डायबिटीज समेत कई बीमारियों में रामबाण है ये पौधा
डंडेलियन जिसे कई स्थान सिंहपर्णी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐसा पौधा है, जिसकी जड़ से लेकर पत्ते और फूल सभी काम के हैं। इसका प्रयोग कई रोगों में कारगर साबित है। यदि आप अपने दैनिक जीवन में डेंडिलियन का प्रयोग करते हैं, तो यह आपकी स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। आप कई रोग से दूर रह सकते हैं।
2008 में कैंसर विज्ञान इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि डंडेलियन की जड़ों में ऐसे तत्व उपस्थित हैं, जो एंटी कैंसर के रूप में कार्य करते हैं। और कीमोथेरेपी जितने असरदार है। डैंडेलियन वैसे तो यूरोप का पौधा है। लेकिन, हिंदुस्तान के हिमालयी क्षेत्रों में भी यह पाया जाता है। इसकी खेती करना भी किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाता है। यही कारण है कि अब कई लोग इसकी खेती कर रहे हैं।
डायबिटीज से लेकर अन्य रोग का इलाज
उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल में स्थित उच्च शिखरीय पादप कारकी अध्ययन केन्द्र (हेप्रेक) के शोधार्थी देवेश जंगपांगी बताते हैं कि वह डंडेलियन को लेकर अध्ययन कर रहे हैं। साथ ही यह समझने की प्रयास कर रहे हैं कि यदि इसे अन्य स्थान लगाया जाए तो इसके औषधीय गुणों में किसी तरह का परिवर्तन आता है। इसे टराक्सेकम ऑफिशिनाले डेंडेलियान नाम से भी जाना जाता है। देवेश बताते हैं कि औषधीय रूप से डैंडेलियन काफी लाभ वाला है। इसका प्रयोग करने से डायबिटीज, लीवर संबंधी रोग से राहत मिलती है।
सलाद के रूप में पत्तियों का प्रयोग
उन्होंने आगे बोला कि आयुर्वेद में भी डैंडेलियन को लीवर और पेट संबंधी रोग में रामबाण उपचार माना गया है। उत्तराखंड के कई इलाकों में अब इसकी खेती भी की जा रही है। इसकी पत्तियों में विटामिन ए, सी, डी के साथ काफी मात्रा में न्यूट्रिशन पाए जाते हैं। इसकी पत्तियों को सीधे तौर पर साग बनाकर भी खाया जा सकता है। देवेश जानकारी देते हुए आगे बताते हैं कि बाहर के कई राष्ट्रों में हेल्थ कांशियस लोग इस पौधे की पत्तियों का सलाद बनाकर भी खाते हैं, ताकि वे स्वस्थ रह सकें।
न समझें खरपतवार
देवेश ने बोला कि इसके अतिरिक्त डंडेलियन की जड़ों को सुखा कर उससे चायपत्ती भी तैयार की जाती है, जिसका गर्म पानी के साथ चाय की तरह सेवन कई रोंगों से दूर रखता है। वहीं, पेट सबंधी रोगों में भी कारगर साबित होता है। कई स्थान लोग इसके औषधीय गुणों को नहीं जानते हैं। और इसे खरपतवार समझ कर फेंक देते हैं। जबकि, इसकी खेती की जाए तो अच्छा फायदा हो सकता है। देवेश बताते हैं कि जलवायु के मुताबिक इसके सेकेंडरी मेटाबोलाइट्स पर भी असर देखने को मिलता है।