नेविगेट करने में दिक्कत की सहायता से परेशानी का समय रहते पता लगाना मददगार हो सकता है.

पिछले अध्ययन से पता चलता है कि जिन लोगों को डिमेशिया होती है वो अक्सर कम दिखाई देने की भी कम्पलेन करते रहे हैं, इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने संवदेनशीलता की जांच के लिए ये शोध किया.

अध्ययन का निष्कर्ष

अध्ययन के निष्कर्ष में लॉफबोरो यूनिवर्सिटी में डिमेंशिया रिसर्च के निदेशक और अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रो. ईफ होगरवॉर्स्ट कहते हैं अध्ययन के आधार पर हमने पाया है कि आंखों की टेस्ट में लो स्कोर वाले मरीजों में डिमेंशिया का खतरा अधिक हो सकता है. इसका अंदाजा करीब एक दशक पहले ही लगाया जा सकता है.

शोधकर्ताओं ने बताया, जांच के माध्यम से परेशानी का पता लगाना सरल हो सकता है. इसके अतिरिक्त लाइफस्टाइल में कुछ प्रकार के बदलावों जैसे धूम्रपान न करना, वजन को कंट्रोल रखना, नियमित व्यायाम और स्वस्थ आहार की सहायता से मस्तिष्क से संबंधित समस्याओं के खतरे को कम किया जा सकता है.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button