क्या है INSTC कॉरिडोर, जिस पर भारत, रूस और ईरान ने लगाया बड़ा दांव
अमेरिका समेत अनेक पश्चिमी राष्ट्रों के लिए आर्थिक प्रतिबंध लगाना एक बड़ा हथियार बन चुका है. यूक्रेन युद्ध प्रारम्भ होते ही अमेरिका और कई विकसित राष्ट्रों ने रूस पर आर्थिक समेत कई प्रजाति के प्रतिबंध लगाए थे. ईरान-इजरायल के बीच तनानती के बीच भी अमेरिका ने ईरान पर बैन लगाए. अभी हाल ही में ईरान से दोस्ती करने और व्यापार समझौते करने पर पाक को इसी तरह की पाबंदी की धमकी दी गई.
इतना ही नहीं ईरान से डील करने पर हिंदुस्तान की तीन कंपनियों समेत एक दर्जन से अधिक कंपनियों पर भी अमेरिका ने पाबंदी लगी दी है. इन कंपनियों पर इल्जाम है कि यूक्रेन युद्ध में ईरान की तरफ से रूस को ड्रोन भेजे गए थे, जिसकी डील में ये शामिल रहे हैं. अमेरिका और पश्चिमी राष्ट्रों ने हमेशा से अपने हितों और मान्यताओं के विरुद्ध जाने वाले राष्ट्रों को इस तरह से प्रतिबंधित कर दंडित किया है.
इनके अतिरिक्त इस तरह के प्रतिबंध लगाकर अमेरिका अकसर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्ग पर कब्जा और उसकी नज़र में जुटा रहा है. चाहे वह समुद्री मार्ग रहा हो या स्थलीय मार्ग. इन पर निगाह रखकर अमेरिका यह देखता रहा है कि पूरे विश्व में कौन से कार्गो कहां से किस राष्ट्र में जा रहा है. इन हालात में जब चीन ने वन बेल्ट एंड वन रोड इनिशिएटिव के अनुसार कनेक्टिविटी, व्यापार और आर्थिक समृद्धि के द्वार खोले तो उसके पड़ोसी राष्ट्रों ने भी इस तरह की पहल प्रारम्भ की. भारत, रूस और ईरान ने भी मिलकर व्यापारिक मार्ग की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए तरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) का विकास करने की ठानी.
क्या है INSTC
ईरान, रूस और हिंदुस्तान द्वारा सदस्य राष्ट्रों के बीच परिवहन योगदान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 12 सितंबर 2000 को सेंट पीटर्सबर्ग में तरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) स्थापित करने पर सहमति जताई गई थी. यह एक मल्टी-मॉडल परिवहन गलियारा है. यानी कहीं समुद्री मार्ग तो कहीं रेल मार्ग तो कही सड़क मार्ग इस गलियारे का हिस्सा हैं. यह गलियारा हिन्द महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान से होते हुए कैस्पियन सागर से जोड़ता है, फिर रूसी संघ से होते हुए सेंट पीटर्सबर्ग और उत्तरी यूरोप को जोड़ता है.
भारत कैसे और बोला से जुड़ा है?
INSTC गलियारा रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से प्रारम्भ होकर दक्षिणी ईरान के बंदरगाहों से होते हुए हिंदुस्तान के मुंबई तक 7,200 किलोमीटर तक फैला है. यह एक व्यापारिक मार्ग का है जो यूरोप को बायपास करेगा. यह भूमध्य सागर और स्वेज नहर के माध्यम से रूस तक मौजूदा मार्ग की लंबाई को भी लगभग आधा कर देगा.
यह गलियारा रूस को ईरान से तीन मार्गों से जोड़ेगा. मुख्य मार्ग पश्चिमी कैस्पियन मार्ग, रेल और सड़क मार्ग से अज़रबैजान से होकर गुजरता है. केंद्रीय मार्ग जहाज द्वारा कैस्पियन सागर से होकर गुजरता है और पूर्वी मार्ग कैस्पियन सागर के पूर्वी तट से होकर जाता है. प्रारम्भ में तीन राष्ट्रों के बीच समझौते से प्रारम्भ हुए इस गलियारे में 11 नए सदस्य राष्ट्रों को शामिल किया गया है. अब इसके अनुसार अज़रबैजान, आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिज़, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान, सीरिया और बुल्गारिया भी शामिल हो चुके हैं.
INSTC क्या होगा असर
अभी तक भूमध्य सागर, लाल सागर और स्वेज नहर से होते हुए ही यूरोपीय राष्ट्रों से एशियाई राष्ट्रों में माल आता और जाता है. INSTC गलियारे के निर्माण से लाल सागर-भूमध्यसागरीय लिंक का वाणिज्यिक महत्व कम जाएगा और एक नया INSTC रूट बन जाने से दक्षिण काकेशियन क्षेत्र अहम व्यापारिक मार्ग गलियारे में बदल जाएगा. इस परियोजना ने अभी से ही असर दिखाना प्रारम्भ कर दिया है. उदाहरण के लिए, ईरान ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद रूस को ड्रोन और अन्य सेना उपकरणों की आपूर्ति इसी मार्ग से की है, जिसमें शामिल तीन भारतीय कंपनियों पर पाबंदी लगाई गई है.
अमेरिका और पश्चिमी राष्ट्र कैसे पड़ रहे कमजोर
दूसरा, बड़ा असर यह देखने को मिल रहा है कि इस गलियारे ने अज़रबैजान और रूस को पहले से और ज़्यादा करीब ला दिया है, जिसने आर्मेनिया के साथ विवाद में अज़रबैजान गवर्नमेंट का आत्मशक्ति बढ़ाया है. आर्मेनिया को पश्चिमी राष्ट्रों का भरपूर समर्थन मिल रहा है. इस गलियारे का महत्व सिर्फ़ सेना दृष्टिकोण से ही अधिक नहीं है. इसका वाणिज्यिक महत्व इन सबसे ऊपर है क्योंकि यह लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता है. यह गलियारा आर्थिक गतिविधियों और आसान आवागमन के नए रास्ते खोल सकता है. इसके अतिरिक्त आर्थिक पाबंदियों से मुक्ति दिलाकर क्षेत्र के लाखों लोगों के लिए आर्थिक तरक्की का नया रास्ता खोल सकता है.