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नकली बारिश के कैसे डूब गई दुबई

चकाचौंध, पैसा, शानो-शौकत वाली जिंदगी, महंगी-महंगी गाड़ियां और ऊंची-ऊंची इमारतें. दुबई का जिक्र होते ही दिमाग में बस कुछ ऐसी ही तस्वीर उभरती है. दुबई में ही दुनिया के सबसे अमीर लोग रहते हैं. लेकिन हमेशा चमकने वाले दुबई को महज कुछ घंटे की बारिश ने धो डाला. आधुनिकता की दौड़ में सरपट दौड़ रहा दुबई पानी-पानी हो गया. जो दुबई बारिश के लिए तरसता है उस दुबई में आसमान से इतना पानी बरसा की शहर समुंदर बन गया और बाढ़ जैसे हालात हो गए. बरसात की वजह से एयरपोर्ट से लेकर मेट्रो सेवा बुरी तरह प्रभावित हुई. इस बीच यूएई के मौसम विभाग ने बारिश की एक और तेज लहर की संभावना जताई है. इसके साथ ही लोगों से सावधान रहने को बोला है. वहीं जानकारों के अनुसार दुबई औऱ संयुक्त अरब अमीरात में भारी मात्रा में बारिश क्वाउड सीडिंग के कारण हुई.

क्लाउड सीडिंग क्या है?

अगर आप बोल चाल की भाषा में बताएं तो ऐसा समझिए की घर में मां ने खाने में हरी सब्जी बनाई और आपको ये खाने का मन न हो. लेकिन आपकी मां ने डाटंकर आपको सब्जी खाने पर विवश कर दिया. इसी तरह से आर्टिफिशल रेनिंग से बादलों को बरसने पर विवश किया जाता है.  क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिए बादलों की भौतिक हालत में कृत्रिम ढंग से परिवर्तन लाया जाता है. ऐसी स्थिति पैदा की जाती है जिससे वातावरण बारिश के अनुकूल बने. इसके जरिये भाप को वर्षा में बदला जाता है. संयुक्त अरब अमीरात जैसे राष्ट्रों में, जहां तापमान अधिक है और वार्षिक वर्षा न्यूनतम है, वर्षा को बढ़ाकर सीमित भूजल स्रोतों पर दबाव कम करने के लिए क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल किया जाता है.

क्लाउड सीडिंग कैसे काम करती है?

जरिये भाप को वर्षा में बदला जाता है. इस प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड और सूखे बर्फ को बादलों पर फेंका जाता है. यह काम एयरक्राफ्ट या आर्टिलरी गन के जरिए होता है. लेकिन क्लाउड सीडिंग के लिए बादल का होना महत्वपूर्ण होता है. बिना बादल के क्लाउड सीडिंग संभव नहीं है. वाई जहाज से सिल्वर आयोडाइड को बादलों के बहाव के साथ फैला दिया जाता है. विमान में सिल्वर आयोइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल हाई प्रेशर पर भरा होता है. जहां बारिश करानी होती है, वहां पर हवाई जहाज हवा की उल्टी दिशा में छिड़काव किया जाता है. इस प्रोसेस में बादल हवा से नमी सोखकर और कंडेस होकर बारिश की भारी बूंदे बनने लगती हैं और बरसने लगती हैं. क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें संघनन को प्रोत्साहित करने और वर्षा को गति देने के लिए सिल्वर आयोडाइड या नमक जैसे “सीडिंग एजेंटों” को बादलों में पेश किया जाता है.  यह तकनीक साफ परिस्थितियों में वर्षा को 30-35 फीसदी तक और अधिक आर्द्र परिस्थितियों में 10-15 फीसदी तक बढ़ा सकती है.

सबसे पहले कब हुआ इस्तेमाल

इस थ्योरी को सबसे पहले जनरल इलेक्टि्क के विंसेट शेफर और नोबल पुरस्कार विजेता इरविंग लेंगमुइर ने कंफर्म किया था. जुलाई 1946 में क्लाउड सिडिंग का सिद्धांत शेफर ने खोजा. 13 नवंबर 1946 को क्लाउड सीडिंग के जरिए ही पहली बार न्यूयॉर्क फ्लाइट के जरिए प्राकृतिक बादलों को बदलने का प्रयाक हुआ. जिसके बाद जनरल इलेक्ट्रिक लैब द्वारा फरवरी 1947 में बाथुर्स्ट ऑस्ट्रेलिया में किया गया. जिसके बाद अनेक राष्ट्रों ने इसे इस्तेमाल किया.

यूएई का क्लाउड सीडिंग प्रोग्राम क्या है?

यूएई ने 1990 के दशक के अंत में अपना क्लाउड सीडिंग कार्यक्रम प्रारम्भ किया, जिससे यह इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले पहले मध्य पूर्वी राष्ट्रों में से एक बन गया. नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च (एनसीएआर) और नासा जैसे संस्थानों के साथ सहयोगात्मक अनुसंधान ने उनके प्रयासों को बढ़ावा दिया है. यूएई ने जल सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए 2015 में “यूएई रिसर्च प्रोग्राम फॉर रेन एनहांसमेंट साइंस” (यूएईआरईपी) की स्थापना की. यूएईआरईपी के अनुसार, अमीरात के राष्ट्रीय मौसम विज्ञान केंद्र (एनसीएम) ने मौसम की नज़र के लिए 86 स्वचालित मौसम स्टेशनों (एडब्ल्यूओएस), पूरे यूएई को कवर करने वाले छह मौसम रडार और एक ऊपरी वायु स्टेशन का एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित किया है. इसने जलवायु डेटाबेस भी बनाया है और संयुक्त अरब अमीरात में उच्च परिशुद्धता वाले संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान और सिमुलेशन सॉफ्टवेयर के विकास में सहायता की है. यूएईआरईपी वेबसाइट ने आगे कहा कि वर्तमान में नसीएम अल ऐन हवाई अड्डे से क्लाउड सीडिंग और वायुमंडलीय अनुसंधान के लिए नियोजित नवीनतम तकनीकों और उपकरणों से लैस चार बीचक्राफ्ट किंग एयर सी90 विमान संचालित करता है.

56 राष्ट्र कर चुके इस्तेमाल

विश्व मौसम संगठन के मुताबिक 56 राष्ट्र कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल कर चुके हैं. इसमें संयुक्त अरब अमीरात से लेकर चीन चक शामिल है. यूएई ने जहां पानी की कमी दूर करने के लिए इसका इस्तेमाल किया वहीं चीन ने 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान बारिश रोकने और आसमान खुला रखने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया.

क्लाउड सीडिंग का पर्यावरणीय असर क्या है?

क्लाउड सीडिंग किसी क्षेत्र/स्थान के वर्षा पैटर्न को बदल देती है. यह पड़ोसी पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक असर डाल सकता है, जिन्हें मूल रूप से बीज वाले बादलों के लिए बारिश प्राप्त होनी थी. बीजारोपण एजेंटों का परिचय प्राकृतिक जल विज्ञान चक्र को प्रभावित कर सकता है क्योंकि यह प्राकृतिक मिट्टी की नमी के स्तर, भूजल पुनर्भरण और नदी के प्रवाह को बदल सकता है. कुछ जानकार इस बात को लेकर चिंतित हैं कि यदि क्लाउड सीडिंग व्यापक हो गई तो सिल्वर विषाक्तता की आसार हो सकती है. सिल्वर आयोडाइड एक सामान्य बीजारोपण एजेंट है. चांदी की विषाक्तता जलीय जीवन और मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकती है. इसलिए, क्लाउड सीडिंग के वादे के बावजूद, उत्तरदायी प्रबंधन और इसके पर्यावरणीय प्रभावों का गहन मूल्यांकन जरूरी है.

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