किसी कार्य को पूरा करने के लिए शक्ति की जरूरत होती है. फोर्स के अभाव में कोई भी कार्य संभव नहीं है. बल को ऊर्जा, शक्ति, पावर के नाम से भी जाना जाता है. मनुष्य के पर्सनल जीवन में चार शक्तियाँ जरूरी हैं. वे हैं- शारीरिक बल, नैतिक बल, आत्मिक बल और ब्रह्म बल. कार्य के मुताबिक उनकी क्षमताएं भिन्न-भिन्न होती हैं, लेकिन उनके अतिरिक्त एक प्राण बल भी होता है. इस शक्ति से संपन्न आदमी नश्वर होते हैं. वे सामान्य, असाधारण, देव मानव स्तर के मुखिया और पुरुषार्थी से भिन्न हैं. प्राण बाला में असीमित क्षमता है. दरअसल, किसी भी शुभ अवसर पर हम शुभ कार्य में तेजी लाने का संकल्प लेते हैं. अवधारणा का कोई विकल्प नहीं. संकल्प लेते ही ब्रह्मा की शक्ति हमसे जुड़ जाती है. प्राण बल से सम्पन्न कोई जीवित आदमी ही शुभ संकल्प ले सकता है.
ऐसा आदमी संकल्प लेने के बाद कार्य अवश्य पूरा होता है क्योंकि संकल्प लेने वाले आदमी का मन और शरीर लक्ष्य प्राप्ति में लगा रहता है. जब कार्य के पूरा होने में शक होता है तभी उस हालत में मनुष्य का मन नकारात्मक सोच से भरा होता है. प्रभु श्रीराम ने वनवास के दौरान जंगल में हड्डियों का ढेर देखा और प्रतिज्ञा ली कि जो राक्षस संसार को नष्ट करने का काम कर रहे हैं, उनका मैं विनाश करूंगा. तभी पृथ्वी पर शांति होगी. प्राण बल से परिपूर्ण आदमी से राष्ट्र और समाज के भलाई की अपेक्षा करना शुभ है. वे त्यागी हैं, बलिदानी हैं, संस्कृति नायक हैं. जड़ से योगदान की बात सोचना समय की बर्बादी है. अक्सर हम देखते हैं कि धार्मिक जानकार प्राण बल की क्षमता बढ़ाने के लिए प्राणायाम, जप, तप, सत्संग, धर्म की आध्यात्मिक गतिविधियों पर विशेष बल देते हैं. महात्मा गांधी शारीरिक रूप से कमजोर थे, लेकिन वे ऊर्जा से भरपूर थे और मुश्किल से मुश्किल कार्य को भी पल भर में पूरा कर सकते थे.सिर्फ़ जीवन शक्ति से भरपूर लोग ही इस धरती पर लंबे समय तक जीवित रहते हैं. निर्जीव मुर्दे के समान हैं